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होना (कर्म० या करण के साथ)--पित्रा पितरं वा । निश्चिति, निश्चयीकरण,---निष्ठ वि० सच्चे आत्मज्ञान संजानीते-सिद्धा. 4. रखवाली करना, खबरदार को प्राप्त करने पर तुला हुआ,---यज्ञः आत्मज्ञानी, रहना-भट्टि०८।२७ 5. राजी होना, सहमत होना दार्शनिक-योगः सच्चा आत्मज्ञान प्राप्त करने 6. (पर०) याद करना, सोचना–मातु: मातरं वा या परमात्मानुभूति प्राप्त करने का मुख्यसाधन, संजानासि-सिद्धा० (प्रेर०) सूचना देना ।
--चिन्तन, विचारणा, शास्त्रम् भविष्य कथन का ज्ञात (वि०) [ज्ञा+क्त] जाना हुआ, निश्चय किया हुआ,
शास्त्र,---साधनम् 1. सच्चा आत्म ज्ञान प्राप्त करने समझा हुआ, सीखा हुआ, समवधारित-दे० 'ज्ञा' का साधन 2. प्रत्यक्ष ज्ञान की इन्द्रिय । ऊपर । सम-सिद्धान्तः पूर्णरूप से शास्त्रों में | ज्ञानतः (अव्य०) ज्ञान+तसिल] ज्ञान पूर्वक, जानबूझकर, निष्णात।
इरादतन । ज्ञाति: [शा--क्तिन 1. पंतक संबंध, पिता, भाई आदि, ज्ञानमय (वि.) [ज्ञान+मयट] 1. ज्ञानयुक्त, चिन्मय
एक ही गोत्र के व्यक्ति (समष्टि रूप से) 2. बन्धु, --इतरो दहने स्वकर्मणां ववृते ज्ञानमयेन वह्निना बांधव 3. पिता। सम-भावः संबंध, रिस्तेदारी, -रघु० ८२० 2. ज्ञान से भरा हुआ,--य:
-भेवः संबंधियों में फट,-विद् (वि.) जो निकटस्थ 1. परमात्मा 2. शिव की उपाधि । व्यक्तियों से संबंध जोड़ता है।
शानिन् (वि.) (स्त्री-~-नी) [ज्ञान+इनि] 1. प्रतिभाजातेयम् ज्ञाति+ढक्] संबंध, रिश्तेदारी।
शाली, बुद्धिमान् (पुं०) 1. ज्योतिषी, भविष्यवक्ता जात (पुं०) [ज्ञा+तृच] 1. बुद्धिमान् पुरुष 2. परिचित । 2. ऋषि, आत्मज्ञानी। व्यक्ति 3. जमानत, प्रतिभू ।
ज्ञापक (वि०) [ज्ञा+णिच-+-वल] जतलाने वाला, सिखाने ज्ञानम् ज्ञा+ल्युट] 1. जानना, समझना, परिचित होना, वाला, सूचना देने वाला, संकेतक, -क: 1. अध्यापक प्रवीणता-सांख्यस्य योगस्य च ज्ञानम् --मा० १७
2. समादेशक, स्वामी,-कम (दर्शन० में) सार्थक 2. विद्या, शिक्षण-बुद्धिर्ज्ञानेन शुध्यति-मनु० ५।१०९,
उक्ति, व्यंजनात्मक नियम, (यहाँ उन शब्दों से ज्ञाने मौनं क्षमा शत्री-रघु० श२२ 3. चेतना,
अभिप्राय है जो अपने शाब्दिक अर्थ की अपेक्षा भी संज्ञान, जानकारी--ज्ञानतोऽज्ञानतो वापि --मनु०
नियमों के संबंध में कुछ अधिक व्यक्त करते हैं)। ८।२८८, जाने अनजाने, जानबूझकर, अनजाने में
| ज्ञापनम् [ज्ञा+णिच् + ल्युट्] जतलाना, सूचना देना, 4. परम ज्ञान, विशेषकर उस धर्म और दर्शन की
