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( २९३ ) कूलन्धय (वि.) [ कूल+धे+खश्, मुम् ] चूमता हुआ | कृ, स्वाहा कृ आदि 21. गुजारना (समय) विताना अर्थात् नदी के तट को सीमा बनाने वाला।
-वर्षाणि दश चक्र:--बिताये, क्षणं कुरु---जरा ठहकलमुबुज (वि०) [कूल+उद्+रुज्+खश्, मुम् ] रिए 22. की ओर मुड़ना, ध्यान मोड़ना, दृढ़ निश्चय
किनारों को तोड़ने वाला (जैसे नदियाँ, हाथी)-रघु० करना (अधि० या सम्प्र० के साथ)---नावमें कुरुते ४॥२२॥
मनः---मनु० १२।११८, नगरगमनाय मतिं न करोति कूलमुह (वि.) [ कूल+उद्+वह, --खश, मुम् ] किनारे
-श०२ 23. दूसरे के लिए कोई काम करना (चाहे को फाड़ डालने तथा बहा कर ले जाने वाला-मा०
लाभ के लिए हो या हानि पहुँचाने के लिए);-यदनेन ५।१९।
कृतं मयि, असौ कि मे करिप्यति आदि 24. उपयोग कूष्माण्डः [ कु ईषत् ऊष्मा अण्डेषु बीजेपु यस्य ] पेठा,
करना, काम में लगाना, उपयोग में लाना-कि तया कुम्हड़ा, तूमड़ी।
क्रियने धेन्वा--पञ्च०१ 25. विभवत करना, टुकड़े कहा [कु ईषत् उह्यतेऽत्र, कु-उह. | क ] कुहरा, धुंद ।
टुकडे करना ('धा' पर समाप्त होने वाले क्रिया विशे
पणा के साथ) विधा कृ दो टुकड़े करना, शतधा कृ, कृi (स्वादि० उभ०-कृणोति, कृणुते) प्रहार करना,
सहस्रधा कृ आदि 26. अधीन बनाना, ('सात्' पर घायल करना, मार डालना ii (तना० उभ-करोति,
समाप्त होने वाले किया विशेषणों के साथ) पूर्ण रूप कुरुते, कृत) 1. करना-तात कि करवाण्यहम्
से किसी विशेष अवस्था को प्राप्त कराना आत्म2. बनाना - गणिकामवरोधमकरोत्-दश०, नृपेण चके
सात्कृ, अधीन करना अपने में लीन करना--रघु० युवराजशब्दभाक् रघु० ३।४५, युवराजः कृतः आदि
८. भम्ममा कृ राख बना देना, यह धातु बहुधा 3. निर्माण करना, गड़ना, तैयार करना कुम्भकारी
मंज्ञा, बिटोपण और अव्ययों के साथ उनको क्रिया घटं करोति, कटं करोति आदि 4. बनाना, रचना करना-गुरूं कुरू, सभा कुरु मदर्थे भोः 5. पैदा करना,
बनाने के लिए कुछ कुछ अंग्रेजी के प्रत्यय ' या निमित्तभूत होना, उत्पन्न करना–रतिमभयप्रार्थना
न' की भांति प्रयुक्त होता है और अर्थ होता है कुरुते-ग० २११ 6. वनाना, क्रमबद्ध करना,-अनि
"किसी व्यक्ति या वन को वह बना देना जो वह करोति कपोतहस्तकं कृत्वा 7. लिखना, रचना करना
पहले नहीं है' उदा० कृष्णीकृ उस वस्तु को जो पहले . चकार सुमनोहरं शास्त्रम पञ्च० १ 8. मम्पन्न
से काली नहीं है कालो करना अर्थात् Blacken,
इसी प्रकार स्वेतीकृ--सफेद करना (whiten), करना, व्यस्त हाना पूजां करोति 9. कहना, वर्णन
घनीकृत ठोस बना दना (Slidity); विरलीकृ करना, इति बहुविधाः कथा: कुर्वन् आदि 10. 'पालन करना, कार्यान्वित करना, आज्ञा मानना, एवं
दूर दूर कहीं कहीं करना (Pujy), आदि । कभी क्रियते युप्मदादेश: - मा० १, या करियामि बचस्तव
की इस प्रकार की रूप रचना दूसरे अर्थों में भी या शासनं मे कुहाव आदि 11. प्रकाशित करना, पूग
होती है--उदा० कोडीकृ--छाती से लगाना, आलिकरना, कार्य में परिणत करना- सत्सङ्गतिः कथय
गन करना, भस्मीकृ-राख करदेना, प्रवणीकृ - रुचि किन करोति पंसाम - भर्त० १२३ 12. फेंकना, पैदा करना, झुकना, तृणीकृ-निनके की भांति तुच्छ एवं निकालना, उत्सर्ग करना, छोड़ना मृत्रं कृ मूत्रात्मर्ग
हीन समझना, मंदीकृ-शिथिल करना, चाल धीमी करना, पेशाव करना, इसी प्रकार पुरीपं कृ टट्टी
करना, इसी प्रकार शलाकृ-नोकदार लोहे की सलाखों फिरना 13. धारण करना, पहनना, ग्रहण करना
के सिरे पर रख कर भूनना, सुखाकृ-प्रसन्न करना, - स्त्रीरूपं कृत्वा, नानारूपाणि कुर्वाण:- याज्ञ०
समयाकृ समय बिताना आदि। विशे०--यह धातु ३१६२ 14. मुंह से निकलना, उच्चारण करना
उभयपदी है, परन्तु निम्नलिखित अर्थों में आत्मने-मानुपी गिरं कृत्वा, कलहं कृत्वा आदि 15. रग्बना, पी ही रहती है:-(क) क्षति पहुँचाना (ख) निन्दा पहनना (अधि० के साथ)-क हारमकरोत् । का० करना, कलंकित करना (ग) काम देना और (घ) २१२, पाणिमरसि कृत्वा आदि 16. सौंपना (कोई बलात्कार करना, हिंसात्मक कार्य करना (ङ) तैयारी कर्तव्य), नियत करना अध्यक्षान्त्रिविधानकर्यात्तत्र करना, दशा बदलना, मोड़ना (च) सस्वर पाठ करना तत्र विपश्चितः । मनु० ७८१ 17. पकाना (भोजन) (छ) काम में लगाना, प्रयोग में लाना--दे० पा० जैसा कि 'कृतान्न' में 18. सोचना, आदर करना,
१।३। ३२, विशे० कृ धातु का संस्कृत साहित्य में खयाल करना दृष्टिरतणीकृतजगत्रयसत्वसारा बहत प्रयोग मिलता है, इसके अर्थ भी नाना प्रकार से ----उत्तर०६।१२ 19. ग्रहण करना (हाथ में)-कुरु अदलने बदलते रहते हैं या सम्बद्ध संज्ञा के अनुसार प्रायः करे गुरुमेकमयोधनम नै०८१५९ 20. ध्वनि करना अनन्न अर्थ हो जाते है---उदा० पदं कृ,-कदम रखना -यथा खात्कृत्य, फूत्कृत्य भुङ्क्ते, इसी प्रकार वपद ---आश्रम पदं करिष्यसि-श० ४११९, क्रमेण कृतं
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