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( २४६ ) +अण् ] 1. खोपड़ी, खोपड़ी की हड्डी-चूडापीड । कपिश (वि०)[कपि-+श] 1. भूरे रंग का, सुनहरी 2. कपालसडकुलगलन्मन्दाकिनीवारयः मा० ११२, रुद्रो आरक्त-(छायाः) संध्यापयोदकपिशाः पिशिताशनानाम येन कपालपाणिपुटके भिक्षाटनं कारितः-भर्त० २।९५ ----श० ३।२७, तोये कांचनपद्मरेणुकपिशे- ७।१२, 2. टूटे बर्तन का खंड, ठीकरा, कपालेन भिक्षार्थी विक्रम० २१७, मेघ० २१, रघु० १२।२८,-शः 1. --मनु० ८।९३ 3. समुदाय, संचय 4. भिक्षुक का भूरा रंग 2. शिलाजीत या लोबान,-शा 1. माधवी कटोरा-मनु० ६।४४ 5. प्याला, बर्तन-पंचकपाल: लता 2. एक नदी का नाम । 6. ढक्कन । सम० ---पाणिः, भृत्,-मालिन्, | कपिशित (वि.) [कपिश+इतच भूरे रंग का-शि० ---शिरस (पं०) शिव की उपाधि,--मालिनी | ६५। दुर्गादेवी।
कपुच्छलम्, कपुष्टिका [कस्य शिरसः पुच्छमिव लाति--क कपालिका [ कपाल+कन्+टाप्, इत्वम् ] ठीकरा---मनु० +पुच्छ+ला+क-कस्य शिरस: पुष्टये पोषणाय ४७८, ८२५०।
कायति-क+पूष्टि+के+क+टाप्] 1. मुण्डनकपालिन् (वि०) कपाल+इनि] 1. खोपड़ी रखने वाला, संस्कार 2. सिर के दोनों ओर रक्खे हुए केशसमूह । --- याज्ञ० ३१२४३ 2. खोपड़ी पहने हुए- कपालि वा
कपूय (वि.) [कुत्सितं पूयते----+प्रय+अच, पृषो० स्यादथवेन्दुशेखरम् (वपु:)--- कु० ५१७८; (पुं०) 1. उलोपः] अधम, निकम्मा, कमीना, नीच। शिव का विशेषण,-करं कर्णे कुर्वत्यपि किल कपालि- कपोतः[को वातः पोत इव यस्य-ब० स०] 1. पारावत, प्रभुतयः---गंगा० २८ 2. नीच जाति का पुरुष कबूतर 2. पक्षी। सम० - अघ्रिः एक प्रकार का सुगं(ब्राह्मण माता तथा मछवे पिता की सन्तान)।
धित द्रव्य,---अञ्जनम् सुर्मा,-- अरिः बाज, शिकरा, कपिः कम्प+इ, नलोपः ] 1. लंगूर, बन्दर-कपेरत्रासि- ---चरण एक प्रकार का सूगंधित द्रव्य,--पायिका,
षुर्नादात्-भट्टि० ९।११ 2. हाथी। सम० - आख्यः -- पाली (स्त्री०) चिडियाघर, कबूतरों का दड़बा, धूप, लोबान आदि,-इज्यः 1. राम का विशेषण, 2. कबूतरों की छतरी,-राजः कबूतरों का राजा,-सारम् सुग्रीव का विशेषण, · इन्द्रः (बन्दरों का मुखिया) 1. सुर्मा,- हस्तः, डर या अनुनय-विनय के अवसर पर हनुमान का विशेषण- नश्यति ददर्श बंदानि कपीन्द्र हाथ जोड़ने का ढंग। -भट्टि. १०।१२ 2. सुग्रीव का विशेषण- व्यर्थ कपोतक कपोत+कन छोटा कबूतर,-कम् सुर्मा । यत्र कपीन्द्रसख्यमपि मे---उत्तर० ३१४५ 3. जांबवान् कपोलः [कपि+ओलच्] गाल-क्षामक्षामकपोलमाननम् का विशेषण,-कच्छुः (स्त्री०) एक प्रकार का पौधा, ---श० ३।१०, ६।४, रघु० ४।६८ । सम० .- काष: केवांच,-केतनः,-ध्वजः अर्जुन का नाम, भग०१॥ जिससे गाल मसले जाये कि० ५।३६,.. फलक: चौड़े २०,-जः-तैलम्,- नामन् (नपुं०) शिलाजीत, गाल, - भित्ति (स्त्री०) कनपटी और गाल, चौड़ा
गुग्गुल,-प्रभुः राम का विशेषण, लोहम् पीतल । गण्डस्थल,--तु० गण्डभित्ति,... रागः गालों की लाली । कपिञ्जलः [क+पिंज-+-कलच्] 1. पपीहा 2. टिटिहिरी। कफः केन जलेन फलति-फल+ड तारा०] 1. बलगम, कपित्यः [ कपि+ स्था+क कैथ का वृक्ष,-स्थम् कैथ का कफ या श्लेष्मा (शरीर के तीन रसों में से एक--शेष फल। सम-आस्यः एक प्रकार का बन्दर।
दो हैं- वात और पित्त) कफापचयादारोग्यकमूलमाकपिल (वि.) [ कम्प् +-इलच्, पादेशः] 1. भूरे रंग का, शयाग्निदीप्तिः–दश० १६०, प्राणप्रयाणसमये
आरक्त-वाताय कपिला विद्युत्-महा० 2. भूरे बालों कफवातपित्तैः कण्ठावरोधनविधौ स्मरण कुतस्ते--उद्भट का-मनु० ३१८ (कुल्ल = कपिलकेशा),-ल: 1. 2. रसीला झाग, फेन । सम०---अरिः सोंठ,-कृचिका एक ऋषि का नाम (सगर के साठ हजार पुत्र थे, लार, थूक,---क्षयः फेफड़े का क्षय रोग,-हन,-नाशन, अपने पिता के यज्ञीय घोड़े को ढूंढते हुए ये कपिलमुनि --हर (वि०) कफ को दूर करने वाला, कफ नाशक, से लड़ पड़े और उन पर घोड़ा चुराने का आरोप .....ज्वरः बलगम अधिक हो जाने से उत्पन्न बुखार । लगाया इससे क्रुद्ध हो कपिल ने इन सब को भस्म कफणिः, कफोणिः (स्त्री० - णी) [केन सुखेन फणति स्फकर दिया--दे० उत्तर० १२३) यह सांख्य दर्शन का रति-क+फण + इन्, क+फण् (स्फुर)+इन् पृषो० प्रवर्तक समझा जाता है 2. कुत्ता 3. लोबान 4. धूप | कफोणि+डीप्] कोहनी। 5. अग्नि का एक रूप 6. भूरा रंग,-ला 1. भूरी गाय कफल (वि.) [कफ+लच] जिसे बलगम अधिक आता हो, 2. एक प्रकार का सुगंधित द्रव्य 3. एक प्रकार का । कफप्रकृति। शहतीर 4. जोक। सम०-अश्वः इन्द्र की उपाधि, कफिन (वि.) (स्त्री०-नी) [कफ+इनि] कफ की अधि----घतिः सूर्य,-धारा गंगा की उपाधि,....स्मतिः कता से पीड़ित, कफग्रस्त । (स्त्री०) कपिल मुनि का सांख्य-सूत्र ।
कबन्धः,--धम् [कं मुखं बघ्नाति---क+बन्ध-+अण] सिर
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