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( ४४२ ) संध्याओं के समय,-सप्तत वि०) तिहत्तरवा, सप्ततिः | त्रिक 2. तीन यज्ञाग्नियों का समाहार- मनु० २।२३१, तिहत्तर,-सप्तन्-सप्त (वि०व०व०) तीन बार सात रघु० १३१३७ 3. पासे को विशेष ढंग से फेंकना, तीन अर्थात् २१-साम्यस् तीनों (गणों) का साम्य, स्थली का दांव फेंकना-वेताहृतसर्वस्व... मच्छ० २८ तीन पवित्र स्थान---अर्थात् काशी, प्रयाग और गया, 4. हिन्दुओं के चार युगों में दूसरा--दे० 'युग'।। -स्रोतस् (स्त्री०) गंगा का विशेषण-त्रिस्रोतसं वहति त्रेधा (अव्य०) [त्रि+एघाच ] तिगुनेपन से, तीन प्रकार यो गगनप्रतिष्ठाम-स०७।६, रघु०१०।६३, कु०७।१६ से, तीन भागों में-तदेकं सत्त्रेधाख्यायते शत०, -सीत्य,-हल्य (वि.) (खेत आदि) तीन बार | (नमः) तुभ्यं त्रेधा स्थितात्मने-रघु० १०१६ ।
जोता हुआ,-हायण (वि.) तीन वर्ष का। | (म्वा० आ० त्रायते, त्रात या त्राण) रक्षा करना, प्ररत्रिंश (वि.) (स्त्री०-शी) [ त्रिशत्+डट्] 1. तीसवाँ क्षित रखना, बचाना, प्रतिरक्षा करना (प्रायः अपा०
2. तीस से जुड़ा हुआ, उदा०त्रिशं शतं-'एक सौ तीस के साथ) क्षतात्किल पायत इत्यदनः क्षत्रस्य शब्दो 3. तीस से युक्त।
भुवनेषु रूढः--रघु० २१५३, भग० २१४०, मनु० ९। त्रिंशक (वि.)[त्रिंश+कन्] 1. तीस से युक्त 2. तीस के १३८, भट्टि०५।५४, १५:१२०, परि-, बचाना, परिमूल्य का या तीस में खरीदा हुआ।
त्रायस्व परित्रायस्व (नाटकों में)। त्रिंशत् (स्त्री०) [त्रयोदशत: परिमाणमस्य नि० ] तीस, | कालिक (वि०) (स्त्री०--को) [त्रिकाल+ठम] तीन -पत्रम् सूर्योदय के साथ खिलने वाला कमल।
कालों से (भूत, वर्तमान और भविष्यत्) सम्बद्ध । त्रिंशकम् [विशत+कन] तीस की समष्टि, तीस काकाल्यम् [त्रिकाल+ध्या] तीन काल अर्थात- भूत, वर्तसमाहार।
मान तथा भविष्यत् । त्रिक (वि०) [ त्रयाणां संघ:-कन् ] 1. तिगुना तेहरा | गुणिक (वि०) त्रिगुण+6] तिगुना, तेहरा।
2. तिगड्डा बनाने वाला 3 तीन प्रतिशत,--कम गुण्यम् [त्रिगुण+व्यञ] 1. तिगुनापन, तीन धागों या 1. तिगड्डा 2. तिराहा 3. रीढ़ की हड्डी का निचला गुणों का एकत्र होने का भाव 2. तीन गुणों का समाभाग, कूल्हे के पास का भाग-त्रिके स्थूलता-पंच०
हार 3. तीन गुणों (सत्त्व, रजस्, तमस्) की समष्टि १।१९०, कश्चिद्विवृत्तत्रिकभिन्नहारः . रघु० ६।१६
-गुण्योद्भवमत्र लोकचरितं नानारसं दृश्यते-मालवि० 4, कन्धे की हड्डियों के बीच का भाग 5. तीन मसाले-(त्रिफला, त्रिकटु, त्रिमद),--का रस्सी के पुरः [ त्रिपुर+अण् ] 1. त्रिपुर नाम का देश 2. उस देश आने जाने के लिए कुएं पर लगाई हुई लकड़ी की | , का निवासा या
। का निवासी या शासक । गिट।
त्रैमातुरः [त्रिमात+अण, उत्वम्] लक्ष्मण का विशेषण । त्रितय (वि.) (स्त्री०-यो) [त्रयोऽवयवा अस्य ---त्रि+
त्रैमासिक (वि.) (स्त्री० --की) [त्रिमास+ठन ] तयप्] तीन भागों वाला, तिगुना, तीन तह का,--यम्
1. तीन मास पुराना 2. तीन महीने तक ठहरने वाला, तिगड्डा, तीन का समूह-श्रद्धा वित्तं विधिश्चेति त्रितयं
या हर तीन महीने में आने वाला 3. तिमाही। तत्समागतम्-श० ७।२९, रघु० ८७८, याज्ञ०
श्रराशिकम् [त्रिराशि+ठन ] (गणित) तीन ज्ञात राशियों
के द्वारा चौथी अज्ञात राशि निकालने की रीति । त्रिषा (अव्य.)[त्रि+धाच तीन प्रकार से या तीन भागों
त्रैलोक्यम् [ त्रिलोकी+यन ] तीन लोकों का समाहार में, कु०७४४, भग० १८/१९ ।
___ ----रघु० १०५३। त्रिस् (अव्य.) [त्रि+सुच्] तीसरी बार, तीन बार। वणिक (वि.) (स्त्री०-की) [ त्रिवर्ण+ठ ] पहले त्रुट (दिवा० तुदा० पर० त्रुटयति, त्रुटति, त्रुटित) फाड़ना, तीन वर्षों से संबंध रखने वाला।
तोड़ना, टुकड़े २ करना, तड़कना, फिसल जाना विक्रम (वि०) [त्रिविक्रम+अण् ] त्रिविक्रम या विष्णु (आलंभी०) गद्गदगलल्ल्युटयद्विलीनाक्षरम् - भर्तृ० से सम्बन्ध रखने वाला ।-रघु० ७।३५ । ३८, १२९६, अयं ते बाष्पोषस्त्रुटित इव मुक्तामा विद्यम् [ त्रिविद्या+अण् ] 1. तीनों वेद 2. तीनों वेदों सरः--उत्तर. श२९।।
का अध्ययन 3. तीन शास्त्र-ग्रः तीनों वेदों में निष्णात त्रुटि:,-टी (स्त्री०) [त्रुट्+इन कित्, त्रुटि+ङीष् ] | ब्राह्मण-भग० ९।२०।
1. काटना, तोड़ना, फाड़ना 2. छोटा हिस्सा, अणु विष्टपः, विष्टपेयः [ त्रिविष्टप+अण, ढक् वा ] देवत।। 3. समय का अत्यन्त सूक्ष्म अन्तर, १/४ क्षण या शवः [ त्रिशकु+अण् ] त्रिशंकु के पुत्र हरिश्न्द्र का लव 4. सन्देह, अनिश्चितता 5. हानि, नाश 6. छोटी । विशेषण । इलायची (पौधा)।
प्रोटकम् [श्रुट् + णिच् + ण्वुल] नाटक का एक भेद-सप्ताष्ट त्रेता [त्रीन् भदान् एति प्राप्नोति--पृषो० साधुः] 1. तिकड़ी | नवपञ्चाकं दिम्बमानुषसंश्रयम्, त्रोटकं नाम तत्प्राहुः
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