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की रक्षा करने वाला, वचनम् 'भाषितम् — दे० वर्त्मन् ( नपुं० ) 1. अन्तरिक्ष 2. वायुमंडल, वायु, वाणी आकाश से आई हुई आवाज़, अशरीरिणी वाणी, सलिलम् वर्षा, ओस-- स्फटिक ओला । आकिञ्चनम्, आकिञ्चन्यम् [ अकिञ्चन + अण्, ष्यञ्च वा ] गरीबी, धन का अभाव ।
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आकीर्ण (भू० क० कृ० ) [ आ + कृ + क्त ] 1. बिखरा हुआ, फैला हुआ भरा हुआ, व्याप्त, संकुल - खचाखच भरा हुआ, परिपूर्ण, भरपूर — जनाकीर्णं मन्ये हुतवहपरीतं गृहमिव - श० ५। १०, आकीर्णमृषिपत्नीनामुटजद्वाररोधिभिः - रघु० १५० । आकुञ्चनम् [आ + कुञ्च् + ल्युट् ] 1. झुकाना, सिकोड़ना, संकोचन 2. पाँच कर्मों में से एक-- सिकुड़न 3. एकत्र करना, ढेर लगाना 4 टेढ़ा होना ।
आकुल (वि०)_[ आ + कुल्+क] 1. भरपूर, भरा हुआ
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- प्रचलदूमिमालाकुलं (समुद्रम्) - भर्तृ० २२४, वाष्पा कुलां वाचं नल० ४ १८, आलापकुतुहला कुलतरे श्रोत्रे अमरु ८१, 2. प्रभावित, प्रभावग्रस्त, पीड़ित, आहत - हर्ष, शोक, विस्मय, स्नेह आदि 3. व्यस्त, लीन 4 घबराया हुआ, विक्षुब्ध, उद्विग्न अभियं प्रतिष्ठासुरासीत्कार्यद्वयाकुल:- शि० २१, विस्मित किंकर्तव्यविमूढ़, अनिर्धारित, "आकुल, अत्यन्त क्षुब्ध 5. बिखरे बाल वाला, अव्यवस्थित 6. असंगत, विरोधी, लम् आबाद जगह। आकुलित (वि० ) [ आ + कुल / क्त ] 1. दुःखो, उद्विग्न, विक्षुब्ध - मार्गाचलव्यतिकराकुलितेव सिंधु: - कु० ५।८५, 2. फँसा हुआ, 3. मलिन, धूमिल, धूमदृष्टः श०४, 4. अभिभूत, पीड़ित, शोक, पिपासा आदि । आकूणित ( वि० ) [ आ + कूण् + क्त ] कुछ संकुचित - मदन शल्य वेदना कूणित त्रिभागेन का० १६६, ८१ । आकूतम् [आ + कू+क्त] 1. अर्थ, इरादा, प्रयोजन -इती"रिताकत मनीलवाजिनम् कि० १४।२६, 2. भावना, हृदय की स्थिति, संवेग, चूडामण्डल बन्धनं तरलयत्याकूतजो वेपथुः -उत्तर० ५।३६, भावाकूत---अमरु ४ मा० ९।११, साकूतम् भावनापूर्वक, साभिप्राय ( प्रायः नाटकों में रंगमंच के निदेश के रूप में ) 3. आश्चर्य या जिज्ञासा 4. चाह, इच्छा ।
आकृति: ( स्त्री० ) ( आ + कृ + वितन् ] 1. रूप, प्रतिमा, शक्ल-गोवर्धनस्याकृतिरत्वकारि शि० ३।४, 2. शरीर, काया - किमित्र हि मधुराणां मण्डनं नाकृतीनाम् - शि० ११२०, विकृताकृति – मनु० ११:५३ इस प्रकार घोर 3. दर्शन, सुन्दर रूप, भद्ररूप, न ह्याकतिः सुसदृशं विजहाति वृत्तम् मुच्छ० ९।१६, यत्राकृतिस्तत्र गुणा वसन्ति सुभाषित 4. नमूना, लक्षण 5. कबीला, जाति । सम० गणः व्याकरण के किसी
