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( ३४५ ) गिल (तुदा० पर-गिलति, गिलित) निगलना (वस्तुतः | गोणिः (स्त्री०) [ गु+क्तिन् ] 1. प्रशंसा 2. यश
यह कोई स्वतंत्र धातु नहीं, बल्कि 'ग' से सम्बद्ध हैं)। 3. खा लेना, निगल जाना। गिल (वि०) [गिल+क] जो निगलता है, उदरस्थ करगु (तुदा० पर०-गुवति, गून) विष्ठा उत्सर्ग करना,
लेता है-उदा० तिमिङ्गिलगिलोऽप्यस्ति तदगिलोप्यस्ति | मलोत्सर्ग करना, पाखाना करना। राघवः --दे० तिमिङ्गिल,----ल: नींबू का वृक्ष । सम० | गुग्गुलः,-लुः [गुज+क्विप् =गुक रोगः ततो गुडति ---गिल:--ग्राहः मगरमच्छ, घड़ियाल ।
रक्षति-गुक्+गुड्+क (कु) डस्य लकारः ] एक गिलनम्, गिलिः (स्त्री०) [गिल+ल्युट, गिल+इन् ] प्रकार का सुगंधित गोंद, राल, गुग्गल । निगलना, खा लेना।
गुच्छः [गु+क्विप्=गुत् तं श्यति-गुत् +शो+क] गिलायुः गले के भीतर एक कड़ी गाँठ या रसौली।
1. बंडल, गुच्छा 2. फूलों का गुच्छा, गुलदस्ता, (वृक्षों गिलि (रि) त (वि.) [गिल+क्त] खाया हुआ, का)झंड-अक्ष्णोनिक्षिपदञ्जनं श्रवणयोस्तापिच्छगच्छानिगला हुआ।
वलिम्—गीत० ११, मनु० ११४८ शि० ६५० गि (गे) ष्णुः [गै+इष्णुच् आद्गुणः] 1. गवैया 3. मयूरपंख 4. मोतियों का हार 5. बत्तीस लड़ियों
2. विशेषकर वह ब्राह्मण जो सामवेद के मन्त्रों का का मुक्ता हार (कुछ के मतानुसार ७० लड़ियाँ) गायन करने में चतुर हो, सामगायक ।
सम-अधः चौबीस लड़ियों का मोतियों का हार गीत (भू० क० कृ०) [गे+क्त ] 1. गाया हुआ, अलापा
(र्षः, धम्) आधा गुच्छा,-कणिशः एक प्रकार का हुआ (शा०)-आर्य साधु गीतम-श०१, चारणद्वन्द्व
अनाज,-पत्रः ताड़ का पेड़,—फल: 1. अंगूर की बेल गीतः शब्दः-श० २११४ 2. घोषणा किया हुआ,
2. केले का वृक्ष । बतलाया हुआ, कहा हुआ-गीतश्चायमर्थोङ्गिरसा-मा० गुच्छक: [ गुच्छ+कन् ] दे० 'गुच्छ' । २, ('गे' के नीचे भी दे०),-तम् गाना, भजन, गुज (भ्वा० पर०-गोजति, बहुधा म्वा० पर० गुञ्ज -तवास्मि गीतरागेण हारिणा प्रसभं हत:-०११५, --गुञ्जति, गुञ्जित या गुजित) गुंगू शब्द करना, गीतमुत्सादकारि मृगाणाम् -- का० ३२ । समक गुंजार करना, गूंजना, भनभनाना,-न षट्पदोऽसौ न --अयनम् गाने का साधन या उपकरण अर्थात् वीणा जुगुज य: कलम्- भटि० २।१९, ६।१४३, १४१२, बंसरी आदि,--क्रमः गीत का गानक्रम,-- (वि.) उत्तर० २।२९-अयि दलदरविन्द स्यन्दमानं मरन्दं तव गानकला में प्रवीण,-प्रिय (वि.) गाने बजाने का। किमपि लिहन्तो मञ्ज गुञ्जन्तु भङ्गा:-भामि० ११५। शौक़ीन (यः) शिव का विशेषण, -मोदिन् (पु.) | गुजः [गुज्+क ] 1. भिनभिनाना, गूंजना 2. कुसुमस्तवक, किन्नर, शास्त्रम् संगीत विद्या।
फूलों का गुच्छा, गुलदस्ता--तु० गुच्छ । सम० गीतकम् [ गीत+कन् ] स्तोत्र, भजन ।
-कृत् भौंरा । गीता [गै+क्त+टाप् ] (बहुधा गुरु-शिष्य संवाद के रूप | गुञ्जनम् । गुञ् + ल्युट ] मन्द-मन्द शब्द करना, भिन
में) संस्कृत पद्य में लिखे गये कुछ धार्मिकग्रंथ जो भिनाना, गंजना। विशेष रूप से धार्मिक और आध्यात्मिक सिद्धांतों का
गजा [गञ्ज+अच-टाप्] गुंजा नाम की एक छोटी झाड़ी प्रतिपादन करते हैं-उदाः शिवगीता, रामगीता, भगवद्
जिसके लाल बेर जैसे फल लगते हैं, घंघची-अन्तविषगीता आदि, परन्तु यह नाम केवल अन्तिम ग्रन्थ (भगवद्- मया ह्येता बहिश्चैव मनोरमाः, गुजाफलसमाकारा गीता) तक ही सीमित प्रतीत होता है --- गीता सुगीता
योषितः केन निर्मिता:-पंच०१।१६९, किं जातु गुञ्जाकर्तव्या किमन्यः शास्त्रविस्तरैः, या स्वयं पद्मनाभस्य
फलभषणानां सूवर्णकारेण बनेचराणाम--विक्रमांक० मुखपद्माद्विनि सता - श्रीधर स्वामी द्वारा उद्धृत ।
२५ 2. इस झाड़ी का फल, गुंजा जो १५ट ग्रेन के गीतिः (स्त्री०) [गै-क्तिन् ] 1. गीत, गाना-अहो राग
बराबर वजन की होती है, या कृत्रिम रूप से जिसका परिवाहिणी गीतिः श० ५, श्रुताप्सरोगीतिरपि क्षणेऽ
तोल २३ ग्रेन की भाप का समझा जाता है 3. गुंजार स्मिन् हरः प्रसंख्यानपरो बभूव-कु० ३।४० 2. एक
मंद-मंद गुंजन का शब्द 4. ढपड़ा, ताशा,-- भटि छंद का नाम, दे० परिशिष्ट ।
१४।२ 5. मधुशाला 6. चिंतन, मनन । गीतिका [गीति+कन्+टाप् ] 1. छोटा गीत 2. गाना।
ना। गुञ्जिका [गुञ्जा+कन् +टाप्, इत्वम्] धुंधची।
गरि गीतिन् (वि०) (स्त्री०-नी) [ गीत+इनि ] जो गाकर | गुञ्जितम् [गुज+क्त भनभनाना, गुनगुनाना-स्वच्छन्द
सस्वर पाठ करता है---गीती शीघ्री शिर:कम्पी तथा दलदरविन्द ते मरन्दं विदन्तो विदधत गञ्जितं मिलिन्दाः लिखितपाठक:--शिक्षा ३१। ।
- भामि० १।१५, न गुञ्जितं तन्न जहार यन्मनः गीर्ण (वि०) [ग+क्त ] 1. निगला हुआ, खाया हुआ | - भट्टि० २।१९।
2. वर्णन किया गया, स्तुति किया गया (दे० ग)। । गुटिका [गु+टिक्-गुटि - कन्+टाप्] 1. गोली 2. गोल
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