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( ४३९ )
तेरहवाँ,-बशी चान्द्र पक्ष को तेरहवीं तिथि,-नवतिः प्रतिरक्षा, प्ररक्षा--आर्तत्राणाय वः शस्त्रं न प्रहर्तुमना(स्त्री०) तिरानवे,-पञ्चाशत् (स्त्री०) तरेपन,-विश गसि-श० ११११ रघु० १५।३ 2. शरण, सहारा, (बि०) 1. तेइसवी 2. तेईस से युक्त,-विशतिः आश्रय-भट्रि० ३१७०।। (स्त्रो०) तेईस, -- षष्टिः (स्त्री०) तरेसठ,-सप्ततिः |त्रात (भू० क. कृ)[+क्त] 1. प्ररक्षित, बचाया गया, (स्त्री०) तिहत्तर।
रक्षा किया गया। त्रयी[त्रय+कीप] 1. तीनों वेदों की समष्टि (ऋग्यज:- | पापुष (वि०) (स्त्री-पी) [त्रपुष+ अण्] रांगे का बना
सामानि)-त्रयीमयाय त्रिगुणात्मने नमः-का० १, तो हुआ। त्रयीवर्जमितरा विद्या; परिपाठिती-उत्तर०२, मनु | त्रास (वि.) [वस्+घञ्] 1. चर, चलनशील 2. हराने ४।१२५ 2. तिगड्डा, त्रिक, त्रिसमूह- व्यद्योतिष्ट वाला, सः डर, भय, आतंक-अन्तः कञ्चुकिकञ्चुसभावेद्यामसो नरशिखित्रयो-शि० २।३ 3. गृहिणी कस्य विशति त्रासादयं वामनः-रत्ना०२।३, रघु० या विवाहिता नारी जिसका पति तथा बालबच्चे २१३८, ९।५८ 2. चौकन्ना करने वाला, भयभीत करने जीवित हों 4. बुद्धि, समझ । सम-तनुः 1. सूर्य का वाला 3. मणिगत दोष । विशेषण, इसी प्रकार 'त्रयीमयः' 2. शिव का एक
त्रासन (वि.) [त्रस्+णि+ल्युट्] खोफ़नाक, डरावना, विशेषण,-धर्म: तीनों वेदों में वर्णित धर्म-भग० ९॥
भयङ्कर,-नम् डराने को क्रिया, डराना। २१,-मुखः ब्राह्मण।
शासित (वि०) [त्रस+णिच+क्त] डराया हुआ, मातंकित प्रसi (भ्वा०, दिवा० पर०-सति, स्यति, त्रस्त) भयभीत ।
1. थर्राना, काँपना, हिलना, भय के कारण विचलितत्रि (सं०वि०-केवल ब. व०, कर्त० पुं० त्रयः, स्त्री० होना 2. डरना, भयभीत होना, डर जाना (अपा० के तिस्रः, नपुं० त्रीणि) तीन-त एव हि त्रयो लोकास्त एव साथ, कभी-कभी सम्बं० या करण के साथ)-प्रमद- त्रय आश्रमा:-मनु० २।२९९, प्रियतमाभिरसो तिसवनात् त्रस्यति-का० २५५, कपेरत्रासिषुर्नादात् भिर्बभौ-रघु० ९।१८, त्रीणि वर्षाण्यदीक्षेत कुमार्यतु-भट्टि० ९।११, ५।७५, १४१४८, १५।५८, शि० ८। मती सती-मनु० ९/९० । सम.- अंशः 1. तिहाई २४, कि० ८७, प्रेर०-डराना, भयभीत करना,-वि०-, भाग 2. तीसरा अंश,-अक्षः-अक्षकः शिव का एक भयभीत या त्रस्त होना-वित्रस्तमुग्धहरिणीसदृशैः विशेषण,-अक्षरः 1. ईश्वर द्योतक अक्षर 'ओम' जो कटाक्षः-भर्तृ० १३९, सम्---,डरना, भयभीत होना, तीन अक्षरों से मिल कर बना है-दे० 'अ' में 2. जोड़ी त्रस्त होना-भट्टि०१४॥३९।।
मिलाने वाला, घटक (यह शब्द तीन वर्षों से मिल ii (चुरा० उभ-त्रासयति-ते) 1. जाना, हिलना- कर बना है), अफूटम्, अङ्गगटम् 1. वह तीन रस्सियाँ जुलना 2. थामना 3. लेना, पकड़ना 4. विरोध करना, जिनके सहारे बहंगी के दोनों पलड़े दोनों किनारों पर रोकना।
लटकते रहते हैं 2. एक प्रकार का अंजन, सुर्मा, अस (वि.) [स् +क] चर, जंगम,-सः हृदय,-सम् -अजलम्-लिम् तीन अंजलि (मिला कर), अधि
1. वन जंगल 2. जानवर । सम०-रेणुः अणु, धूल का ष्ठान: आत्मा,–अध्वगा,-मागंगा,--वमंगा गंगा कण या अणु जो सूर्यकिरण में हिलता हुआ दिखाई देता नदी (तीनों लोकों में बहने वाली) के विशेषण, है..-तु० जालान्तरगते भानो सूक्ष्म यदृश्यते रजः, -~-अम्बकः('त्रियम्बक' भी, यद्यपि लौकिक साहित्य में प्रथमं तत्प्रमाणानां त्रसरेणुं प्रचक्षते—मनु० ८।१३२, प्रयोग विरल है) तीन आंखों वाला, शिव, त्रियम्बक याज्ञ० ११३६१।
संयमिनं ददर्श--कु० ३।४४, जडीकृतस्त्र्यम्बकवीक्षणेन असरः [त्रस्+अरन् बा०] ठरकी (जुलाहों का एक उपकरण -रघु० २।४२, ३१४९, सखः कुबेर का विशेषण, जिसमें धागों की नली रख कर बुनते हैं)।
---अम्बका पार्वती का विशेषण,--अब्द (वि०) तीन असुर, बस्नु (वि.) [त्रस्+उरच, अस्+क्नु ] भीरु, वर्ष पुराना (----बम्) तीन वर्ष,--अशोत (वि.)
काँपने बाला, डरपोक-अत्रस्तुभिर्युक्तधुरं तुरङ्गः तिरासिवा, अशीतिः (स्त्री०)तिरासी,-अष्टन् (वि०) ...रघु० १४।४७, सीतां सौमित्रिणा त्यक्ता सध्रीची चौबीस,- अध-अस्त्र त्रिकोण, त्रिभुजाकार (सम्) अस्नुमेकिकाम्-- भट्टि• ६।७। ।
तिकोन, त्रिभुज,--अहः तीन दिन का काल, - अहित अस्त (भू० क० कृ०) [त्रस्+क्त] 1. भयभीत, डरा हुआ, (वि.) 1. तीन दिन में उत्पादित या अनुष्ठित 2. हर
आतंकित-त्रस्तकहायनकुरङ्गविलोलदृष्टि:---मा०४८ तीसरे दिन घटने वाला--(यथा बुखार) तैया,-अचम् 2. डरपोक, भीरु 3 फुर्तीला, चंचल ।
('तृचम्' भी) तीन ऋचाओं की समष्टि--मनु० प्राण (भू० क० कु) [+क्त तस्य नत्वम् ] रक्षा किया ८।१०६,.- ककुद् (पुं०) 1. त्रिकूट पहाड़ 2. विष्णु
गया, अभिरक्षित, प्ररक्षित, बचाया गया,-णम् 1. रक्षा या कृष्ण,-कर्मन् (नपुं०) ब्राह्मण के तीन मुख्य कर्तव्य
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