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( २५१ ) पेटी । सम-अक्षः हिलती पूंछ वाला (खंजन) ।। कर्ण का जन्म हुआ। (दे० कुंती) बालक उत्पन्न होने पक्षी,- अंगः खंजन -पक्षी, ----अंधुक: अंधा कुआँ, तु०, पर कुन्ती ने अपने बन्धु-बान्धवों की निन्दा तथा लोकअंधकप ।
लज्जा के कारण उसे नदी में फेंक दिया। धृतराष्ट्र कर्कराटः किक हास रटति प्रकाशयति, कर्क+र+कुञ] के सारथि अधिरथ ने उसे नदी से निकाल कर अपनी तिरछी दृष्टि, कनखी, कटाक्ष ।
पत्नी राधा को दे दिया। उसने उसे पालपोस कर कर्करालः [कर्कर+अल् +अच्] धुंघराले बाल, चूर्णकुन्तल । बड़ा किया, इसी लिए कर्ण को सूतपुत्र या राधेय कहते कर्करी [कर्कर+डीप्] ऐसा जलपात्र जिसकी तली में हैं। बड़ा होने पर दुर्योधन ने कर्ण को अङ्ग देश का चलनी की भाँति छिद्र हों।
राजा बना दिया। अपनी दानशीलता के कारण वह कर्कश (वि.) [कर्क+श] 1. कठोर, कड़ा (विप० कोमल दानवीर कर्ण कहलाया। एक बार इन्द्र (जो अपने
या मदु) सुरद्विपास्फालनकर्कशाङ्गुलौ-रघु० ३।५५, पुत्र अर्जुन पर अनुग्रह करने के लिए आतुर रहता था) ऐरावतास्फालनकर्कशेन हस्तेन पस्पर्श तदङ्गमिन्द्रः ने ब्राह्मण का वेश धारण किया और कर्ण को झांसा --कु० ३।२२, ११३६, शि० १५:१० 2. निष्ठुर, क्रूर, देकर उसके दिव्य कवच व कुंडल हथिया लिये, बदले निर्दय (शब्द, आचरण आदि) 3. प्रचण्ड, प्रबल अत्य- में उसे एक शक्ति या बरछी दे दी। युद्ध की कला धिक तस्य कर्कशविहारसंभवम्--रघु० ९।६८ में अपने आप को दक्ष बनाने की इच्छा से कर्ण ब्राह्मण 4. निराश 5. दुराचारी, दुश्चरित्र, स्वामिभक्ति से हीन बन कर परशुराम के पास गया, वहाँ उसने परशुराम (जैसा कि कोई स्त्री) 6. समझ में न आने योग्य, से अस्त्र-संचालन की शिक्षा प्राप्त की। परन्तु यह भेद दुर्बोध-तर्के वा भृशकर्कशे मम सम लीलायते भारती बहत दिन तक छिपा न रहा। एक बार जब परशुराम -~~-प्रस० ४,-शः तलवार।
अपना सिर कर्ण की जंघा पर रख कर सो रहे थे, तो कर्कशिका, कर्कशी [कर्कश+कन्+टाप, इत्वम्, ङीष् वा] एक कीड़ा (कई लोगों के मतानुसार इन्द्र ने कर्ण को जङ्गली बेर, झड़बेर ।
विफल करने की दृष्टि से 'कीड़े' का रूप धारण किया ककिः कर्क +-इन कर्क राशि, चतुर्थ राशि ।
था) कर्ण की जंघा को खाने लगा, उसने जंघा में कर्कोटः,-टकः [कर्क +ओट, स्वार्थे कन्] आठ प्रधान साँपों गहरा घाव कर दिया, परन्तु उस पीड़ा से भी कर्ण
में से एक (जब राजा नल को कलि के दुष्प्रभाव से टस से मस न हुआ। इस अनुपम सहन शक्ति से नाना प्रकार की यातनाएँ सहन करनी पड़ी तो उस परशुराम को कर्ण की असलियत का पता लग गया, समय कर्कोट ने, जिसे नल ने एक बार आग से बचाया फलतः उसने कर्ण को शाप दे दिया कि आवश्यकता था, ऐसा विकृत कर दिया कि विपत्काल में भी उसे के समय उसकी विद्या-काम नहीं आवेगी। एक कोई पहचान न सके)।
दूसरे अवसर पर उसे एक ब्राह्मण ने (जिसकी गोएँ कर्चुरः [कर्ज +ऊर, पृषो० च आदेशः] एक प्रकार का अनजाने में पीछा करते हुए कर्ण द्वारा मारी गई थी) सुगन्धित वृक्ष,--रम् 1. सोना 2. हरताल ।
शाप दे दिया कि संकट आ पड़ने पर उसके रथ का कर्ण (चुरा० उभ०-कर्णयति-ते, कणित) 1. छेद करना पहिया पृथ्वी खा लेगी। इस प्रकार की कठिनाइयों
सूराख करना 2. सुनना (प्रायः 'आ' उपसर्ग के साथ) के होते हुए भी कर्ण ने भीष्म और द्रोण के पतन के आ--,समा-, सुनना, ध्यान से सुनना-सर्वे सवि- पश्चात कौरव सेना के सेनापति के रूप में कौरवस्मयमाकर्णयन्ति---श० १, आकर्णयनुत्सुकहंसनादान् पाण्डवों के युद्ध में अपना युद्ध कौशल खुब दिखाया। —भट्टि० १११७।
तीन दिन तक वह पाण्डवों के सामने रणक्षेत्र में डटा कर्णः कर्ण्यते आकर्ण्यते अनेन-कर्ण+अप] 1. कान रहा। परन्तु अन्तिम दिन जब कि उसके रथ का
--अहो खलभुजङ्गस्य विपरीतवधक्रमः, कर्णेलगति पहिया पृथ्वी में फँस गया था, वह अर्जुन के द्वारा मारा चान्यस्य प्राणरन्यो वियुज्यते । पंच०११३००, ३०५, गया। कर्ण, दुर्योधन का अत्यन्त घनिष्ठ मित्र था, कर्ण दा ध्यान से सुनना, कर्णमागम् कान तक आना, पाण्डवों का नाश करने के लिए शकुनि से मिल कर ज्ञात होना-रघु० ११९, कर्णे कान में डालना, जो योजनाएँ या षड्यन्त्र दुर्योधन ने किये, उन सब में -. चौर० १०, कर्णे कथयति कान में कहता है, दे० कर्ण उसके साथ था)। सम०-अंजलि: बाहरी कान षट्कर्ण, चतुष्कर्ण 2. गंगाल का कड़ा 3. नाव की पत- का श्रवण-मार्ग,- अनुजः युधिष्ठिर,- अन्तिक (दि०) वार 4. त्रिभुज के समकोण के सामने की रेखा 5. कान के निकट--स्वनसि मृदु कर्णान्तिकचर:-श. महाभारत में वणित कौरव पक्ष का एक महारथी ११२४,-अन्दुः- (स्त्री०) कान का आभूषण, (जब कुन्ती अपने पिता के घर रहती थी, उस समय कान की बाली,- अर्पणम्, कान देना, ध्यान से सुनना सूर्य देव के संयोग से कून्ती की अविवाहितावस्था में । -आस्फाल हाथी के कानों की फड़फड़ाहट,-उत्तंस
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