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प्राप्त कर ली है (रिः) बुद्ध का विशेषण, आत्मन् ( वि० ) जितेन्द्रिय, आवेशशून्य, आहव ( वि० ) विजयी, इन्द्रिय ( वि० ) जिसने अपनी वासना पर विजय प्राप्त कर ली है या जिसने अपनी ज्ञानेन्द्रियोंरूप, रस, गन्ध, स्पर्श और शब्द को वश में कर लिया है - श्रुत्वा स्पृष्ट्वाऽथ दृष्ट्वा च भुक्त्वा घ्रात्वा च यो नरः, न हृष्यति ग्लायति वा स विज्ञेयो जितेन्द्रियः - मनु० २०९८, काशिन् (वि०) विजयी दिखाई
देने वाला, विजय का अहंकार करने वाला, अपनी विजय की शान दिखाने वाला - चाणक्योऽपि जितकाशितया मुद्रा० २, जितकाशी राजसेवकः - तदेव -- कोप, — क्रोध ( वि० ) स्थिरता, शान्तचित्तता, अनुत्तेजनीयता, नेमिः पीपल के वृक्ष की लाठी, श्रमः -- परिश्रम करने का अभ्यस्त, कठोर, स्वर्गः जिसने स्वर्ग प्राप्त कर लिया है ।
जिति: ( स्त्री० ) [ जि + क्तिन्] विजय, दिग्विजय । जितुम:, जित्तमः [जित् + तम, जित्तमः जितुम पृषो० साधुः ] मिथुन राशि राशिचक्र में तीसरी राशि ( 'ग्रीक' शब्द) । जिल्वर ( वि० ) ( स्त्री० री) [ जि+क्वरप् ] विजयी, जीतने वाला, विजेता- शास्त्राण्युपायंसत जित्वराणि – भट्टि० १ १६, कदलीकृत भूपाल भ्रातृभिर्जित्वरैदिशाम् — शि० २।९ ।
जिन ( वि० ) [ जि + नक् ] 1. विजयी, विजेता 2. अतिवृद्ध, - मः 1. किसी वर्ग का प्रमुख, बौद्ध या जैनसाधु, जैनी अर्हत् या तीर्थंकर 3. विष्णु का विशेषण । सम० - इन्द्र:, - ईश्वरः 1. प्रमुख बौद्ध सन्त 2. जैन तीर्थंकर, सपन ( नपुं०) जैनमन्दिर या विहार । जिवाजिव : [ जीवञ्जीव, पृषो० साधुः ] चकोर पक्षी । जिष्णु (वि० ) [ जि+गुल्नु ] 1. विजयी, विजेता, – रघु०
४८५, १०।१८ 2. विजय लाभ करने वाला, लाभ उठाने वाला 3. ( समास के अन्त में ) जीतने वाला, आगे बढ़ जाने वाला - अलिनीजिष्णुः कचानां चयः -भट्टि० १६, शि० १३।२१, ४णु: 1. सूर्य 2. इन्द्र 3. विष्णु 4. अर्जुन
जिह्य (वि० ) [ जहाति सरलमार्ग, हा + मन् सन्वत् आलोपश्च] 1. ढलवां, कुटिल, तिरछा 2. टेढ़ा, बांका, वक्रदृष्टि ऋतु० १।१२ 3. घुमावदार, वक्र, टेढ़ामेढ़ा 4. नैतिकता की दृष्टि से कुटिल, धोखेबाज, बेईमान, दुष्ट, अनीतिपूर्ण धृतहेतिरप्यधृतजिह्ममतिः - कि० ६।२४ सुहृदर्थमीहितमजिह्यधियाम् शि० ९/६२ 5. धुंधला, निष्प्रभ, फीका विधिसमयनियोगातिसंहारजिह्मम् कि० १।४६ 6. मन्थर, आलसी - हाम्- बेईमानी, झूठा व्यवहार । सम० - अक्ष ( वि० ) भंगा, ऐंचाताना, गः साँप, गति (वि०)
