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( ३२० ) झुरिन् (पुं०) [ क्षुर+इनि ] नाई ।
| क्षेत्रिन् (पुं०) [क्षेत्र+इनि] कृषक, काश्तकार, खतिहर क्षुल्ल (वि०) [क्षुदं लाति गह्नाति-क्षुद+ला+क] –याज्ञ० २।१६१ 2. नाममात्र का पति-श० ५
छोटा, स्वल्प। सम०-तातः पिता का छोटा भाई _____3. आत्मा 4. परमात्मा भग० १३।३३।। --तु० खुल्ल।
क्षेत्रिय (वि.) [क्षेत्र+घ] 1. खेत से संबंध रखने वाला क्षुल्लक (वि.) [ क्षुल्ल+कन् ] 1. स्वल्प, सूक्ष्म 2. नीच, 2. असाध्य रोग, जिसका उपचार देहान्तर प्राप्ति पर
दुष्ट 3. नगण्य 4. निर्धन 5. दुष्ट, द्वेषयुक्त 6. बच्चा। ही हो अथवा इस जीवन में जिसका उपचार न हो क्षेत्रम् [क्षि+ष्ट्रन् ] 1. खेत, मैदान, भूमि-चीयते बालि
सके--दण्डोऽयं क्षेत्रियो येन मय्यपातीति साऽब्रवीत्शस्यापि सत्क्षेत्रपतिता कृषि:-मुद्रा० ११३ 2. भूसंपत्ति
भट्टि० ४।३२,--यम् 1. आंगिक रोग 2. चरागाह, भूमि 3. स्थान, आवास, भूखण्ड, गोदाम-कपटशतमयं
गोचरभूमि,-यः व्यभिचारी, परदाररत । क्षेत्रमप्रत्ययानाम्-पंच० १११९१, भर्तृ० ११७७,
क्षेपः [क्षिप्+घञ ] 1. फेंकना, उछालना, डालना, इधर मेघ० १६4. पुण्यस्थान, तीर्थस्थान-क्षेत्र क्षत्रप्रघन
उधर हिलाना (अंगों की) गति—कन्दक्षेपानुगम पिशुनं कौरवं तद्भजेथाः--मेघ० ४६, भग० १११,
--मेघ० ४७, भ्रूक्षेपमात्रानुमतप्रवेशाम् ---कु० ३।६० 5. बाड़ा 6. उर्वरा भूमि 7. जन्मस्थान 8. पत्नी—अपि
2. फेंकना, डालना 3. भेजना, प्रषित करना 4. आघात नाम कुलपतेरियमसवर्णक्षेत्रसंभवा स्यात्-श० १,
5. उल्लंघन 6. समय बिताना, कालक्षेप 7. विलम्ब, मनु० ३१८५ १. कायक्षेत्र शरीर (आत्मा का कर्म
देरी 8. अपमान, दुर्वचन-क्षेपं करोति चेदंड्यः क्षेत्र)--योगिनो यं विचिन्वन्ति क्षेत्राभ्यन्तरवर्तिनम
याज्ञ० २।२०४, किंक्षेपे 9. अनादर, घृणा 10 घमंड, -कु. ६१७७, भग०१३।१,२,३ 10. मन 11. घर, अहंकार 11. फूलों का गुच्छा, कुसुमस्तवक । नगर 12. सपाट आकृति जैसे कि त्रिभुज 13. रेखा-क्षेपक (वि०) [क्षिप्+ण्वुल ] 1. फेंकने वाला, भेजने चित्र। सम०-अधिदेवता किसी पुण्य भूस्थल की। वाला 2. मिलाया हुआ, बीच में घुसाया हुआ अधिष्ठात्री देवता,-आजीवः,-करः, कृषक, खेतिहर, 3. गालियों से युक्त, अनादरपूर्ण,--क: बनावटी या
