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( ३०६ )
कोविचारः - रम् [ कु + वि + दृ + अण् ] एक वृक्ष का नाम, कचनार चित्तं विदारयति कस्य न कोविदारः ऋतु० ३।६।
कोशः (ष) - शम् [कुश (ष्) +घञ्ञ, अच् वा ] 1. तरल पदार्थों को रखने का बर्तन, बाल्टी 2. डोल, कटोरा 3. पात्र 4. संदूक, डोली, दराज, ट्रंक 5. म्यान, आवरण 6. पेटी, ढकना, ढक्कन 7. भाण्डार, ढेर - मनु० १९९ 8. भाण्डारगृह 9. खजाना, रुपया पैसा रखने का स्थान -- मनु० ८।४१९10. निधि, रुपया, दौलत निःशेषविश्राणितकोषजातम् - रघु० ५११ ( आलं० ) कोशस्तपसः - का० ४५ 11. सोना, चांदी 12. शब्दकोश, शब्दार्थ संग्रह, शब्दावली 13. अनखिला फूल, कली
-सुजातयोः पंकजकोशयोः श्रियम् रघु० ३१८, १३।२९, इत्थं विचिन्तयति कोशगते द्विरेफे हा हन्त हन्त नलिनीं गज उज्जहार - सुभा० 14. किसी फल की गिरी 15. फली 16. जायफल, कठोरत्वचा 17. रेशम का कोया - या० ३।१४७ 18. झिल्ली, गर्भाशय 19. अण्डा 20. अण्डकोष, फोते 21. शिश्न 22. गेंद, गोला 23. ( वेदांत में ) पांच कोष जो सब मिलकर शरीर रचना करते हैं - जिसमें आत्मा निवास करती है, अन्नमय, प्राणमय आदि 24. ( विधि में ) एक प्रकार की अपराधियों की अग्नि परीक्षा तु० याज्ञ० २।११४ । सम० अधिपतिः, -अध्यक्षः 1. खजानची, वेतनाध्यक्ष ( तु० आधुनिक वित्तमंत्री ) 2. कुबेर, - अगारः खजाना, भाण्डारगृह, कार: 1. म्यान बनाने वाला 2. शब्दकोश का निर्माता 3. कोये के रूप में रेशम का कीड़ा 4. कोशशायी, कारक: रेशम का कीड़ा, कृत् (पुं० ) एक प्रकार का ईख, - गृहम् खजाना, भाण्डागार रघु० ५।२९, चञ्चुः सारस,
नायक:- पाल: खजानची, कोशाध्यक्ष, पेटकः, -कम् धन रखने का संदूक, तिजौरी- बासिन (पुं०) सीपी में रहने वाला कीड़ा, कोशशायी, वृद्धिः 1. धन की वृद्धि 2. फोतों का बढ़ जाना, शायिका म्यान में रक्खा हुआ चाकू, बन्द किया हुआ चाकू, स्थ (वि०) पेटी में बन्द म्यान में बंद ( स्थः) कोशकीट, कोशशायी - हीन ( वि० ) धनहीन, निर्धन ।
कोशलिकम् [कुशल + ठन् ] रिश्वत, घूस (अधिक शुद्ध रूप = कौशलिक) ।
कोशातकिन् (पुं० ) [ कोश + अत् + क्वन् कोशातक - + इनि] 1. वाणिज्य, व्यापार 2. व्यापारी, सौदागर 3. बडवानल |
कोशि (षि) न् (पुं० ) [ कोश (ष) + इनि) आम का वृक्ष । htos: [ कुष् + थन् ] 1. हृदय, फेफड़ा आदि शरीर के भीतरी
अंग या आशय 2. पेट, उदर 3. आभ्यन्तर कक्ष 4. अन्नभण्डार, अन्न का कोठा, -ष्ठम् 1. नहारदीवारी
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2. किसी फल का कड़ा छिलका । सम० अगारम् भाण्डार, भाण्डारघर - पर्याप्तभरितकोष्ठागारं मांसशोणितमें गृहं भविष्यति वेणी० ३, मनु० ९१२८०,
-अग्निः पाचन शक्ति, आमाशय का रसपालः 1. कोषाध्यक्ष, भंडारी 2. चौकीदार, पहरेदार 3. सिपाही ( आधुनिक नगरपालिकाधिकारी से मिलता-जुलता ), - शद्धिः मलोत्सर्ग ।
[कोष्ठ + कन् ] 1. अन्नभांडार 2. चहारदीवारी, -कम् ईट चूने से बनाया गया पशुओं के पानी पीने का स्थान ( बोलचाल की भाषा में 'खेल' कहते हैं ) । कोष्ण ( वि० ) [ ईषदुष्णः - कोः कादेशः ] 1. थोड़ा गरम,
गुनगुना रघु० ११८४, ष्णम् गरमी ।
कोस (श) ल: ( ब० व० ) एक देश और उसके निवासियों
का नाम - पितुरनन्तरमुत्तरकोसलान्- रघु० ९९, ३५, ६।७१, मग कोसलकेकयशा सिनां दुहितरः - ९।१७ । कोस ( श) ला अयोध्या नगर । कोहलः [की हलति स्पर्धते अच् पृषो तारा०] 1. एक
प्रकार का वाद्ययन्त्र 2. एक प्रकार की मदिरा । कौक्कटिक: [कुक्कुट + ठक् ] 1. मुर्गे पालने वाला, या मुर्गों
का व्यवसाय करने वाला 2. वह साधु जो चलते समय अपना ध्यान नीचे जमीन पर रखता है जिससे कि कोई कीड़ा आदि पैरों के नीचे न दब जाय 3. ( अतः ) दंभी ।
कौक्ष (वि० ) ( स्त्री० -क्षी) [ कुक्षि + अण् ] 1. कोख से हुआ या कोख पर होने वाला 2. पेट से सम्बन्ध रखने वाला ।
कौक्षेय ( वि० ) ( स्त्री० - यी ) [ कुक्षि + ढञ् ] 1. पेट में होने वाला 2. म्यान में स्थित असि कौक्षेयमुद्यम्य चकारापनसं मुखम् भट्टि० ४ । ३१ ।
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stars: [कुक्षी बद्धोऽसि:- ढुक्कज्ञ ] तलवार, खङ्ग वाम पावविलम्बिना कौक्षेयकेन- का० ८, विक्रमाङ्क० १।
९० ।
कौङ्कः, कौङ्कणः ( ब० च० ) [ कु+अण्, कोङ्कण-+अण्] एक देश तथा उसके निवासी शासकों का नाम (दे० कोंकण) ।
कौट (वि०) (स्त्री०टी) [कूट + अ ] 1. अपने निजी घर में रहने वाला, ( अतः ) स्वतन्त्र, मुक्त 2. पालतू, घरेलू, घर में पला हुआ 3. जालसाज़, बेईमान 4. जाल में फँसा हुआ, ट: 1. जालसाजी, बेईमानी 2. झूठी गवाही देने वाला। सम०-जः कुटज वृक्ष- तक्ष: ( favo ग्रामक्षः ) स्वतन्त्र बढ़ई जो अपनी इच्छानुसार अपना कार्य करता है, गाँव का कार्य नहीं, साक्षिन् (पुं०) झूठा गवाह, साक्ष्यं झूठी गवाही । hters, कौटिक : [कूट + कन्, कूटक + ठञ, कूट + ठक् ] 1. बहेलिया, जिसका व्यवसाय पक्षियों को पकड़ पिंजरे
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