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( ४०६ )
3. पचा हुआ,सुजीर्णमन्त्रं सुविचक्षणः सुतः-हि. ] याज्ञ०२१३०१ 2. सेवा करना, आश्रित रहना--शि० ११२२,–ण: 1. बूढ़ा आदमी 2. वृक्ष,--णम् 1. गुग्गुल ९।३२ । 2. बुढ़ापा, क्षीणता। सम०-उबारः पुराने को नया
जीव (वि०) [जीव+क] जीवित, विद्यमान,-व: बनाना, मरम्मत, विशेषकर किसी मन्दिर धर्मार्थ
1. जीवन का सिद्धांत, श्वास, प्राण, आत्मा-गतजीव, संस्था या धार्मिक, स्थान की,-उद्यानम् उजड़ा
जीवत्याग, जीवाशा आदि 2. वैयक्तिक या व्यक्तिगत हुआ तथा उपेक्षित बाग,- ज्वरः पुराना बुखार,
रूप से मानव शरीर में रहने वाला आत्मा जो कि इस अधिक दिनों से रहने वाला मन्द ज्वर,–पणंः
शरीर को जीवन, गति तथा संवेदना देता है (जीवाकदम्ब वृक्ष,-बाटिका उजड़ी हुई बगीची,-वनम् |
त्मन' कहलाता है, विप० 'परमात्मन्' शब्द है) याज्ञ. वैक्रान्तमणि।
३३१३१, मनु० १२।२२, २३ 3. जीवन, अस्तित्व मोर्णकः (वि०) [जीर्ण+कन् ] करीब-करीब सूखा या | 4. जानवर, जीवधारी प्राणी 5. आजीविका, व्यवसाय मुरझाया हुआ।
6. कर्ण का नाम, 7. एक मरुत् का नाम 8. 'पुष्य' जीणिः (स्त्री० [ज़+क्तिन् ] 1. बुढ़ापा, क्षीणता, कृशता, | नक्षत्रपुंज। सम०-- अन्तक: 1. चिड़ीमार, बहेलिया दुर्बलता 2. पाचन-शक्ति ।
2. कातिल, हत्यारा,-आदानम् (पुं०) मानव शरीर जीव (भ्वा० पर०-जीवति, जीवित) 1. जीना, जीवित रहना
में रहने वाला आत्मा (विप० परमात्मन)-आदानम् -यस्मिजीवन्ति जीवंति बहवः सोऽत्र जीवति-पंच.
स्वस्थ रुधिर निकालना, (आयु. में) रुधिर निकलना, २२३, मा जीवन् यः परावज्ञादुःखदग्धोऽपि जीवति
-~-आधानम् जीवन का प्ररक्षण-आधारः हृदय-इंध. ---शि० २।४५, मनु० २।२३५ 2. पुनर्जीवित करना,
नम् दहकती हुई लकड़ी, जलता हुआ काठ,--उत्सर्गः जीवित होना 3. (किसी वृत्ति के सहारे) रहना, निर्वाह
प्राणोत्सर्ग करना, ऐच्छिक मृत्यु, आत्महत्या,-ऊर्णा करना, आजीविका करना (करण के साथ)-सत्या
जीवित पशु की अन---गहम्, - मन्दिरम् आत्मा का नृतं तु वाणिज्यं तेन चैवापि जीव्यते-मनु० ४।६,
वासगृह, शरीर,-प्राहः जीवित पकड़ा हुआ कैदी, जीवः विपणेन च जीवन्तः ३.१५२, १६२, ११०२६, कभी कभी
(जीवजीवः भी) चकोर पक्षो,-दः 1. वैद्य 2. शत्रु, सजातीय कर्म के साथ इसी अर्थ में प्रयुक्त--अजिह्मा
-वशा नश्वर अस्तित्व,-धनम 'जीवित दौलत' जीवमशठां शुद्धां जीवेद् ब्राह्मणजीविकाम-मनु० ४।११
धारी प्राणियों के रूप में संपत्ति, पशुधन,-पानी पृथ्वी, 4. (आले.) आश्रित रहना, जीवित रहने के लिए
