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( २५२ ) कान का आभूषण या (कइयों के मतानुसार) केवल देश की स्त्री-कर्णाटी चिकूराणां ताण्डवकर:-विद्धआभूषण, (मम्मट कहता है कि यहाँ 'कान' का अर्थ शा० ११२९। 'कान में स्थिति है-तु० उसका एत० टिप्पण---कर्णा-कणिक (वि.) [कर्ण+इकन ] 1. कानों वाला 2. पतवार वतंसादिपदे कर्णादिध्वनिनिर्मितः, सन्निधानार्थबोधार्थ धारी,-क: केवट,- का 1. कानों की बाली 2. गांठ, स्थितेष्वेतत्समर्थनम । काव्य०७),-उपकणिका अफ- गोल गिल्टी 3. कमल का फल, कंवलगट्टा 4. एक छोटी वाह (शा. 'एक कान से दूसरे कान तक'),---क्ष्वेड: कूची या कलम 5. मध्यमा अंगुली 6. फल का डंठल (आयु में) कान में लगातार गंज होना,-गोचर 7. हाथी के सूंड की नोक 8. खड़िया। (वि.) जो कानों को सुनाई पड़े, ग्राहः कर्णधार, | कणिकारः [कणि++अण्] 1. कनियार का वृक्ष-निभि-- जप (वि.) (कर्णेजपः भी) रहस्य की बात बत- द्योपरि कर्णिकारमकुलान्यालीयते षट्पदः-विक्रम लाने वाला, पिशन, मुखबिर,-जपः,--जापः झूठी २।२३, ऋतु०६।६, २० 2. कमल का फल, कंवलगद्रा निन्दा करना, चुगली करना, कलंक लगाना,--जाहः --- रम् कनियार का फूल, अमलतास का फूल (यद्यपि कान की जड़-अपि कर्णजाहविनिवेशितानन:-मा० यह फूल बड़े सुन्दर रंग का होता है, परन्तु सुगन्ध न ५५८,-जित् (पुं०) कर्णविजेता, अर्जुन, तृतीय पांडव, होने के कारण इसे कोई पसन्द नहीं करता--तु० कु. ---तालः हाथी के कानों की फड़फड़ाहट, या उससे ३।२८,--वर्णप्रकर्षे सति कर्णिकारं दुनोति निर्गन्धतया उत्पन्न आवाज-विस्तारितः कुंजरकर्णताल:-रघु० स्म चेतः, प्रायेण सामग्रघविधौ गुणानां पराङमुखी ७।३९, ९।७१, शि०१३।३७,-धारः मल्लाह, चालक विश्वसृजः प्रवृत्तिः । --अकर्णधारा जलधौ विप्लवेतेह नौरिव --हि० ३१२, | कणिन (वि.) कर्ण+इनि] 1. कानों वाला 2. लम्बे अविनयनदीकर्णधारकर्ण-वेणी०४-बारिणी हथिनी कानों वाला 3. फल लगा हुआ (जैसे तीर)-(पुं०) --पथः श्रवणपरास,-परम्परा एक कान से दूसरे कान, ____ 1. गधा 2. मल्लाह 3. गाँठों से सम्पन्न बाण । अन्श्रुति-इति कर्णपरम्परया श्रुतम्-रत्न० १, कर्णी (स्त्री०) कर्ण -डीए 1. पुंखदार या विशेष आकार -पालिः (स्त्री०) कान की लौ, पाशः सुन्दर कान, का बाण 2. चौर्य कला व विज्ञान के पिता मूलदेव की .--पूरः 1. (फूलों का बना) कान का आभूषण, कान माता। सम-रयः बन्द डोली, स्त्रियों की सवारी, की बाली-इदं च करतलं किमिति कर्णपूरतामारो- पालकी-कर्णीरथस्थां रघुवीरपत्नीम् --रघु० १४। पितम्-का०६० 2. अशोकवृक्ष,—पूरक: 1. कान की १३, सुतः चौर्यकला व विज्ञान के जन्मदाता मूलबाली 2. कदम्ब वृक्ष 3. अशोक वृक्ष 4. नील कमल, | देव-कर्णीसुतकथेव संनिहितविपुलाचला-का० १९,
-प्रान्तः कान की पाली,-भषणम्,-भूषा कान का ! कर्णीसुतप्रहिते च पथि मतिमकरवम्-दश०।। गहना,--मूलम् कान की जड़-रघु० १२।२,-पोटी कर्तनम् [ कृत+ल्युट ] 1. काटना, कतरना-याज्ञ. दुर्गा का एक रूप,-वंशः बाँसों से बना ऊँचा मचान, । २॥ २२९, २८६ 2. रूई कातना ( सधैः कर्तन--जित (वि.) बिना कानों का, (-तः) साँप, J साधनम् )। -विवरम कान का श्रवण-मार्ग,---विष् (स्त्री०) घूध, | कर्तनी (स्त्री०) किर्तन+कीप कैंची। कान का मैल,-वेधः (बालियाँ पहनने के लिए) कानों | कतरिका, कर्तरी (स्त्री०) 1. कची 2. चाक 3. खड्ग, का बींधना,---वेष्टः,-वेष्टनम् कान की बाली, | छोटी तलवार। -शकली (स्त्री०) कान का बाहरी भाग (श्रवण | कर्तव्य (सं० कृ०) [कृ+तव्यत] 1. जो कुछ उचित हो मार्ग पर ले जाने वाला) नै० २।८,-शूल:,-लम् या होना चाहिए,-हीनसेवा न कर्तव्या कर्तव्यो महदाकानों में पीड़ा,-श्रब (वि.) जो सुनाई दे, ऊँची (स्वर)
श्रय:-हि० ३।११, मया प्रातर्निःसत्त्वं वनं कर्तव्यम् --कर्णश्रवेऽनिले-मनु० ४११०२,-श्रावः,--संश्रवः
--पंच०१ 2. जो काटना या कतरना चाहिए, नष्ट कानों का बहना, कान से मवाद निकलना,--सूः (स्त्री०)
करने योग्य-पुत्रः सखा वा भ्राता वा पिता वा यदि कर्ण की माता, कुन्ती,-होन (वि०) कर्णरहित
वा गुरुः, रिपुस्थानेषु वर्तन्तः कर्तव्या भूतिमिच्छता (-नः) साँप।
---महा०,-व्यम्, कर्तव्यता, जो होना चाहिए, धर्म, कर्णाकणि (वि.) [कर्णे कर्णे गृहीत्वा प्रवृत्तं कथनम् आभार-कर्तव्यं वो न पश्यामि---कु०६।२१, २०६२,
-व्यतिहारे इच्, पूर्वस्य दीर्घश्च] कानों कान, एक याज्ञ० १२३३० । कान से दूसरे कान।
(वि.) [कृ+तच] 1. करने वाला, कर्ता, निर्माता, कर्णाटः [कर्ण-अट+अच भारत प्रायोद्वीप के दक्षिण में सम्पादक-व्याकरणस्य कर्ता रचयिता, ऋणस्य कर्ता
एक प्रदेश-(काव्यं) कर्णाटेन्दोर्जगति विदुषां कण्ठभूपा- -क़र्ज करने वाला, हितकर्ता=भला करने वाला, त्वमेतु-विक्रमांक० १८५१०२,-टी (स्त्री
सुवर्णकर्ता सुनार 2. (व्या० में) अभिकर्ता (करण
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