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( ३९० )
मनु०८१४९, १८७, अमरु १६, शि० १३३११ 2. बद- छादम् [छद्+णि+घञ्] छप्पर, छत । माशी, धूर्तता 3. दलील, बहाना, ब्याज, बाह्यरूप, छावनम् खिद् +णिच् + ल्युट्] 1. आवरण, पर्दा (आलं. (इस अर्थ में बहुधा 'उत्प्रेक्षा' बतलाने के लिए इसका | भी) विनिर्मितं छादनमज्ञतायाः-भत० २१७ 2. छिपाना प्रयोग किया जाता है), परिखावलयच्छलेन या न परेषां 3. पत्र 4. परिधान । ग्रहणस्य गोचरा---०२।९५, प्रत्ययं पूजामुपदाच्छ- छादित (वि०) दे० छन्न । लेन-रषु० ७।३०,५४, १६३२८, भट्टि० १११, अमरु छापिक: [छन्+ठक] धूर्त, कपटी - मनु० ४।१९५ । १५, मा० ९।१4. इरादा 5. दुष्टता 6. हेत्वाभास
छान्वस (वि.) (स्त्री०-सी) [छन्दस+अण] 1. वैदिक, 7. योजना, उपाय, तरकीब।
वेदों के लिए विशेष शब्द जैसा कि "छान्दसः प्रयोगः" उलन,पा[छल+ल्युट, स्त्रियां टाप च] धोखा देना,
2. वेदाध्यायी, वेदज्ञ 3. पद्यमय, छन्दोबद्ध,-सः वेदठगना, बुद्धि में दूसरे को पराजित करना।
जाता ब्राह्मण। छत्तयति (ना० धा० पर०) अपनी चतुराई से बुद्धि में दूसरे छाया [छो+य+टाप्] 1. छाँह, छाँव (त. समास के अन्त
को पराजित करना, धोखा देना, ठगना--बलि छलयते में 'छाय' हो जाता है जब कि छाँह की सघनता का गीत० १, शैवाललोलाश्छलयन्ति मीनान् -रघु० १६। | बोध अपेक्षित हो--उदा० इक्षुच्छायनिषादिन्यः --रघु० ६१, भग०१०।३६, अमरु ४१ ।
४।२०, इसी प्रकार ७।४, ५०, मुद्रा० ४१२१,) छाया. छलिकम् [छल+ठन्] एक प्रकार का नाटक या नृत्य - | मधः सानुगतां निषेव्य---कु. ११५, ६।४६, अनुभवति छलिक दुष्प्रयोज्यमुदाहरन्ति--मालवि० २।
हि मूर्ना पादपस्तीव्रमुष्णं शमयति परितापं छायया छलिन् (पुं०) [छल+इनि] ठग, उचक्का, शठ।
संश्रितानां-श० ५।७, रघु० २७५, २६, ३७०, छल्ति, स्ली (स्त्री) [छद्+क्विप, तां लाति-ला-+क मेघ० ६७ 2. प्रतिबिम्वित मूर्ति, अक्स-छाया न
गौरा की] 1. वल्कल, छाल 2. फैलने वाली लता मुर्छति मलोपहतप्रसादे शुद्धे तु दर्पणतले सुलभावकाशा 3. सन्तान, प्रजा, सन्तति, औलाद ।
-श० ७.३२ 3. समरूपता, समानता 4. असत्य हविः (स्त्री०) [छयति असारं छिनत्ति तमो वा-छो+वि कल्पना, दृष्टिभ्रम 5. रंगों का समामिश्रण 6. दीप्ति,
किञ्च वा कोप] 1. आभा, चेहरे की सुर्सी, चेहरे का प्रकाश---छायामण्डललक्ष्येण - रघु० ४।५, रत्नच्छायारंगरूप-हिमकरोदयपाण्डुमुखच्छविः-रघु० ९।३८, व्यतिकर:----मेघ०१५।३६ 7. रंग--मा०६।५४. चेहरे छविः पाण्डुरा--श० ३।१०, मेघ० ३३ 2. सामान्य की रंगत, स्वाभाविक रंगरूप,-केवलं लावण्यमयी रंगरूप 3. सौन्दर्य, आभा, कान्ति-छविकरं मुखचूर्ण- छाया त्वां न मुञ्चति-श० ३, मेधैरन्तरितः प्रिये तव मतुश्रियः-रषु० ९४५ 4. प्रकाश, दीप्ति 5. त्वचा, मुखच्छायानुकारी शशी--सा.द.१. सौन्दर्य-क्षाम
च्छायं भवनम्-मेघ०८०११०४ 10. रक्षा 11. पंक्ति, छाग (वि.) (स्त्री०-गी) [छो+गन बकरे या बकरी रेखा 12. अन्धकार 13. रिश्वत 14. दुर्गा 15. सूर्य की
से सम्बन्ध रखने वाला-याज्ञ. १०२५८,-: (स्त्री० पत्नी (यह सूर्य की पत्नी संज्ञा की प्रकृति-या छाया गी) 1. बकरा बकरी, ब्राह्मणश्छागतो यथा (वंचितः) ही थी, फलतः जिस समय संज्ञा अपने पति को बिना
-हि० ४।५३, मनु० ३।२६९ 2. मेष राशि,--गम् बताये अपने पिता के घर चलोग ई तो छाया से सूर्य के बकरी का दूध । सम०-भोजन (पुं०) भेड़िया,-मुखः तीन सन्तान हुई-दो पुत्र-सावणि और शनि, एक कार्तिकेय का विशेषण,-~रवः,-वाहनः आग की देवता कन्या --तपनी) । सम० - अङ्कः चन्द्रमा,-करः छाता अग्नि की उपाधि ।
लेकर चलने वाला,--प्रहः शीशा, दर्पण, सनयः,-सुतः छागणः [छगण+अण] सूखे कण्डों की आग ।
सूर्यपुत्र शनि, सबः वह वृक्ष जिसकी छाया धनी हो, छागल (वि०) (स्त्री० - ली) [छगल+अण् ] बकरी से
छायादार पेड़-मेष०१-द्वितीय (वि.) वह जिसका प्राप्त होने वाला या उससे सम्बद्ध,-ल बकरा।
साथ एक मात्र छाया हो, अकेला, पथः पर्यावरण छात (वि.)[छो+क्त 1. काटा गया, विभक्त 2. निर्बल --रघु०१३।२,--भृत् (पुं०) चन्द्रमा,-मानः चन्द्रमा, दुबलापतला, कृश।
-नम् छाया का मापना,-मित्रम् छतरी,- मृगपरः छाछवं गुरोर्वैगुण्यावरणं शीलमस्य-सिद्धा० छत्रण]
चन्द्रमा,--यन्त्रम् छाया द्वारा काल का ज्ञान कराने विद्यार्थी, शिष्य,-त्रम् एक प्रकार का मधु । सम०
वाला यन्त्र, धूपघड़ी। डकाव्य का अन्यमनस्क विद्यार्थी जिसे श्लोकों | छायामय (वि.)[छाया+मयट ] प्रतिबिम्बित, छायादार। का केवल बारम्भिक पद याद हो, बर्शनम् एक दिन छिः (स्त्री) [छो+कि बा० ] गाली, अपशब्द। रक्खे हुए दूध से निकाला हुआ मक्खन,-व्यंसकः | छिक्का [छिक्+के+क टाप् ] छींकना, छींक । मन्दबुद्धि या धूर्त विद्यार्थी।
छित (वि०) दे'छात'।
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