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( २६० ) का। सम-ज्येष्ठ: आदिकवि वाल्मीकि की उपाधि, कश्य (वि.) [कशामर्हति--कशा-+-य] कोड़े या चाबुक ---पुत्रः शुक्राचार्य की उपाधि,-राजः 1. महाकवि लगाये जाने के योग्य--श्यम् मादक शराब। . --(श्रीहर्ष कविराजराजिमुकुटालंकारहीरःसुतम्-यह कश्यपः [कश्य+पा--क] 1. कछुवा 2. एक ऋषि, अदिति और वाक्य नैषधचरित के प्रत्येक सर्ग के अन्तिम श्लोक में दिति के पति, अतः देवता और राक्षस दोनों के पिता। पाया जाता है) 2. कवि का नाम, 'राघवपाण्डवीय' (ब्रह्मा का पुत्र मरीचि था, मरीचि का पुत्र कश्यप हुआ, नामक काव्य का रचयिता, रामायण: वाल्मीकि की सृष्टि के कार्य में कश्यप ने बड़ा योग दिया। महाभारत उपाधि।
तथा दूसरे ग्रंथों के अनुसार उसका विवाह अदिति तथा कविकः,-का [कवि+कन्, स्त्रियां टाप् च] लगाम का दक्ष की अन्य १३ पुत्रियों के साथ हुआ। अदिति से दहाना।
उसके द्वारा १२ आदित्यों का जन्म हुआ-अपनी कविता [कवि+तल+टाप्] काव्य, सुकविता यद्यस्ति दूसरी १२ पत्नियों से उसके अनन्त और विविध प्रकार राज्येन किम् भर्त० २।२१ ।
की सन्तान हुई- साँप, रेंगने वाले जन्तु, पक्षी, राक्षस, कवि (वी) यम् [कवि+छ] लगाम का दहाना ।
चन्द्रलोक का नक्षत्रज तथा परियाँ। इस प्रकार करोष्ण (वि.) [कुत्सितम् ईषत् उष्णम् कर्म० स०, कोः वह देव, असुर, मनुष्य, पशु, पक्षी और सरीसृप कवादेशः] कुछ थोड़ा गर्म, गुनगुना-रघु० ११६७,
आदिकों का वस्तुतः सभी जीवधारी प्राणिमात्र का ८४ ।
पिता था। इसी लिए उसे बहुधा प्रजापति कहा कम्यम् [कयते हीयते पितृभ्यः यत् अन्नादिकम् --कु-यत्]
जाता है)। (विप० हव्यम्) मृत पितरों के लिए अन्न की आहुति । कष् (भ्वा० उभ०- कषति--ते, कषित) 1. मसलना, -एष वै प्रथमः कल्प: प्रदाने हव्यकव्ययोः-मनु० खुरचना, कसना ... समूलकाषं कषति--सिद्धा०, भद्रि० ३॥१४७, ९७, १२८,-व्यः पितरों का समूह । समः ३।४९ 2. परीक्षा करना, जाँच करना, कसौटी पर -~~वाह, (०),-वाहः,-वाहनः अग्नि ।
कसना (सोना आदि)---छदहेम कषन्निवालसत्कषकशः [कश्+अच्] कोड़ा (प्रायः बहुवचतान्त),-शा चाबुक पाषाणनिभे नभस्तले- नै० २।६९ 3. चोट मारना,
-इदानीं सुकुमारेऽस्मिन् निःशंक कर्कशाः, कशाः, तव नष्ट करना 4. खुजाना। गा। पतिष्यन्ति सहास्माकं मनोरथैः । मच्छ० ९।३५ कव (वि.) [ कष+अच्] 1. रगड़ने वाला, कसने वाला, (यहाँ कशा शब्द स्त्रीलिंग और पुल्लिग दोनों में हो --पः रगड़ कसना 2. कसौटी-छदहेम कषनिवालसकता है) 2. कोड़े लगाना 3. डोरी, रस्सी।
सत्कषपाषाणनिभे नभम्तले नै० २६९, मृच्छ० कशिपु (पुं० या नपुं०) [कशति दुःखं कश्यते वा, मृगय्वा- ३३१७ ।
दित्वात् निपातनात् साधुः] 1. चटाई 2. तकिया 3. कषणम् [कष्+ल्युट रगड़ना, चिह्नित करना, खुरचना बिस्तरा,-पु. 1. भोजन 2. वस्त्र 3. भोजन-वस्त्र ... कण्डूलद्विपगण्डपिण्डकषणोत्कम्पेन संपातिभिः-- (विश्वकोश के अनुसार)।
उत्तर० २१९, कषणकम्पनिरस्तमहाहिभिः-कि०५।४७ कशे (से) र (पुं०, नपुं०) [के देहे शीर्यते, के जलं वा 2. कसौटी पर कस कर सोने को परखना।
शृणाति, क+शु+उ, एरडादेशः, कस्+ एरुन् वा] कषा-कशा। ___1. रीढ़ की हड्डी 2. एक प्रकार का घास । कषाय (वि०) [ कषति कण्ठम् -कष्+आय ] 1. कसैला कामल (वि.) कश+अल, मुद] मैला, गन्दा, अकीर्तिकर, --श०२ 2. सुगंधित- स्फुटितकमलामोदमैत्रीकषायः
कलंकी-मत्सम्बन्धात्कश्मला किंवदन्ती स्याच्चेदस्मिन्हन्त ---मेघ० ३१, उत्तर० २।२१ महावी० ५।४१ पिछ मामधन्यम्--उत्तर० ११४२,-लम् मन की 3. लाल, गहरा लाल--चूतांकुरस्वादकषायकंठ:--कु. खिन्नता, उदासी, अवसाद-कश्मल महदाविशत् ३१३२ 4. (अतः) मषुर-स्वर वाला-मा० ७
-महा., कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् 5. भूरा, 6. अनुपयुक्त, मैला--यः,-यम् 1. कसैला --भग० २।२ 2. पाप 3. मूर्छा।
स्वाद या रस (६ रसों में से एक) दे० कटु 2. लाल कामीर (१०व) [ कश्+ईरन, मुटु ] एक देश का नाम, रंग 3. एक भाग औषधि, चार आठ या १६ भाग
वर्तमान कश्मीर (तन्त्र ग्रन्थों में इसकी स्थिति इस पानी में मिलाकर बनाया हुआ (सब को मिलाकर प्रकार बताई गई है-शारदामठमारभ्य कुंकूमादितटां- उबालना जब तक कि चौथाई न रह जाय), काढ़ा तकः, तावत्कश्मीरदेशः स्यात् पंचाशद्योजनात्मकः) -मनु ११।१५४ 4. लेप करना, पोतना-कु०७॥ सम.--.-म्-जन्मन् (पुं० नपुं०) केसर, १७, चुपड़ना 5. उबटन लगा कर शरीर को सुवासित जाफरान-कश्मीरजस्य कटुतापि नितान्तरम्या-भामि० करना-ऋतु०११४ 6. गोंद, राल, वृक्ष का निःश्रवण १७१।
7.मैल, अस्वच्छता 8. मन्दता, जडिया १. सांसारिक
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