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( ४२१ )
2. यंत्रणा देना, पीडित करना, सताना--भशं तापितः ।। तपनीयोपानद्यगलमायः प्रसादीकरोतु--महावी. ४, कन्दर्पण--गीत०११, भट्रि०८।१३, अनु,--1. पश्चा- असंस्पृशन्तो तपनीयपीठम् -रघु० १८१४१ । ताप करना, अफसोस करना, खिन्न होना 2. पछताना | तपस् (नपुं०) [तप्+असुन्] 1. ताप, गर्मी, आग 2. पीडा उद्,-1. तापना, गर्म करना, झुलसाना, (सोना कष्ट 3. तपश्चर्या, धार्मिक, कड़ी साधना, आत्मआदि) पिघलाना (जिस समय अक० के रूप में 'चम- नियन्त्रण --तप: किलेदं तदवाप्तिसाधनम्-०५।१४ कना' अर्थ प्रकट करने के लिए यह धातु प्रयुक्त की 4. आत्मदमन, और आत्मोत्सर्ग के अभ्यास से सम्बद्ध जाती है, या जब इसका कर्म स्वयं शरीर का ही कोई ध्यान 5. नैतिक गुण, खूबी 6. किसी विशेष वर्ण का अंग होता है, तो उस समय 'आत्मनेपद' में प्रयुक्त | विशेष कर्तव्यपालन 7. सात लोकों में से एक लोक होती है)-उत्तपति सुवर्ण सुवर्णकार:--महा०, परन्तु अर्थात् 'जन-लोक' के ऊपर का लोक (-पुं०) भाष उत्तपमान आतप:-भट्टि० ८।१, शि० २०१४०, उत्तपते- का महीना-तपसि मन्दयभस्तिरभीषमान-शि०६।६३, पाणी--महा० 2. खा पी जाना, यन्त्रणा देना, पीडित (पुं०, नपुं०) 1. शिशिर ऋतु 2. हेमन्त 3. ग्रीष्म करना, तपाना-शि० ९/६७, उप-,1. गर्म करना, ऋतु। सम०-अनुभावः धार्मिक तपश्चर्या का प्रभाव, तपाना 2. पीडित करना, दुःख देना-शि० ९।६५, --अवटः ब्रह्मावर्त देश,-क्लेशः धार्मिक कड़ी साधना निस्,-1. गर्म करना 2. पवित्र करना 3. परिष्कार का कष्ट,-चरणम्,-चर्या कठोर साधना,-तमः करना, परि--1. गर्म करना, जलाना, नष्ट करता इन्द्र का विशेषण, धनः 'साधना का धनी' तपस्वी, 2. प्रज्वलित करना, आग लगाना पश्चात, ---पछताना, भक्त-रम्यास्तपोधनानां क्रिया:-- श०१।१३, शमखेद प्रकट करना, वि-1. चमकना ('उदपुर्वक' प्रधानेषु तपोधनेषु-२२६, ४१, शि० १२२३, रघु. की भांति आत्म.)-रविवितपतेऽत्यर्थ-भर्त०८।१४ १४।१९ मनु० ११।२४२,-निषिः धर्मप्राण व्यक्ति, 2. तपाना, गर्म करना, सम् --- 1. गर्म करना, तपाना संन्यासी-रघु० ११५६,-प्रभाकः,-बलम् कड़ी साधनाओं
-सन्तप्तचामीकर--भट्टि० ३।३, सन्तप्तायसि संस्थि- के फलस्वरूप प्राप्त शक्ति, तप द्वारा प्राप्त सामर्थ्य तस्य पयसो नामापि न ज्ञायते--भर्त० २०६७ 2. दुःखी या अमोघता,-राशिः संन्यासी,-- लोकः जनलोक के होना, पीड़ा सहन करना, खिन्न होना-संतप्तानां ऊपर का लोक,-बनम तपोभूमि, पवित्र वन जहाँ त्वमसि शरणम्-मेघ०७, 'दुःखियों का'-दिवापि संन्यासी कठोर साधना में लिप्त हो-कृतं त्वयोपवन मयि निष्कान्ते संतप्येते गुरू मम-महा०, भर्तृ० २। तपोवनमिति प्रेक्षे-श० १, रघु० ११९०, २।१८, ३१८, ८७ 3. पछताना ।
--बट (वि०) जो बहुत तप कर चुका हो,-विदोषः तप (वि.) [तप - अच] 1. जलाने वाला, तपाने वाला भक्ति की श्रेष्ठता, धर्म सम्बन्धी अत्यन्त कठोर तपा कर समाप्त करने वाला 2. पीड़ाकर, कष्टकर,
__ साधना,-स्थली 1. धार्मिक कठोर साधना की भूमि दुःख,द ----प: 1. गर्मी, आग, आँच 2 सूर्य 3. ग्रीष्म
2. बनारस । ऋतु -शि० ११६६ 4. तपस्या, धार्मिक कडी | तपसः [तप्+असच्] 1. सूर्य 2. चन्द्रमा 3. पक्षी। साधना। सम०-अत्ययः, अन्तः ग्रीष्म ऋतु का | तपस्यः [तपस्-यत्] 1. फाल्गुन का महीना 2. अर्जुन का अन्त और वर्षा ऋतु का आरम्भ-रविपीतजला विशेषण,-स्या धार्मिक कड़ी साधना, तपश्चरण । तपात्यये पुनरोधेन हि युज्यते नदी-कु० ४।४४, | तपस्पति (ना० धा० पर०) तपस्या करना-सुरासुरगुरुः ५।२३ ।
सोऽत्र सपत्नीकस्तपस्यति-श० ७१९, १२, रघु. तपतो [तप् + शतृ +डीप्] ताप्ती नदी ।
१३।४१, १५।४९, भट्टि० १८१२१ । तपनः [तम् +ल्युट] 1. सूर्य-प्रतापात्तपनो यथा--रघ० तपस्विन् (वि०) [तपस्+विनि] 1. तपस्वी, भक्तिनिष्ठ ४।१२, ललाटन्तपस्तपति तपन:-उत्तर० ६, मा०१
2. गरीब, दयनीय, असहाय, दीन-सा तपस्विनी 2. ग्रीष्मऋतु 3. सूर्यकान्तमणि 4. एक नरक का नाम
निर्वृता भक्तु-श. ४, मा० ३, नै० १११३५, (पुं०) 5. शिव का विशेषण 6. मदार का पौधा। सम०
संन्यासी-तपस्विसामान्यमवेक्षणीया-रघु० १४१६७। -आत्मजः, -तनयः यम, कर्ण और सुग्रीव का सम०-पत्रम् सूर्यमुखी फूल । विशेषण,-आत्मजा,-तनया, यमुना और गोदावरी तप्त (भू० क० कृ०) [तप्+क्त ] 1. गर्म किया हुआ, का विशेषण,-इष्टम् ताँबा, - उपल:--मणिः सूर्यकान्त जला हुआ 2. रक्तोष्ण, गरम 3. पिघला हुआ, गला मणि,-छदः सूर्यमुखी फूल ।
हुआ 4. दुःखी, पीड़ित, कष्टप्रस्त 5. (तप का) किया तपनी तपन-डीप] गोदावरी नदी या ताप्ती नदी। गया अनुष्ठान । सम-काञ्चनम् आग में तपाया तपनीयम् [तप् +अनीयर् ] सोना, विशेषतः वह जो आग हुआ सोना, कृच्छम् एक प्रकार की कठोरसाधना, में तपाया जा चुका है---तपनीयाशोक:-मालवि०३, |
-रूपकम् साफ़ की हुई चाँदी।
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