________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( २८३ ) भिक्षापात्र, -- 3: (स्त्री०-डी) पति के जीवित रहते । के आगे 'चिद्' 'चन' या 'अपि' जोड़ दिया जाता है व्यभिचार द्वारा किसी दूसरे पुरुष के संयोग से उत्पन्न तो यह अनिश्चयबोधक बन जाता है। सन्तान—पत्यौ जीवति कुंड: स्यात् -- मनु० ३।१७४, | कुतपः [ कु+तप् + अच् ] 1. ब्राह्मण 2. द्विज 3. सूर्य याज्ञ० ११२२२। सम-आशिन् (पु.) भडुवा, 4. अग्नि 5. अतिथि 6. बैल, सांड 7. दोहता 8. भानजा विट, अपनी जीविका के लिए जो कुण्ड पर निर्भर 9. अनाज 10 दिन का आठवाँ महर्त-अह्रो महुर्ता करता है अर्थात् वर्णसंकर, जारज, मनु० ३३१५८ विख्याता दश पंच च सर्वदा, तत्राष्टमो मुहूर्तो यः स याज्ञ० ११२२४, ऊधस् (कुण्डोनी) 1. वह गाय काल: कुतपः स्मृतः ।-पम् 1. कुश घास 2. एक जिसका ऐन या औड़ी भरी हई हो 2. भरे पूरे स्तनों प्रकार का कंबल। वाली स्त्री,-कोटः 1. रखली स्त्रियाँ रखने वाला कुतस्त्य (वि.) [कुतस्+त्यप] 1. कहाँ से आया हुआ 2. चार्वाकमतावलंबी, नास्तिक, जारज ब्राह्मण, कोल: 2. कैसे हुआ। नीच या दुश्चरित्र व्यक्ति,--गोलम्-गोलकम् | कुतुकम् [कुत+उका 1. इच्छा, रुचि 2. जिज्ञासा 1. कांजी 2. कुण्ड और गोलक का समुदाय।
(कौतुक) 3. उत्सुकता, उत्कण्ठा, उत्कटता-केलिकलाकुण्डलः,-लम् [कूण्ड ---मत्वर्थे ल] 1. कान की बाली, कान
कुतुकेन च काचिदम यमुनाजलकले, मंजुलवंजुलकुंजगतं का आभूषण-श्रोत्रं श्रुतेनैव न कुण्डलेन-भर्तृ० २०७१,
विचकर्ष करेण दुकूले- गीत०१। चौर० ११, ऋतु० २।२०, ३१९, रघु० ११३१५ कुतुषः, कुतः (स्त्री०) [कुतू+डुप पृषो०, कु--तन्+कू 2. कड़ा 3. रस्सी का गोला।
टिलोपः बा०] कुप्पी (तेल डालने के लिए चमड़े की कुण्डलना कुण्डल+णिच-+-यच+टाप] घेरा डालना (शब्द बनी)।
को गोल घेरे में रखना) यह प्रकट करने के लिए कि कुतूहल (वि.) [कुतू+हल-|-अच] 1. आश्चर्यजनक यह भाग छोड़ देना या इस पर विचार नहीं करना 2. श्रेष्ठ सर्वोत्तम 3.प्रशंसाप्राप्त, प्रसिद्ध,-लम् 1. इच्छा, है; -तदोजसस्तद्यशसः स्थिताविमौ वथेति चित्ते जिज्ञासा-उज्झिताब्देन जनितं नः कुतूहलम् - श०१, कुरुते यदा यदा, तनोति भानोः परिवेषकैतवात्तदा यदि विलासकलासु कुतूहलम्-गीत० १, (पपी) कुतूविधिः कूण्डलनां विधोरपि। नै० १११४, तु० २।९५ हलेनेव मनुष्यशोणितम्-रघु० ३।५४,१३।२१, से भी।
।६५ 2. उत्सुकता 3. जिज्ञासा को उत्तेजित करने कुण्डलिन् (वि.)(स्त्री०-नी)[कुण्डल---इनि] 1. कुण्डलों बाला, सुहावना, मनोरंजक, कौतुक या जिज्ञासा।
से विभूषित 2. गोलाकार, सपिल 3. घुमावदार, | कुत्र (अव्य०) [किम्+अल्] 1. कहाँ, किस बात में,-कुत्र कुण्डली मारे हुए (साँप की भांति)-पु. 1. सांप में शिशुः-पंच० १, प्रवृत्तिः कुत्र कर्तव्या-हि०१ 2. मोर 3. वरुण की उपाधि ।
2. किस विषय में---तेजसा सह जातानां वयः कुत्रोपकुण्डिका [कुंड+कन्+टाप, इत्वम्] 1. घड़ा 2. कमंडल । युज्यते-पंच० ११३२८ (कभी कभी 'कुत्र' का प्रयोग कुण्डिन् (पुं०) [कुण्ड् + इनि] शिव की उपाधि ।
'किम्' शब्द अधि० एक० २० के लिए किया जाता कुण्डिनम् [कुण्ड्+इनच्] एक नगर का नाम, विदर्भदेश की
है), जब 'कुत्र' के साथ चिद्, चन, या अपि, जोड़ राजधानी।
दिया जाता है तो वह अर्थ की दृष्टि से अनिश्चयाकुंडि (डी) र (वि०) [कुण्ड् + इ (ई) रन्] बलवान्,
त्मक बन जाता है, कुत्रापि, कुत्रचित् किसी जगह, -रः मनुष्य ।
कहीं, न कुत्रापि कहीं नहीं; कुत्रचित्-कुत्रचित्--एक कुतः (अव्य०) [किम् +तसिल] 1. कहाँ से, किधर से
स्थान पर दूसरे स्थान पर, यहाँ-यहाँ-मनु० ९।३४ । ..-कस्य त्वं वा कुत आयातः-मोह० ३ 2. कहाँ, । कुत्रत्य (वि.) [कुत्र+त्यप्] कहाँ रहने वाला या कहाँ
और कहाँ, और किस स्थान पर आदि-ईदग्विनोद: वास करने वाला। कुतः-श० २२५ 3. क्यों, किस लिए किस कारण से, कुत्स (चुरा० आ०-कुत्सयते, कुत्सित) गाली देना, 'बुराकिस प्रयोजन से-कुत इदमच्यते-श.५ 4. कैसे, भला कहना, निन्दा करना, कलंक लगाना, मनु० २१५४, किस प्रकार -स्फुरति च बाहुः कुतः फलमिहास्य-श० याज्ञ० ११३१, शा० २१२८ । १।१५ 5. और अधिक, और कम-न त्वत्समोस्त्यभ्य-कुत्सनम्, कुत्सा [कुत्स्+ल्युट्, कुत्स्+अ+टाप] दुर्वचन, धिकः कुतोऽन्यः-भग० १११४३, ४१३१, न मे स्तेनो घृणा, भत्र्सना, गाली देना-देवतानां च कुत्सनम्-मनु० जनपदे न कदर्यो "न स्वैरी स्वैरिणी कूत:----छा. 6. ४११६३ । क्योंकि, कभी कभी कुतः' केवल 'किम्' शब्द के अपा- | कुत्सित (वि०) [ कुत्स्+क्त ] 1. घृणित, तिरस्करणीय दान के रूप में ही प्रयुक्त होता है-कुत: कालात्स- 2. नीच, अधम, दुश्चरित्र । मुत्पन्नम्--वि० पु०(=कस्मात् कालात्), जब 'कुतः' । कुथः [कु+थक्] कुशा नामक घास ।
For Private and Personal Use Only