सिखलाना, घोषणा करना, संकेत देना। ऊँची सचाइयों पर मनन से उत्पन्न ज्ञान जो मनुष्य
शापित (वि०) [ज्ञा+णि+क्त] जतलाया गया, सूचित को अपनी प्रकृति या वास्तविकता को जानना, तथा । किया गया, घोषित किया गया, प्रकाशित । आत्मसाक्षात्कार या परमात्मा से मिलन की बात । जीप्सा [ज्ञा+सन्+अ-1-टाप्] जानने की इच्छा। सिखलाता है (विप० कर्म) तु० ज्ञानयोग और कर्मयोग | | ज्या ज्या+अ+टाप] 1. धनुष की डोरी-विश्राम भग० ३।३ 5. बुद्धि ज्ञान और प्रज्ञा की इन्द्रिय । लभतामिदं च शिथिलज्याबन्धमस्मद्धनु:- श० २१६, सम०---अनुत्पादः अज्ञान, मूर्खता,-आत्मन् (वि०) रघु० ३.५९, ११११५, १२॥१०४ 2. चाप के सिरों सर्वविद, बुद्धिमान,-इन्द्रियम प्रत्यक्षीकरण को इन्द्रिय को मिलाने वाली सीधी रेखा 3. पृथ्वी 4. माता । (यह पांच है-त्वचा, रसना, चक्षु, कर्ण, और घ्राण, | ज्यानिः (स्त्री०) [ज्या+नि] 1. बुढापा, क्षय 2. छोड़ना, 'बद्धीन्द्रिय' शब्द को देखो 'इन्द्रिय' के नीचे), काण्डम् त्यागना 3. दारेया, नदी। वेद का आंतरिक या रहस्यवाद विषयक भाग जिसमें | ज्यायस् (स्त्री०-सी) [अयमनयोरतिशयेन प्रशस्यः वृद्धो वा वास्तविक आत्मज्ञान या ब्रह्मज्ञान का उल्लेख है, +-ईयसुन् ज्यादेशः] 1. आय में बड़ा, अधिकतर इसके विपरीत संस्कारों का ज्ञान (कर्मकांड) भी वेद वयस्क-प्रसवक्रमेण स किल ज्यायान्- उत्तर० ६ में निहित है,---कृत (वि.) जानबूझ कर या इरादतन ।
2. दो में बढ़िया श्रेष्ठतर, योग्यतर--मनु० ४१८, किया हुआ,—गम्य (वि०) समझ के द्वारा जानने ३।१३७, भग० ३.१,८ 3. महत्तर, बहत्तर 4. (विधि योग्य,--चक्षुस् (नपुं०) बुद्धि की आँख, मन की ___ में) जो अवयस्क न हो अर्थात् वयस्क या अपने कार्यों आँख, बौद्धिक स्वप्न (विप० चर्म चक्षुस्)----सर्व तु । के लिए उत्तरदायी। समवेक्ष्येदं निखिलं ज्ञानचक्षुषा-मनु० २१८, ४।२४, ज्येष्ठ (वि.) [अयमेषामतिशयेन वृद्धः प्रशस्यो वा+ इष्टन, (पुं०) बुद्धिमान् और विद्वान् पुरुष,-तस्वम वास्तविक ज्यादेशः] 1. आयु में सब से बड़ा, जेठी 2. श्रेष्ठतम, ज्ञान, ब्रह्मज्ञान, तपस् (नपुं०) सत्यज्ञान की प्राप्ति सर्वोत्तम 3. प्रमुख, प्रथम, मुख्य, उच्चतम,-ठः रूप तपस्या,-वः गुरु, दा सरस्वती का विशेषण, | 1. बड़ा भाई, रघु० १२।१९, ३५ 2. चान्द्रमास -बल (वि.) जिसमें ज्ञान की कमी है।---निश्चयः, । (ज्येष्ठ का महीना),--ष्ठा 1. सबसे बड़ी बहन 2.१८
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