-पतिः (स्त्री०)-पत्नी वह स्त्री जिसका पति जीवित किसी पर निर्भर करना (अधि. के साथ)--चौराः
है,-पुत्रा,-वत्सा वह स्त्री जिसका पुत्र जीवित प्रमत्ते जीवन्ति व्याधितेप चिकित्सकाः, प्रमदाः काम
है,-मातृका सात माताएं या देवियाँ जो प्राणियों का 'यानेष यजमानेष याचकाः, राजा विवदमानेष नित्यं
पालन पोषण करने वाली मानी जाती हैं (कुमारी मूर्खेषु पण्डिताः महा०, प्रेर०--1. फिर जान डालना,
धन दानन्दा विमला मंगला बला पद्मा चेति च विख्याता: 2. पालन पोषण करना, (भोजन द्वारा) पालना,
सप्तता जीवमातृकाः)-रक्तम् स्त्री का रज, आर्तव, शिक्षित करना, सिखाना पढ़ाना, अति-, 1. जीवित
-लोक: जीवधारी प्राणियों का संसार, मर्त्यलोक, रह जाना 2. जीवन प्रणाली में दूसरों से आगे बढ़
प्राणिजगत् - त्वत्प्रयाण शान्तालोकः सर्वतो जीवजाना (अधिक शान से रहना)--अत्यजीवदमराल
लोक:- मा० ९।३७, जीवलोकतिलक: प्रलीयते-२१, केश्वरो-रघु० १९११५, अनु -1. लटकना, सहारे इसी प्रकार--स्वप्नंद्रजालसदृशः खलु जीवलोकः---शा० निर्भर रहना, जीवित रहना, सेवा करना,--स तु तस्याः
२२, भग० १११७ उत्तर० ४११७, 2. जीवधारी प्राणी, पाणिग्राहक मनजीविष्यति-दश० १२२ 2. बिना ईर्ष्या
मनुष्य-दिवस इवाभ्रश्यामस्तपात्यये जीवलोकस्य-श. के देखना-यां तां श्रियमसूयामः पुरा दृष्ट्वा युधि
३३१२, आलोकमर्कादिव जीवलोकः---रघु० ५।५५, ष्ठिरे, अद्य तामनुजीवाम: महा0 3. किसी के लिए
- वृत्तिः (स्त्री०) पशुपालन, गायभंस आदि पालन का जीवित रहना 4. जीवनचर्या में दूसरों के पीछे चलना
रोजगार,---शेष (वि.) जिसकी केवल जान बची हो, ----- रघु० १९०१५, अने० पा० (अन्वजीवत् या अव्य
जो सब कुछ छोड़ कर केवल जान लेकर भाग आया जीवत) 5. जीवित रहना, बचा रहना, उद्,-पुनर्जी
हो,--संक्रमणम् जीव का एक शरीर छोड़कर दूसरे वित करना, फिर जीवित होना-उदजीवत् सुमित्राभूः
शरीर में जाना,-साधनम् धान्य, अनाज,-साफल्यम् --भट्टि०१७४९५, उप--, 1. किसी आधार पर जीवित
जीवनधारण करने के मुख्य लक्ष्य को प्राप्ति,-सःजीवरहना, निर्वाह करना, आजीविका करना--का वृत्ति
धारी प्राणियों की माता, वह स्त्री जिसके बच्चे जीवित मुपजीवत्यार्यः, संवाहकवत्तिमपजीवामि-मच्छ०२, ।
हों, स्थानम् 1. जोड़, अस्थिसंधि 2. मर्म, हृदय । शेषास्तमुपजीवेयुर्यथैव पितरं तथा-मनु० ९।१०५, 'जीवकः [ जीव् + णिच् +ण्वुल ] 1. जीवधारी प्राणी
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