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2. विषैले शस्त्र से आहत मृग आदि जन्तु – जम् ऐसे जन्तु का मांस ।
कलत्रम् [ गड्+अत्रन्, गकारस्य ककारः, डलयोरभेदः ] 1. पत्नी, वसुमत्या हि नृपाः कलत्रिणः - रघु० ८/८३, १।३२, १२।३४, यद्भर्तुरेव हितमिच्छति तत्कलत्रम् भर्तृ० २६८ 2. कूल्हा या नितम्ब – इन्दुमूर्तिमिवोद्दामन्मथ विलासगृहीतगुरुकलत्राम् का० १८९ ( यहाँ 'कलत्रम्' के दोनों अर्थ हैं) कि० ८1९, १७ 3. राजकी दुर्ग ।
कलनम् [ कल् + ल्युट् ] 1. धब्बा, चिह्न 2. विकार, अपराध, दोष 3. ग्रहण करना, पकड़ना, थामना कलनात्सर्वभूतानां स कालः परिकीर्तितः 4. जानना, समझना, बोध पाना 5. ध्वनि करना, ना 1. लेना, पकड़ना, थामना काल कलना आन० २९ 2. करना, क्रियान्वयन 3. वश्यता 4. समझ, समवबोध 5. पह
नना, वसन-धारण करना ।
कलविका ! कल + दा + क + कन्+टाप्, इत्वम्, पुषो० म् ] बुद्धिमत्ता, प्रज्ञा ।
कलभः (स्त्री० -- भी ) [ कल् + अभच्, करेण शुण्डया भाति भा+क रस्य लत्वम् – तारा०] 1. हाथी का बच्चा, वन पशु- शावक - ननु कलभेन यूथपते रनुकृत्तम्
- मालवि० ५, द्विपेन्द्रभावं कलभः श्रयन्निव रघु० ३।३२, ११३९, १८/३७ 2. तीस वर्ष का हाथी 3. ऊँट का बच्चा, जन्तु शावक । कलमः [कल् + अम् ] 1. मई-जून में बोया हुआ चावल जो दिसम्बर-जनवरी में पक जाता है-सुतेन पाण्डोः कलमस्य गोपिकाम् कि० ४१९, ३४, कु० ५।४७, रघु० ४ | ३७ 2. लेखनी, काने की कलम 3. चोर 4. दुष्ट, बदमाश ।
कलम्बः [कल् + अम्बच् ] 1. तीर 2. कदम्ब वृक्ष । कलम्बुटम् [ क + लम्ब् + उटन् ] (ताजा) मक्खन नवनीत । कलल:,—–लम् [कल् + कलच्] भ्रूण, गर्भाशय । कलविङ्कः, , : [ कल् + वङक् + अच्, पृषो० इत्वम् ] 1. चिड़िया, मनु० ५।९२, याज्ञ० १।१७४ 2. धब्बा, दाग या लांछन ।
कलशः, --- सः [केन जलेन लश ( स ) ति - - तारा ० ] ( - शम्,
-सम् ) घड़ा जलपात्र, करवा, तस्तरी – स्तनौ मांसग्रन्थी कनककलशावित्युपमिती - भर्तृ० ३।२०, १ ९७ स्तनकलस:- अमरु ५४ जन्मन्, 'उद्भवः अगस्त्य मुनि ।
कलशी (सी) (स्त्री० ) [ कलश ( स ) + ङीष् ] घड़ा, करवा । सम० - सुतः अगस्त्य ।
कलहः- हम् [ कलं कामं हन्ति - हन् +ड तारा० ] 1. झगड़ा, लड़ाई - भिड़ाई - ईर्ष्याकलहः भर्तृ० १ २, लीला शृंगार० ८, इसी प्रकार शुष्ककलह:, प्रणय