-णितम् ज्यामिति, रेखागणित,-गत (वि०) बीच में मिलाया हुआ। . ज्यामितीय उपपत्तिः (स्त्री०) ज्यामितीय प्रमाण, । क्षेपणम् [क्षिप् + ल्युट ] 1. फेंकना, डालना, भेजना, -ज (वि.) 1. खेत में उत्पन्न 2. शरीर से उत्पन्न निदेश आदि देना 2. (समय) बिताना 3. भूलना (जः) हिन्दूधर्मशास्त्र के अनुसार १२ प्रकार के पूत्रों 4. गाली देना 5. गोफन,-णिः, --णी (स्त्री०) में से एक, अपने पति के निमित्त संतानोत्पत्ति करने । 1. चप्पू 2. मछली फंसाने का जाल 3. गोफन या के लिए विधिवत् नियत किए गए किसी संबन्धी द्वारा ऐसा उपकरण जिसमें रखकर कंकड़ फेंके जायें। उसकी पत्नी में उत्पादित संतान-मनु० ९।१६७, क्षेम (वि.) [क्षिन-मन् ] 1. प्रसन्नता सुख और आराम १८० याज्ञ० १।६८, ६९, २।१२८, -जात (वि.) देने वाला, शुभ, उदार, राजीखुशी -धार्तराष्ट्रा रणे दूसरे पुरुष की पत्नी में उत्पादित संतान,--- (वि०) हन्यस्तन्मे क्षेमतरं भवेत- भग० ११४५ 2. समृद्ध, 1. स्थानीयता को जानने वाला 2. चतुर, दक्ष (ज्ञः) । आराम में, सुखी 3. सुरक्षित, प्रसन्न,---मः,-मम् 1. आत्मा -तु. भग० १३।१-३, मनु० १२।१२ 1. शान्ति, प्रसन्नता, आराम, कल्याण, कुशलता----वित2. परमात्मा 3. व्यभिचारी 4. किसान,-पतिः भस्वामी न्वति क्षेममदेवमातृकाश्चिराय तस्मिन् कुरवश्चकासतेभूमिधर,- पदम् देवता के लिए पवित्र स्थान, --पाल: कि० १११७, वैश्यं क्षेमं समागम्य (पृच्छत् )---मनु० 1. खेत का रखवाला 2. क्षेत्र की रक्षा करने वाला २।१२७, अधुना सर्वजलचराणां क्षेमं भविष्यति-पंच. देवता 3. शिव का विशेषण,--फलम् (गणित में) १२ 2. सुरक्षा, बचाव,-क्षेमेण बज बान्धबान्-मृच्छ ० आकृति की लम्बाई चौड़ाई का गुणनफल,-भक्तिः ७।७, सकुशल-पंच० १३१४६ 3. संरक्षण करने वाला, (स्त्री०) खेत का बँटवारा,-भूमिः (स्त्रो०) भूमि प्ररक्षा करने वाला-रघु० १५।६ 4. अवाप्त को जिसमें खेती की जाय,-राशिः ज्यामितीय आकृतियों सुरक्षित रखना---तु. योगक्षेम 5. मुक्ति, शाश्वत द्वारा प्रकट किया गया परिमाण,-विद (वि.) आनन्द,-मः एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य । सम०
-क्षेत्रज्ञ (पुं०) 1. किसान 2. ऋषि, जिसे आध्या-! कर ('क्षेमंकर भी) (वि०) मंगलप्रद शान्ति और त्मिक ज्ञान हो- कु. ३५० 3. आत्मा,-स्थ (वि०) सुरक्षा करने वाला। पुण्य भूमि में रहने वाला।
मिन् (वि.) (णी) [क्षेम+ इनि ] सुरक्षित, आक्रमण क्षेत्रिक (वि०) (स्त्री० --की) [क्षेत्र+छन् ] खेत से से रक्षित, प्रसन्न ।
सम्बन्ध रखने वाला,--क: 1. एक किसान-मनु० ई (भ्वा० पर० क्षायति, बाम) क्षीण होना, नष्ट होना, ८१२४१, ९।५३ 2. पति--मनु०९।१४५ ।
कृश होना, ह्रास होना, मुर्माना ।
माय उपाय रेखागणित कृषक खेति
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