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विशेष नियम से संबंध रखने वाले शब्दों की सूची- जो केवल नमूनों की सूची है (बहुधा गणपाठ में अंकित ) यथा अर्शादिगण, स्वरादिगण, चादिगण आदि, छत्रा घोषातकी नाम की लता ।
आकृष्टिः (स्त्री० ) [ आ + कृष् + क्तिन् ] 1. आकर्षण 2. खिचाव, गुरुत्वाकर्षण (गणित ज्योतिष) ; - आकृष्टिशक्तिश्च मही तया यत्स्वस्थं गुरु स्वाभिमुखं स्वशक्त्या, आकृष्यते तत्पततीव भाति समे समन्तात् क्व पतत्वियं खे । गोलाघ० । 3. धनुष का खींचना या झुकाना, ज्या अमरु० |
आकर (वि० ) [आके अन्तिके कीर्यते इति आ + कृ + अप् + टापू - आकेकरा दृष्टिः सा अस्ति अस्य इति - आकेकरा + अच्] अधमुंदा, अर्धनिमीलित ( आँखें ) - निमीलिदाकेकरलोलचक्षुषा कि० ८1५३, मु० ३।२१, दृष्टि राकेकरा किंचित्स्फुटापांगे प्रसारिता, मीलितार्धटालोके ताराव्यावर्तनोत्तरा ।
आकोकेर : ( ग्रीक शब्द ) मकर राशि | आक्रन्दः [ आ + न् + घञ]1. रोना, चिल्लाना 2. पुका
रना, आह्वान करना, 3. शब्द चिल्लाहट 4. मित्र, रक्षक 5. भाई 6. रोने का स्थान 7. वह राजा जो अपने मित्र राजा को दूसरे की सहायता करने से रोके वह राजा जिसकी राजधानी मिलती हुई किसी दूसरी राजधानी के पास है । मनु० ७।२०७ । आक्रन्दनम् [आ + क्रन्द् + ल्युट् ] 1. स्वर से पुकारना ।
विलाप, रुदन 2. ऊँचे
आक्रन्दिक ( वि० ) [ आक्रन्द्र धावति इति आक्रन्द + ञ] वह व्यक्ति जो किसी दुखिया के रोने को सुनकर दौड़ कर उसके पास आता है ।
आदित (भू० क० कृ० ) आ + क्रन्द् +क्त] 1 दहाड़ने
वाला, या फूट २ कर रोने वाला, 2. आहूत, बुलाया हुआ, तम् चिल्लाना, दहाड़ना ।
आक्रमः --क्रमणम् आ + कम् + घञ, ल्युट् वा ] 1. निकट
आना, उपागमन 2. टूट पड़ना, आक्रमण करना, हमला 3. पकड़ना, ढकना, कब्ज़े में करना, 4. पार करना, प्राप्त करना 5 विस्तार करना, चक्कर लगाना, बढ़ चढ़ कर होना 6. शक्ति से अधिक बोझा लादना ।
आक्रान्त (भू० क० कृ० ) [ आ + क्रम् + क्त ] 1. पकड़ा हुआ, अधिकार में किया हुआ, पराजित, पराभूत
आन्तविमानमार्गम् - रघु० १३०३७, तक पहुँचना, भरपूर, अधिकृत, ढका हुआ शुशुभे तेन चाक्रान्तं मङ्गलायतनं महत्- रघु० १७।२९, वलिभिर्मुखमाकान्तम् - भर्तृ० ३११४, इसी प्रकार मदन भय, शोक आदि, 2. लदा हुआ (मानों बोझ से ) 3. बढ़ा हुआ, ग्रहण लगा हुआ, आगे बढ़ा हुआ - रघु०
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