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टेढ़ामेढ़ा चलने वाला, तिर्यग्गति से चलने वाला ऋतु० १।१३, मेहन: मेंढक, - योधिन् (वि० ) अधर्मी योद्धा, शल्यः खर का वृक्ष । जिह्नः [ह्वे+ड द्वित्वादि ] जीभ । जिह्वल (वि०) [ जिह्व + ला + क] जिभला, चटोरा । जिह्वा [ लिहन्ति अनया - लिह + वन् नि० ] 1. जीभ
2. आग की जीभ अर्थात् लौ । सम० - आस्वादः चाटना, लपलपाना, - उल्लेखनी, उल्लेखनिका, - निर्लेखनम् जीभ खुरचने वाला पः 1 कुत्ता 2. बिल्ली 3 व्याघ्र 4. चीता 5. रीछ, मूलम् जिल्ला की जड़, - मूलीय ( वि०) क् और ख से पूर्व विसर्ग की ध्वनि, तथा कण्ठ्य व्यञ्जनों की ध्वनि का द्योतक शब्द (व्यro ), रवः पक्षी, लिह (पुं०) कुत्ता, - लौल्यम् लालच, शल्यः खैर का पेड़ ।
जीन (वि०) [ज्या+क्त] बूढ़ा, वयोवृद्ध, क्षीण, - नः चमड़े का थैला - जीनकार्मुकबस्तावीन् पृथगदद्याद्विशुद्धये -- मनु० ११ । १३९ ।
जीमूतः [ जयति नभः, जीयते अनिलेन जीवनस्योदकस्य मूर्त "बन्धो यत्र, जीवन जलं मूतं बद्धम् अनेन जीवनं मुञ्चतीति वा पृषो० तारा०] 1. बादल - जीमूतेन स्वकुशलमयीं हारयिष्यन् प्रवृत्ति - मेघ० ४ 2. इन्द्र का विशेषण | सम० --- कूटः एक पहाड़, वाहनः 1. इन्द्र 2. नागानन्द नाटक में नायक, विद्याधरों का राजा (कथा सरित्सागर में भी उल्लेख [ जीमूतवाहन, जीमूतकेतु का पुत्र था, अपनी दानशीलता तथा वृत्ति के कारण प्रख्यात था। जब उसके बन्धुबान्धवों ने ही उसके पिता को राजधानी पर आक्रमण किया तो उसने अपने पिता जी को कहा कि इस राज्य को अपने आक्रमणकारी बन्धुबान्धवों के लिए छोड़ दो तथा स्वयं मलयपर्वत पर रह कर अपना पवित्र जीवन बिताओ। एक दिन कहा जाता है कि जीमूतवाहन ने उस साँप का स्थान ग्रहण किया जो कि अपने समझौते के अनुसार गरुड़ को उसके दैनिक भोजन के रूप में प्रस्तुत किया जाना था । अन्त में अपने उदार तथा हृदयस्पर्शी व्यवहार के द्वारा जीमूत वाहन ने गरुड़ को इस बात के लिए अभिप्रेरित किया कि वह साँपों को खाने की आदत छोड़ दे । नाटक में इस कहानी को बड़े ही कारुण्यपूर्ण ढंग से कहा गया है ], वाहिन् (पुं०) धूआँ । जीरः [ ज्या + रक्, सम्प्रसारणं दीर्घश्च ] 1. तलवार 2. जीरा ।
जीरकः, जीरणः [जीर + कन्, पृषो० कस्य णः ] जीरा । जीर्ण (वि० ) [ ज+क्त]1. पुराना, प्राचीन 2. घिसा
पिसा, शीर्ण, बरबाद, ध्वस्त, फटा-पुराना (वस्त्रादिक ) -- वासांसि जीर्णानि यथा विहाय - भग० २।२२,
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