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का हो या बिना भाड़े का) 3. लहार,-हरिणाक्षि नामक पवित्र घास,-युगम् चौथा (वर्तमान) युग, कटाक्षेण आत्मानमवलोकय, न हि खङ्गो विजानाति अर्थात् कलियुग,-योगः 1. सांसारिक तथा धार्मिक कर्मकारं स्वकारणम् । उद्भट 4. साँड़,-कारिन् (पुं०) अनुष्ठानों का सम्पादन 2. सक्रिय चेष्टा, उद्योग,--मशः मजदूर कारीगर, कार्मुक:-कम् एक मजबूत धनुष, भाग्य जो पूर्व जन्म में किये गये कार्यों का अनिवार्य ---कोलकः धोबी,-क्षम (वि.) कोई कार्य या कर्तव्य परिणाम है,-विपाकः=कर्मपाक,-शाला कारखाना, सम्पादन करने के योग्य,-आत्मकर्मक्षम देहं क्षात्रो धर्म -शील,-शूर (वि०) कर्मवीर, उद्योगी, परिश्रमी, इवाश्रित:---रघु० १११३,-क्षेत्रम् धार्मिक कृत्यों की --संग सांसारिक कर्तव्य तथा उनके फलों म आसक्ति । भूमि अर्थात् भारतवर्ष, तु० कर्मभूमि,—ाहीत (वि०) -सचिवः मंत्री,-संन्यासिकः,-संन्यासिन (पुं०) कार्य करते समय पकड़ा हुआ (जैसे कि चोर),-घात: 1. धर्मात्मा पुरुष जिसने प्रत्येक सांसारिक, कार्य से कार्य को छोड़ बैठना या स्थगित कर देना,-चं (चां) विरक्ति पा ली है 2. वह संन्यासी. जो कर्म फल का डाल: 1. काम करने में नीच, नीच या निकृष्ट कर्म करने ध्यान न करते हुए धर्मानुष्ठानों का सम्पादन करता है, वाला व्यक्ति, वशिष्ट उनके प्रकारों का उल्लेख करता - साक्षिन् (पु०) 1. आँखों देखा गवाह, प्रत्यक्षदर्शी है-असूयकः पिशुनश्च कृतघ्नो दीर्घरोषकः, चत्वारः साक्षी-कु० ७.८३ 2. जो मनुष्य के शुभाशुभ कर्मों कर्मचाण्डाला: जन्मतश्चापि पञ्चमः। 2. जो अत्याचार को प्रत्यक्ष देखता रहता है (इस प्रकार के नौ देवता पूर्ण कार्य करता है-उत्तर० ११४६ 3. राहु,--चोदना हैं जो मनुष्य के समस्त कार्यों को प्रत्यक्ष देखते हैं 1. यज्ञानुष्ठान में प्रेरित करने वाला प्रयोजन –तथाहि--सूर्यः सोमो यम: कालो महाभूतानि पंच 2. धार्मिक कृत्य की विधि,-ज्ञः धार्मिक अनुष्ठानों से च, एते शुभाशुभस्यह कर्मणो नव साक्षिणः ।-सिद्धिः परिचित,-त्यागः सांसारिक कर्तव्य और धर्मानुष्ठान (स्त्री०) अभीष्ट कार्य की सिद्धि, सफलता--कु० को छोड़ देना,--तुष्ट (वि.) कार्य करने में भ्रष्ट, ३।५७,-स्थानम् सार्वजनिक कार्यालय, काम करने दुष्ट, दुराचारी अनादरणीय,-दोषः 1. पाप, दूर्व्यसन का स्थान ।
-मन० ६१६१, ९५ 2. ऋटि, दोष, (कार्य करने में) | कर्मन्दिन् [ कर्मन्द-इनि ] संन्यासी, धार्मिक भिक्ष । भारी भूल-मनु० १।१०४ 3. मानवी कृत्यों के दुष्परि- कारः [कर्मन्+ +अण् ] लुहार याज्ञ० १११६३, णाम 4. निद्य आचरण, धारयः समास, तत्पुरुष का ___मनु० ४।२१५ । एक भेद (इसमें प्रायः विशेषण व विशेष्य का समास मिन (वि.) [ कर्मन --इनि] 1. कार्य करने वाला, होता है), -- तत्पुरुष कर्मधारय येनाहं स्यां बहुव्रीहिः क्रियाशील, कार्यरत 2. किसी कार्य या व्यवसाय में - उद्भट, -- ध्वंस: 1. धर्मानुष्ठानों से उत्पन्न फल का व्याप्त 3. जो फल की इच्छा से धर्मानुष्ठान करता नाश 2. निराशा,नामन् (व्या० में) कृदन्तक संज्ञा, है—कमिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जन
-नाशा काशी और विहार के मध्य बहने वाली एक -भग०६।४६; (पुं०) कारीगर, शिल्पकार –याज्ञ. नदी,-निष्ठ (वि०) धर्मानुष्ठान के सम्पादन में | २।२६५ । संलग्न,--पथः 1. कार्य की दिशा या स्रोत 2. धर्मा- कमिष्ठ (वि०) [ कमिन्-+इष्ठन्, इनो लुक ] व्यापारनुष्ठान का (कर्म) मार्ग (विप० ज्ञान मार्ग),–पाकः कुशल, चतुर, परिश्रमी। कार्यों की परिपक्वावस्था, पूर्वजन्म में किये गये कर्मों कर्वटः [ कवं+अटन् ] बाजार, मंडी या किसी जिले का फल,---प्रवचनीय कुछ उपसर्ग तथा अव्यय जो (जिसमें २०० से ४०० तक गांव हों) का मुख्य नगर । क्रियाओं के साथ संबद्ध न होकर केवल संज्ञाओं का | कर्ष: [ कृष-+अच, धन वा ] 1. रेखा खींचना, घसीटना, शासन करते हैं उदा० 'आ मुक्ते संसारः' में 'आ' खींचना-याज्ञ०२।२१७ 2. आकर्षण 3. हल जोतना कर्मप्रवचनीय है, इसी प्रकार 'जपमनु प्रावर्षत में 'अन', 4. हल-रेखा, खाई 5. खरोंच,-र्षः,-बम--चाँदी या तु० उपसर्ग, गति या निपात,-न्यासः धनिष्ठानों के सोने का १६ माशे का वजन । सम-आपण== फलों का परित्याग, फलम् पूर्व जन्म में किये हए कार्षापण। कर्मों का फल या पारितोषिक (दुःख, सुख),बन्धः, | कर्षक (वि०) [ कृष्+ण्वुल ] खींचने बाला,-कः बन्धनम जन्म-मरण का बन्धन, धमानुष्ठानों के फल | किसान, खेतिहर...याज्ञ०२.२६५ चाहे शुभ हों या अशुभ (इनके कारण आत्मा सांसा- ! कर्षणम् [ कृष+ ल्युट] 1. रेखा खींचना, घसीटना, रिक विषय-वासनाओं में लिप्त रहता हैं),---भूः, । खींचना, झुकाना, (धनुप का)---भज्यमानमतिमात्र—भूमिः (स्त्री०) 1. धर्मानुष्ठान की भूमि-अर्थात
कर्पणात्– रघु० १११४६ ७६२ 2. आकर्षण भारतवर्ष 2. जुती हुई भूमि, मीमांसा संस्कारादिक 3. हल जोतना, खेती करना 4. क्षति पहुँचाना, कष्ट अनुष्ठानों का विचारविमर्श या मीमांसा,--मूलम् कुश देना, पीडित करना-मनु० ७११२ ।
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