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( ३५३ ) गरिक (वि.) (स्त्री०-को) [गिरि + ठञ् ] पहाड़ पर ।। प्रकार बुद्धि, दृष्टि', श्रवण आदि 4. पृथ्वी पर उत्पन्न,-क:-कम् गेरु, कम सोना ।
घूमने वाला (र) 1. पशुओं का क्षेत्र, चरागाह-- गरेयम् [गिरि+ढक] शिलाजीत ।
उपारता: पश्चिमरात्रिगोचरात-कि० ४१० गो (पु०, स्त्री०) कर्तृ• गौः [गच्छत्यनेन, गम् करणे डो 2. मंडल, विभाग, प्रांत, क्षेत्र 3. इन्द्रियों का परास, तारा०] 1. मवेशी, गाय (ब० व०) 2. गौ से उप
इन्द्रियों का विषय-श्रवणगोचरे तिष्ठ (जहाँ तक लब्ध वस्तु- दूध, मांस चमड़ा आदि 3. तारे 4. आकाश कानों से सुना जा सके-वहीं ठहरो) नयन गोचरं या 5. इन्द्र का वज्र 6. प्रकाश की किरण 7. हीरा 8. स्वर्ग दिखाई देना 4. क्षेत्र, परास, पहुंच-हर्तर्याति न 9. बाण, (स्त्री०) 1. गाय-जुगोप गोरूपधरामिवो- गोचरम् -भर्तृ० २।१६ 5. (आलं०) पकड़, दबाव, र्वीम् --रघु० २।३, क्षीरिण्यः सन्तु गाव:- मच्छ० शक्ति, प्रभाव, नियन्त्रण-कः कालस्य न गोचरान्तर१०१६० 2.पृथ्वी -दुदोह गां स यज्ञाय -रघु०१।२६, गत:-पंच० १११४६, अपि नाम मनागवतीर्णोऽसि रतिगामात्तसारां रघुरप्यवेक्ष्य-५।२६, १११३६, भग० रमणबाणगोचरम्-मा० १ 6. क्षितिज,-चमन १५।१३, मेघ० ३० 3. वाणी, शब्द-रघोरुदारामपि । (नपुं०) 1. गोचर्म 2. विशेष माप (सतह नापने का) गां निशम्य-रघु० ५.१२, २०५९, कि० ४१२० ----वशिष्ठ के अनुसार परिभाषा-दशहस्तेन वंशेन 4. वाणी की देवता-सरस्वती 5. माता 6. दिशा | दशवंशान् समंततः, पंच चाभ्यधिकान् दद्यादेतद्गोचर्म 7. जल (ब० व०) 8. आँख (पु.) 1. साँड, बैल चोच्यते । वसनः शिव का विशेषण,--चारक: ग्वाला, -असञ्जातकिणस्कन्धः सुखं स्वपिति गोगडि:-काव्य चरवाहा,-जरः बूढ़ा बैल या साँड,-जलम् गोमूत्र, १०, मनु० ४१७२, तु० जरद्गव 2. शरीर के बाल, -~-जागरिकम् मांगलिकता, आनन्द, तल्लजः श्रेष्ठ रोंगटे 3. इन्द्रिय 4. वृषराशि 5. सूर्य 6. (गणित में) बैल या साँड, तीर्थम् गौशाला,-त्रम् 1. गौशाला नौ की संख्या 7. चन्द्रमा 8. घोड़ा । सम०--कण्टकः, 2. पशुशाला 3. परिवार, वंश, कुल परम्परा--गोत्रण
-कम बैलों द्वारा खूदा हुआ फलत: जाने के अयोग्य | माठरोऽस्मि-सिद्धा०, इसी प्रकार कौशिकगोत्राः, स्थान या सड़क 2. गाय के खुर 3. गाय के खुर की वसिष्ठगोवा: -आदि-मनु० ३.१०९, ९।