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कलहः आदि 2. संग्राम, युद्ध, 3. दाँव, धोखा, मिथ्यापन 4. हिंसा, ठोकर मारना पीटना आदि मनु० ४। १२१ ( यहाँ मेघातिथि और कुल्लूक, कलह शब्द की व्याख्या क्रमशः 'दंडांदिनेतरेतरताडनम्' और 'दंडादंडयादि करते हैं) । सम० - अन्तरिता अपने प्रेमी से झगड़ा हो जाने के कारण उससे वियुक्त ( जो क्रुद्ध भी है साथ ही अपने किये पर खिद्यमाना भी), सा० द० इस प्रकार परिभाषा करता है चाटुकारमपि प्राणनाथं रोषादपास्य या, पश्चात्तापमवाप्नोति कलहान्तरिता तु सा । ११७ - अपहृत (वि०) बलपूर्वक अपहरण किया गया, प्रिय (वि०) जो लड़ाई-झगड़ा कराने में प्रसन्न होता है - ननु कलहप्रियोऽसि - मालवि० १, ( --- यः ) नारद की उपाधि ।
कला [कल्+कच्+टाप् ] 1. किसी वस्तु का छोटा खण्ड,
टुकड़ा, लवमात्र, कलामप्यकृतपरिलम्बः का० ३०४ सर्वे ते मित्रगात्रस्य कलां नार्हन्ति षोडशीम् - पंच० २५९, म २८६, ८।३६ 2. चन्द्रमा की एक रेखा ( यह १६ अंश हैं) जगति जयिनस्ते ते भावा नवेन्दुकलादयः - मा० १।३६ कु० ५।७२, मेघ० ८९3. मूलधन पर व्याज ( लिये हुए धन के उपयोग के विचार से) - घनवीथिवीथिमवतीर्णवतो निधिरम्भसामुपचयाय कला : -- शि० ९ ३२, ( यहाँ कला का अर्थ रेखा भी है) 4. विविध प्रकार से आकलित समय का प्रभाग ( एक मिनट, ४८ सैकण्ड या ८ सैकण्ड ) 5 राशि के तीसवें भाग का साठवाँ अंश, किसी कोटि का एक अंश 6. प्रयोगात्मक कला ( शिल्पकला, ललित कला ) इस प्रकार की ६४ कलाएँ हैं, जैसे कि संगीत, नृत्य आदि 7. कुशलता, मेधाविता 8. जालसाजी, धोखादेही 9. (छन्द: शास्त्र में ) मात्रा छंद 10. किश्ती 11. रज:स्राव । सम० - अन्तरम् 1. दूसरी रेखा 2. ब्याज, लाभ - मासे शतस्य यदि पञ्चकलान्तरं स्पात् — लीला०, ---अयनः कलाबाज, नट, तलवार की तीक्ष्ण धार पर नाचने वाला, आकुलम् भयंकर विष – केलि ( वि० ) छबीला, विलासी (-लिः) काम का विशेषण, -क्षयः ( चन्द्रमा का ) क्षीण होना- रघु० ५।१६ - धरः, -निधिः - पूर्णः चन्द्रमा, अहो महत्त्वं महतामपूर्वं विपत्तिकालेऽपि परोपकार:, यथास्यमध्ये पतितोऽपि राहोः कलानिधिः पुण्यचयं ददाति । उद्भट - भूत् (पुं०) चन्द्रमा, इसी प्रकार कलावत् (पुं० ) - कु० ५।७२ | कलाव:, - दकः [ कला + आ + दा+क ] सुनार । कलापः [ कला -- आप् + अण, घञ्ञ ] 1. जत्था, गठरी
-- मुक्ताकलापस्य च निस्तलस्य कु० १४३, मोतियों का हार - रशनाकलापः -- घुंघरूदार मेखला 2. वस्तुओं का समूह या संचय - अखिल कलाकलापालोचन - का० ७ 3. मोर की पूँछतं मे जातकलापं प्रेषय मणिकण्ठकं
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