________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ५०५ )
-
।
समा०
न (वि.) नह (नश)+ड 1. पतला, फाल्तू 2. खालो, नाना प्रकार के रूपों का शस (अव्य०) बार २,
रिक्त 3. वही, समरूप 4. अविभक्त,-न: 1. मोती, बहुवा,---किचन (वि०) अत्यंत गरीब, भिखारी के 2. गणेश का नाम, 3. दौलत, सम्पन्नता 4. मंडल,
समान। 5. युद्ध-(अन्य) (क) निषेधात्मक अधय, 'नहीं' | नकुटम् [कुट+क, न शब्देन समासः] नाक, नासिका। 'न तो' 'न' का समानार्थक, लोट् लकार में प्रति-नकुलः नास्ति कुलं यस्य, नमो न लोपः प्रकृतिभावात्] षेवात्मक न होकर, अज्ञा, प्रार्थना या कामना के नेवला, आखेटी नकुल-यदयं नकुलद्वेषी, सकुलद्वेषी लिए प्रयुक्त, (ख) विधिलिङ्क की क्रिया के साथ पुनः पिशुनः ---वास. 2. चौथा पाण्डव राजकुमार प्रयक्त किये जाने पर कई बार इसका अर्थ होता है ..अहं तस्य अतिशयितदिव्यरूपिणो नकुलस्य दर्शने--'ऐसा न हो कि' इस डर से कि कहीं ऐसा न हो नोत्सुका जाता--वेणी० २, (यहाँ नकुल का प्रथम -क्षविर्धार्यते शस्त्रं नार्तशब्दो भवेदिति--रामा० अर्थ है, परन्तु दुर्योधन ने दूसरा अर्थ ग्रहण किया)। (ग) तर्कपूर्ण लेखों में 'न' शब्द 'इतिचेत' के पश्चात नक्तम [ना+क्त] 1. रात 2. केवल रात्रि के समय खाना, रक्खा जाता है और इसका अर्थ होता है 'ऐसा नहीं एक प्रकार का धार्मिक व्रत या तपश्चर्या । सम० (घ) जब भिन्न-भिन्न वाक्यों में या एकही वाक्य के -अन्ध (वि०) रात्र्यंघ, जिसे रात में दिखाई नहीं क्रमबद्ध वाक्यखण्डों में निपेधक की पुनरावृत्ति करनी देता,-चर्या रात को घूमना,--चारिन् (0) होती है तो केवल 'न' की आवृत्ति की जा सकती है, 1. उल्लू 2. विलाव 3, चोर 4. राक्षस, पिशाच, भूत अथवा उत, च, अपि, चापि और वा आदि अध्धयों प्रेत,--भोजनम् रात का भोजन, ब्याल,--माल: एक के साथ 'न' को रखा जा सकता है-नाधोयीताश्व- वृक्ष का नाम-रघु० ५।४२,---मुखा संध्या, सायंमारूढो न वृक्षं न च हस्तिनम्, न नावं न खरं नोष्ट्र काल,-ब्रतम् 1. दिन भर व्रत रखना तथा रात को नेरिणस्यो न यानगः । मन्० ४।१२०, प्रविशंन्त न मां भोजन करना 2. कोई भी साधना या धार्मिक व्रत जो कश्चित्सनामधारयत्--महा०, मनु० २।१९५, रात में किया जाय । ३३८, ९, ४११५, श० ६.१७, कई बार 'ज' द्वितीय नक्तम् (अव्य०) रात के समय, रात को... गच्छन्तीनां तथा अन्य वाक्मवंडों में न रक्खा जाकर केवल च, रमणवसति योषितां तत्र नक्तम्--मेघ० ३७, मनु०
ना, अपिता ने स्थानापत्ति करता है --संपदि यस्य न ६।१९ । सम०-चरः रात को घूमने वाला प्राणी ' हों विपदि विवादो रणे च धोरत्वम -हि० ११३३, ! 2. चोर, ----चारिन (पुं०)-नक्तचारिन,-विनम् रात (ङ) किसो उक्ति पर बल देने के लिए बहधा 'न' दिन,-दिनम्-दिवम् (अत्य०) रात और दिन । को एक और 'न' के साथ अथवा किसी अन्य निषेधा-। नक्तकः [नक्त+के+क] गंदा, मैला फटा पुराना कपड़ा सफ अध्यय के साथ जोड़ दिया जाता है ....प्रत्यवाच नक्रः [न कामतीति न-क्रम् +ड, नशे न लोपः ] तमपिर्न तत्त्वतस्त्वां न वेनि पुरुष पुरातनम् ----रघु० घड़ियाल, मगरमच्छ, नक्र: स्वस्थानमासाद्य गजेन्द्रमपि ११३८५, न च न परिचितो न चाप्यगम्यः--मालविः | कर्षति -पंच० ३।४६ रघ० ७।३०, १६.५५, - क्रम् ११११, न पुनरलंकारथियं न पूष्पति-श० १, 1. दरवाजे की चौखट की ऊपर की लकड़ी 2. नाक, नादंडयो नाम राज्ञोऽस्ति - मनु० ८।३३५, मेघ० -... का 1. नाक, 2. मक्खियों या भिडों का छत्ता। ६३, १०६, नासो, न काम्यो न च वेद सम्यग् द्रष्टुं नक्षत्रम् नक्ष-अत्रन् ] 1. तारा 2. तारक पुंज, चन्द्रपथ न सा - रघु० ६१३०, शि. ११५५, विक्रम०।१०, में तारावलो, नक्षत्र-नक्षत्रताराग्रहसंकुलापि---रघु० (च) कुछ शब्दों में न तत्यूका के आरम्भ में 'ज' ६।२२ । सम० -- ईशः,-ईश्वरः,-नाथः --पः, को ऐसा का ऐसा हो रख लिया जाता है -- यथा -पतिः -- राजः चन्द्रमा,--रघु० ६।६६,-- चक्रम् न.क, नासत्य, नकुल, आदि -पा० ६।३१७५, (छ) 1. स्थिर तारा-मंडल 2. नक्षत्रों का समह,-दर्श: 7' को बहुधा दुसरे अब्धयों के साथ भी जोड़ दिया ज्योतिविद, ज्योतिषी,-नेमिः 1. चन्द्रमा 2. ध्रुवतारा जाताहै नप, नवा, नेव, नतू, नचेस, नखल आदि । 3. विष्णु की उपाधि (मिः---स्त्री.) अन्तिम नक्षत्र, सम्म० - असत्यो (पुं० द्वि० व०) अश्विनी कुमार, खेती, -पथः आकाश जिसमें तारे खिले हों,--पाठक: देवों के वैद्ययुगल, एक (वि.) 'एक नहीं' अर्थात् ज्योतिषी, ..माला 1. तारापंज 2. २७ मोतियों की एक से अधिक, कुछ, कई, आत्मन् (वि.) विविध माला 3. चन्द्रपथ में तारामंडल 4. हाथियों के कण्ठ भाति का विभिन्न प्रकृति का, चर (वि.) न रहने का आभूषण-अनङ्गवारण शिरोनक्षत्रमालायमानेन वाठा' यथवारी, संघातवासी, समाज में रहने वाला, मेखलादाम्ना का० ११,-योः चन्द्रमा का नक्षत्रों सामाजिक भेद, रूप (वि.) विविध प्रकार का, से मिलन,वस्मन् (पुं०) आकाश,-विद्या गणित,
For Private and Personal Use Only