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( ३०४ ) ---चन्द्रो विकासयति करवचक्रवालम्--भर्तृ० २।७३ । , कोथः, कोडणः (ब०व०) एक देश का नाम, सह्याद्रि और सम०-बन्धुः चन्द्रमा का विशेषण ।
समुद्र का मध्यवर्ती भूखंड । करविन् (पुं०) [कैरव+इनि] चन्द्रमा ।
कोणा [ कोकण+टाप ] रेणका, जमदग्नि की पत्नी। करविणी करविन्+ङीप्] 1. श्वेत फूल वाला कुमुद का | सम-सुतः परशुराम का विशेषण ।
पौधा 2. वह सरोवर जिसमें श्वेत कमल खिले हों | कोजागरः [को जागति इति लक्षम्या उक्तिरत्र काले पृषो० 3. श्वेत कमलों का समूह ।
तारा०] आश्विन मास की पूर्णिमा की रात में मनाया करवी करव+ङीष] चाँदनी, ज्योत्स्ना।
जानेवाला आमोदपूर्ण उत्सव । कलासः [के जले लासो दीप्तिरस्य - केलास+अण्] पहाड़ कोटः [ कुट्+घञ्] 1. किला 2. झोंपड़ा, छप्पर 3. कुटि
का नाम, हिमालय की एक चोटी, शिव और कुबेर | लता 4. दाढ़ी। का निवास स्थान-मेघ०११, ५८ रघु० २।३५ । सम० | कोटरः-रम कोटं कौटिल्यं राति रा+क ता० ] वृक्ष की -..नायः 1. शिव का विशेषण 2. कुबेर का विशेषण । खोखर नीवाराः शुकगर्भकोटरमुखभ्रष्टास्तरूणामधः --- कैलासनाथं तरसा जिगीष:-रघु० ५।२८, कैलास- -श० १।१४, कोटरमकालवृष्ट्या प्रबलपुरोबातया नाथमुपसत्य निवर्तमाना--विक्रम० ११२ ।
गमिते-मालवि० ४।२ ऋतु०१।२६।। कैवर्तः [ के जले वर्तते-वत--अच, केवर्तः ततः स्वार्थे कोटरी, कोटवी [ कोट+री (वी)-+-क्विथ् ] 1. नंगी स्त्री
अण् तारा० ] मछवा --मनोभः कैवर्त: क्षिपति परित- 2. दुगदिबी का विशेषण (नग्न रूप में वर्णन)। स्त्वां प्रति मुहुः (तनूजाली जालम् )—शा० ३।१६, । कोटिः, टी (स्त्री) [ कुट+इन, कोटि+डी ] 1. धनुष मनु० ८।२६०, (इसके जन्म के विषय में दे० का मुड़ा हुआ सिरा-भूमिनिहितककोटिकार्मकम्-रघु० मनु०१०।३४)।
११।८१ उत्तर०४।२९ 2. चरमसीमा का किनारा, कैवल्यम् [ केवल+ष्य ] 1. पूर्ण पृथकता, अकेलापन, नोक या धार-सहचरी दन्तस्य कोट्या लिवन्-मा०
एकान्तिकता 2. व्यक्तित्व 3. प्रकृति से आत्मा का ९।३२, अङ्गदकोटिलग्नम् रघु०६।१४,७।४६, ८।३६ पार्थक्य, परमात्मा के साथ आत्मा की तद्रूपता 3. शस्त्र की धार या नोक 4. उच्चतम विन्दु, आधिक्य 4. मुक्ति, मोक्ष।
पराकोटि, पराकाष्ठा, परमोत्कर्ष-परा कोटिमानन्दकंशिक (वि.) (स्त्री--की) [ केश+ठक ] बालों के स्याध्यगच्छन्-का० ३६९, इसी प्रकार कोपकोटिमा
समान, बालों की भांति सुन्दर,...क: शृंगार रस, पन्ना-पंच०४, अत्यंत कुपित 5. चन्द्रमा की कलाएँ विलासिता,-कम् बालों का गच्छा,----की नाट्य शैली --कु० २१२६ 6. एक करोड़ की संख्या-रघु० ५।२१,
का एक प्रकार (अधिक शुद्ध 'कौशिकी' शब्द है)। १२।८२, मनु० ६।६३ 7. (गणित) ९० कोटि के केशोरम् [ किशोर+ अञ ] किशोरावस्था, बाल्यकाल, चाप की सम्पूरक रेखा 8. समकोण त्रिभुज की एक
कौमार आयु (पन्द्रह वर्ष से नीचे की)-कशोरमापंच- भुजा (गणित) 9. श्रेणी, विभाग, राज्य-मनुष्य , दशात् ।
प्राणि ० आदि 10. विवादास्पद प्रश्न का एक पहल, कैश्यम [ केश-ष्यन ] सारे बाल, बालों का गुच्छा। विकल्प। सम०-ईश्वरः करोड़पति,-जित् (प.) कोकः [ कुक आदाने अच् -तारा०] 1. भेड़िया ....वनयथ
कालिदास का विशेषण,-ज्या (गणित) समकोण त्रिभुज परिभ्रष्टा मगी कोकैरिवादिता-रामा० 2. गुलाबी
में एक कोण की कोज्या,-वृयम दो विकल्प, पात्रम् रंग का हंस (चक्रवाक), कोकानां करुणस्वरेण
पतवार,-पालः दुर्ग रक्षक,-वेधिन (वि.) (शा०) सदृशी दीर्घा मदभ्यर्थना-गीत ५ 3. कोयल 4. मेंढक
नियत विन्दु पर प्रहार करने वाला, (आलं.) अत्यन्त 5. विष्णु का नाम । सम०--देवः 1. कबूतर, 2. सूर्य
कठिन कार्यों को सम्पन्न करने वाला। का विशेषण।
कोटिक (वि.) [ कोटि+के+क] किसी वस्तु का उच्चकोकनदम् [कोकान् चक्रवाकान् नदति नादयति नद्+अच्] / तम सिरा।
लाल कमल - किचित्कोकनदच्छदस्य सदशे नेत्र स्वयं | कोटिरः / कोटिं राति राक ता०] सन्यासियों द्वारा रज्यतः ---उत्तर० ५।३६, नोलनलिनाभमपि तन्वि मस्तक पर बनी सींग के रूप की बालों की चोटी तव लोचनं धारयति कोकनदरूपम --गीत० १०, शि० 2. नेवला 3. इन्द्र का विशेषण । ४१४६ ।
कोटि (टी) शः [ कोटि (टी)+शो+क] मैड़ा, पटेला । कोकाहः [ कोक+आ+हुन+] सफेद घोड़ा।
कोटिशः (अव्य०) [ कोटि+शस | करोड़ों, असंख्य । कोकिलः [कुक+इलच्] 1. कोयल-स्कोकिलो यन्मधुरं | कोटीरः [कोटिमोरयति ईर्+अण् ] 1. मुकुट, ताज
चुकूज-कु० ३।३२, ४।१६, रघु० १२१३९ 2. जलती 2. शिखा 3. सन्यासियों द्वारा मस्तक पर बाँधी गई हुई लकड़ी। सम०-आवासः,-उत्सवः आम का वृक्ष ।।
बालों की चोटी जो सींग जैसी दिखाई देती है, जटा
लाट पराकाष्ठा, ६. इसी प्रकार की कलाएँ
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