१४१ नोक, कर्णः 1. गाय का कान 2. खच्चर 3. सांप 4. नाम, अभिधान--जगाद गोत्रस्खलिते च का न तम् 4. बालिश्त (अंगुठे के सिरे से कन्नो की अंगुली तक --० ११३०, देखो स्खलित नी०, मद्गोत्राएं की दूरी) 5. दक्षिण में स्थित एक तीर्थस्थान का नाम, विरचितपदं गेयमद्गातुकामा-मेघ० ८६ शिव का प्रियस्थान—श्रितगोकर्णनिकेतमीश्वरम-रघु० 5. समुच्चय 6. वृद्धि 7. वन 8. खेत 9. सड़क ८.३३ 6. एक प्रकार का बाण, · किराटा,-किरादिका 10. संपत्ति, दौलत 11. छतरी, छाता 12. भविष्य का मैना पक्षी,---किल:--कोल: 1. हल 2. मसल,-कुलम् ज्ञान 13, जाति, श्रेणी, वर्ग, (--त्रः) पहाड़, कोला 1. गौओं का लहंडा-वृष्टिव्याकुलगोकुलावनरसादु- पृथ्वी, ज (वि) समान कुल में उन्पन्न, एक ही जाति
द्धृत्य गोबर्धनम् --गीत०४, गोकुलस्य तुषार्तस्य-महा. का, संबंधी - याज्ञ० २।१३५, पट: वंश विवरण, 2. गौशाला 3. 'गोकुल' एक गांव (जहाँ कृष्ण का वंशतालिका, बंशवृक्ष, वंशावली, °भिद् (पुं) इन्द्र का पालन पोषण हुआ),-कुलिक (वि०) 1. दलदल में विशेषण-हृदि क्षतो गोत्रभिदप्यमर्षण:---रघु० फंसी गाय का उद्धार करने में सहायता न देने वाला ३।५३, ६७३, कु० २१५२, स्खलनम् स्खलितम् 2. भेंगा, वक्रदृष्टि,--कृतम् गाय का गोबर, क्षीरम् नाम लेकर पुकारना, गलत नाम से पुकारना-स्मरसि गाय का दूध, --खा नाखून,-गृष्टिः सकृत्प्रसूता गाय, स्मर मेखलागणरुत गोत्रस्खलितेषु बन्धनम्-कु०४१८, पहलौठी, - गोयुगम् बैलों की जोड़ी,-गोष्ठम् गौशाला, (-त्रा) 1. गौओं का समूह 2. पृथ्वी,-वन्तम् हरताल, पशुशाला,-ग्रन्यिः 1. कंडे, सूखा गोबर 2. गौशाला, -दा गोदावरी नामक नदी,-दानम् 1. बाल काटने ----ग्रहः पशुओं को पकड़ना,—ग्रासः प्रायश्चित्त के रूप की दक्षिणा तथास्य गोदानविधेरनन्तरम्- रघु० में गाय को घास का कौर देना या भोजन का वह ३१३३ 2. केशान्त संस्कार (दे० मल्लि० की व्याख्या) भाग जो गाय को देने के लिए अलग कर दिया जाय, कृतगोदानमंगला:-उत्तर० १ (रामा० में भिन्न प्रकार ----घुतम् 1. बारिश का पानी 2. गाय का घी,--चन्द- की व्याख्या है),-वारणम् 1 हल 2. फावड़ा, खुर्पा, नम् एक प्रकार की चन्दन की लकड़ी,-चर (वि०) ---बाबरी दक्षिण देश की एक नदी का नाम, बुह, 1. चारागाह 2. बार-बार जाने वाला, आश्रय
(पुं) दुहः ग्वाला,-दोहः 1. गो का दूध निकालना लेने वाला, बारंबार मंडराने वाला—पितसमगोचरः 2. गाय का दूध 3. गौओं को दोहने का समय, कु० ५।७७ 3. क्षेत्र, शक्ति या परास के अन्त- -दोहनम् 1. गौओं को दोहने का समय 2. गौओं को र्गत-अवाजमनसगोचरम् --रघु० १०.१५, इसी दोहना, बोहनी वह बर्तन जिसमें दूध दुहा जाय,--कः
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