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( ३३७ ) करना । सम०-अधिका 1. लाक्षा नामक कीड़ा विष्णु का विशेषण,-अडितम्-अश्मन् (पु.) 2. इस कीड़े से प्राप्त लाल रंग,-नी एक प्रकार की -उत्तीर्णम् पन्ना, ध्वजः विष्णु की उपाधि,-व्यूह मछली,—द (वि०) विष देने वाला, जहर देने वाला एक प्रकार की विशेष सैनिक व्यवस्था दे० (3.) (-वम्) विष,—वतः मोर ।
ऊपर। गरणम् [ ग+ ल्युट् ] 1. निगलने की क्रिया 2. छिड़कना | गरुत् (पु.) [ग (ग)+ उति ] 1. पक्षी के पर, बाजू 3. विर्ष।
2. खाना, निगलना । सम-योषिन् (०) बटेर। गरभः [ ग|-अभच् ] भ्रूण, गर्भस्थ बच्चा, दे० गर्भ। | गरुत्मत् (वि.) [गरुत् । मतुप् ] पक्षी-गरुत्मदाशीविषगरलः,-लम् [गिरति जीवनम् ---गृ+अलच् तारा० ] भीमदर्शन:-रघु०३।५७, (पुं०) 1. गरुड 2. पक्षी। विष, जहर,-कुवलयदलश्रेणी कण्ठे न सा गरलद्युतिः गहल: [=गरुडः, डस्य ल:] गरुड़, पक्षियों का राजा।
—गीत० ३, गरलमिव कलयति मलयसमीरम्-४, | गर्गः [ग+ग] 1. एक प्राचीन ऋषि, ब्रह्मा का एक पुत्र स्मरगरलखण्डनं मम शिरसि मण्डनम-१० 2. साँप का | 2. सांड़ 3. केचुवा (ब० व०) गर्ग की संतान । सम. विष,- लम् घास का गठ्ठड़ । सम० - अरिः पन्ना, –स्रोत: (नपं०) एक तीर्थ। मरकतमणि ।
गर्गरः [ गर्ग इति शब्दं राति-गर्ग+रा+क] 1. भवर, गरित (वि०) [ गर-इतच् ] विषयुक्त, जिसे जहर दिया जलावर्त 2. एक प्रकार का वाद्ययंत्र 3. एक प्रकार की गया हो।
मछली 4. मथानी, दही बिलोने का मटका,-री गरिमन् (पुं०) [गुरु+ इमनिच्, गरादेशः] 1. बोझ, भारी- मथानी, पानी की गागर ।
पन,-शि० ९।४९ 2. महत्त्व, बड़प्पन, महिमा-पंच० गईट: [ गर्ग इति शब्देन अटति--गर्ग+अट्+अच् ] एक ११३० 3. उत्तमता, श्रेष्ठता 4. आठ सिद्धियों में से प्रकार की मछली। एक सिद्धि जिसके द्वारा अपने आपको इच्छानुसार। गर्ज (म्वा० पर०—चुरा० उभ०-गर्जति, गर्जयति-ते, भारी या हल्का कर सकता है-दे० 'सिद्धि।
गर्जित) 1. दहाड़ना, गुर्राना-गर्जन् हरिः साम्भसि गरिष्ठ (वि०) [गुरु+इष्ठन् गरादेशः ] 1. सबसे भारी शैलकुञ्ज-भट्टि० २।९, १५।२१, रणे न गर्जन्ति वृथा '2. अत्यन्त महत्त्वपूर्ण (गुरु शब्द की उत्तमावस्था) हि शूराः-रामा०, हृष्टो गर्जति चातिदर्पितबलो गरीयस् (वि०) [गुरु | ईयसुन्, गरादेशः ] अधिक भारी, दुर्योधनो वा शिखी-मच्छ० ५।६ 2. एक गहरी और
अपेक्षाकृत वजनदार, अपेक्षाकृत महत्त्वपूर्ण ('गुरु' की गड़गड़ाती हुई गर्जना करना–यदि गर्जति वारिषरो मध्यमावस्था)-मतिरेव बलादगरीयसी-हि०२।८६, गर्जतु तन्नाम निष्ठुराः पुरुषाः--मच्छ० ५।३२, (और वृद्धस्य तरुणी भार्या प्राणेभ्योऽपि गरीयसी---हि० १॥ इस अंक के दूसरे कई श्लोकों में) गर्जति शरदिन ११२, शि० २।२४, ३७ ।
वर्षति वर्षति वर्षासु निःस्वनो मेघः --उद्भट, अनु-, गरुडः [ गरुद्भ्यां डयते---डी+ड पृषो० तलोपः -ग-1
बदले में गड़गड़ाना, गूंजना---कु० ६।४०, प्रति, उडच ] 1. पक्षियों का राजा (यह 'विनता' नाम की
1. चिंघाड़ना, दहाड़ना (आलं.) 2. मुकाबला करना पत्नी से उत्पन्न कश्यप का पुत्र है, यह पक्षियों का
विरोध करना-अयोहृदयः प्रतिगर्जताम्-रघु०९।९। राजा, सांपों का नैसर्गिक शत्र और अरुण का बड़ा | गर्जः [गर्ज+धा ] 1. हाथियों की चिंघाड 2. बादलों भाई है। एक बार इसकी माता और उसकी सौत कद्रु की गरज या गड़गड़ाहट । में 'उच्चैः श्रवा' के रंग के विषय में झगड़ा हुआ, गर्जनम् [ गर्ज +ल्युट् ] 1. दहाड़ना, चिंघाड़ना, गुर्राना, विनता हार गई और शर्त के अनुसार उसे कद्र की गड़गड़ाना 2. (अतः) आवाज, कोलाहल 3. आवेश, दासी बनना पड़ा। गरुड, माता की स्वतन्त्रता क्रोध 4. संग्राम, युद्ध 5. झिड़की। प्राप्त करने के लिए स्वर्ग में इन्द्र के पास गया, वहाँ गर्जा, गजि गर्ज-टाप, गर्ज --इन ] बादलों की गड़गड़ासे साँपों के लिए अमृत का घड़ा लाने में गरुड़ को हट, गरज । उसके साथ जूझना पड़ा, अन्त में वह अमृत प्राप्त गजित (वि.) [ गर्ज+क्त] गर्जा हुआ, चिंघाड़ा हुआ, करने में सफल हुआ, फलत: विनता को स्वतन्त्रता -तम् बादलों की गरज, या गड़गड़ाहट,-स: चिपाडता प्राप्त हो गई। परन्तु इन्द्र अमृत का घड़ा सांपों के हुआ, जिसके मस्तक से मद झरता है। पास से ले गया 1. गरुड को विष्ण की सवारी चित्रित | गर्तः,-तम् [ग+तन् ] कोटर, छिद्र, गुफा-ससत्त्वेषु किया गया है। इसका चेहरा श्वेत, नाक तोते जैसी गतेषु--मनु० ४।४७, २०३, (इस अर्थ में 'गर्ता' भी), पर लाल और शरीर सुनहरी है) 2. गरुड की शक्ल | ---: 1. कटिखात 2. एक प्रकार का रोग 3. एक का बना भवन 3. विशेष सैनिक व्यूह रचना। सम० देश का नाम, त्रिगर्त का एक भाग। सम०--आश्रयः --- अग्रजः सूर्य के सारथि अरुण का विशेषण,--अजूः चूहे की भांति बिल में रहने वाला जानवर।
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