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कृश (वि.) (मध्य० ऋशीयस, उत्त० कशिष्ठ) [कृश+ वृद्धि करना नि-डुबोना, कम करना, घटाना
क्त, नि०] 1. दुबला पतला, दुर्बल, शक्तिहीन, क्षीण निस्---, 1. बाहर खींचना 2. खींचतान कर निकालना, -- कृशतनुः कृशोदरी आदि 2. छोटा, पोड़ा, सूक्ष्म बलपूर्वक निकालना, छीनना या जबरदस्ती लेना (आकार या परिमाण में)-गुहृदपि न याच्यः कृशधन: -निष्क्रप्टुमर्थं चकमे कुबेरात्-रघु० ५।२६, परि----भर्तृ० २।२८ 3. दरिद्र, नगण्य-मनु० ७४२०८ । --,खींचना, निकालना, घसीटना, प्र-, 1. खींच लेना, सम०-अक्षः मकड़ी,- अङ्ग (वि०) दुबला, पतला, खींचना, आकृष्ट करना 2. (सेना का) नेतृत्व करना (..गी) 1. तन्वंगी 2. प्रियंगु लता,---उदर (वि.) 3. (धनुष का) झुकाना 4. बढ़ाना, बि-, 1. खींचना पतली कमर वाला--- विक्रम०५।१६।
2. (धनुष का ) झुकाना-~शरासनं तेषु विकृष्यताकृशला [कृश+ला+क+टाप्] (सिर के) बाल ।
मिदम् श० ६।२८, विप्र--हटाना, संनि--,निकट कृशानुः [ कृश् + आनुक ] आग—गुरोः कृशानुप्रतिमा
लाना । द्विभेषि-रघु० २१४९, ७।२४, १०।७४, ० ११५१ | कृषक: [कृष्-+-क्वन् ] 1. हलवाहा, हाली,किसान 2. फाली भर्तृ० २।१०७। सम० ...रेतस् (पु.) शिव की
3. बैल। उपाधि।
कृषाणः, कृषिक: [ कृष्- आनक, किकन् वा ] हलवाहा, फुशाश्विन (पु०) [ कृशाश्व+ इनि ] नाटक का पात्र ।
किसान । कृषi (तुदा० उभ० -कृषति–ते, कृष्ट) हल चलाना,
कृषिः (स्त्री०) [ कृष्+इक] 1. हल चलाना 2. खेती, खुड बनाना।
काश्तकारी-चीयते बालिशस्यापि सत्क्षेत्रपतिता ii (भ्वा० पर०--कर्षति, कृष्ट) 1. खींचना, घसीटना, कृषिः-मुद्रा० ३, कृषिः क्लिष्टाऽवृष्ट्या-पंच० ११११, चीरना, खींच देना, फाड़ना--प्रसह्य सिंहः किल तां मनु० ११९०, ३।६४, १०७९, भग० १८।४४ । सम० चकर्ष---रघ० २।२७, विक्रग० २१९ 2. किसी को ----कर्मन् (नपुं०) खेती का काम, जीविन् (वि०) ओर खींचना, आकृष्ट करना--भट्टि०१५।४७, भग०
खेती से निर्वाह करनेवाला किसान,-- फलम् खेती से १५७ 3. (सेना आदि का) नेतत्व या संचालन करना
होने वाली उपज, या लाभ-मेघ० १६,-सेवा खेती —स सेनां महतीं कर्षन्-रघु० १४।३२ 4. झुकाना
करना, किसानी। (धनुष आदि का)-नात्यायतकृष्टशाङ्ग:-रघु० ५।५०
कृषीवलः | कृषि-|-बलच, दीर्घः] जो खेती से अपनी 5. स्वामी होना, दमन करना, परास्त करना, अभिभूत
जीविकार्जन करे, किसान, कृषि चापि कृषीवल:-याज. करना-बलवानिन्द्रियग्रामो विद्वांसमपि कर्पति-मन. ११२७६, मनु० ९।३८ । रा२१५, नत्र: स्वस्थानमासाद्य गजेन्द्रमपि कर्षति कृष्करः [कृष+कृ=टक पृषो०] शिव को उपाधि । --पंच० ३।४६ 6. हल चलाना, खेती करना- अन- कृष्ट (वि०) [कृष्+क्त ] 1. खींचा हुआ, उखाड़ा हुआ, लोमकृष्टं क्षेत्र प्रतिलोमं कर्षति---सिद्धा. 7. प्राप्त घसीटा हुआ, आकृष्ट 2. हल चलाया हुआ। करना, हासिल करना-कुलसंख्यां च गच्छन्ति कर्षन्ति कृष्टि: [कृष्+क्तिन् ] विद्वान् पुरुष-(स्त्री) 1. खींचना, च महद्यश:--महा० 8. किसी से ले लेना, किसी को आकर्षण 2. हल चलाना, भूमि जोतना। बंचित करना' (द्विकर्म०) अप---पीछे खींचना, खींच कृष्ण (वि.) कृष्+नक ] 1. काला, श्याम, गहरा ले जाना, घसीट कर दूर करना, लंबा करना, नीला 2. दुष्ट, अनिष्टकर,-ण: 1. काला रंग 2. काला निचोड़ना-दन्ताग्रभिन्नमपकृष्य निरीक्षते च--ऋतु० हरिण 3. कौआ 4. कोयल 5. चान्द्रमास का कृष्णपक्ष, ४।१४, रघु० १६१५५ 2. हटाना-- उत्तर० ११८ 6. कलियुग 7. आठवाँ अवतारधारी विष्णु (भारतीय 3. कम करना, घटाना, अव ---,खींचना, खींच लेना, पुराणशास्त्र के अनुसार कृष्ण अत्यंत प्रसिद्ध नायक है,
आ----,खींचना, समीप पहुँचना, धकेलना, खींच लेना, देवताओं में सर्वप्रिय है ! वसुदेव और देवकी का पुत्र निचोड़ना (आलं.)--केशेष्वाकृष्य चम्बति--हि. होने के कारण कृष्ण कंस का भान्जा है, पर व्यवहा१११०९, श० ११३३ दूरममुना सारङ्गेण वयमाकृष्टाः रतः वह नन्द और यशोदा का पूत्र है, उन्होंने ही इसका -श० १, अमरु २१७२, कु० २।५९, रघु० ११२३ पालन-पोषण किया और वहीं कृष्ण ने अपना बचपन 2. (धनुष आदि का) झुकाना-श० ३।५, शि० बिताया। जब उसने कंस द्वारा उसकी हत्या के लिए ९।४०3. निचोड़ना, उधार लेना--हि० प्र० ९।४, भेजे गये पूतना और बक आदि क्रूर राक्षसों को मार 4. छीनना, बलपूर्वक ग्रहण करना-भट्टि० १६६३० गिराया तथा शुर-चीरता के अनेक आश्चर्यजनक कर्तव्य 5. किसी दूसरे नियम या वाक्य से शब्द ला देना, किये तो क्रमशः उसका दिव्य लक्षण प्रकट होने लगा। उद्--, 1. ऊपर खींचना, उखाड़ना--अङ्गदकोटिलग्न युवावस्था के उसके मख्य साथी थे गोकूल के ग्वालों प्रालम्बमुत्कृष्य-रघु०६।१४, शि० १३१६. 2. बढ़ाना, । की बधुएँ तथा गोपियां जिनमें राधा उनको विशेष
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