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( १९० ) प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करना 2. ऊपर की ओर देखना | उत्सर्गः [ उद्+सृज्+घन ] 1. एक ओर रख देना, 3. अनुमान, अटकल 4. तुलना करना।
छोड़ देना, तिलांजलि देना, स्थगन-कु० ७१४५, 2. उत्प्रेक्षा [ उद्+प्र+ईक्ष-+अ] 1. अटकल, अनुमान उडेलना, गिरा देना, निकालना-तोयोत्सर्गद्रुततरगतिः
2. उपेक्षा, उदासीनता 3. (अलं० शा० में) एक अलंकार मेघ० १९:३७ 3. उपहार, दान, प्रदान -मनु० जिसमें उपमान और उपमेर को कई बातों में समान १११९४ 4. व्यय करना 5. ढीला करना, खुला छोड़ समझने की कल्पना की जाती है, और उस समानता के देना-जैसा कि 'वृपोत्सर्ग' में 6. आहति, तर्पण 7. आधार पर उनके एकत्व की संभावना की ओर स्पष्ट विष्ठा, मल आदि-पुरीष', मलमूत्र° 8. पूर्ति (अध्यरूप से या किसी तात्पर्यार्थ के द्वारा संकेत किया जाता यन या व्रतादिक की ) तु० ---उत्सृष्टा वै वेदाः 9. है-उदा० लिम्पतीव तमोङ्गानि बर्षतीबाजन नभः सामान्य नियम या विधि (विप० अपवाद-एक —मुद्रा० १।३४ स्थितः पृथिव्या इव मानदण्ड: विशेष नियम ).... अपवादरिवोत्सर्गाः कृतव्यावृत्तयः -कु० १११, तु० सा० द० ६८६-९२, और उत्प्रेक्षा परैः --कु० २।२७. अपवाद इवोत्सर्ग व्यावर्तयितुमीके प्रसंग में रस।
श्वर:-रघु० १५१७ 10. गुदा।। उत्प्लवः [उद्-लु+अप्] उछल-कूद, छलांग,-बा किश्ती। उत्सर्जनम् [ उद्-+सृज--ल्युट ] 1. त्याग, तिलांजलि देना, उत्प्लवनम् [उद्+प्लु+ल्युट] कूदना, उछलना, ऊपर से ढीला करना, मक्त करना आदि 2. उपहार, दान 3. छलांग लगाना।
वेदाध्ययन का स्थगन 4. इस स्थगन से संबद्ध एक उत्फलम् [प्रा० स०] उत्तम फल ।
पाण्मासिक संस्कार वेदोत्सर्जनाख्यं कर्म करिष्ये उत्फालः [ उद्+फल्+घा ] 1. कूद, छलांग, द्रुतगति ---श्रावणी मंत्र --मनु० ४।९६। —मृच्छ० ६, 2. कूदने की स्थिति।
उत्सर्पः,----सर्पणम् [उद-+-सप्+घञ, ल्युट् वा] 1. ऊपर उत्फुल्ल ( भू० क० कृ० ) [ उद्+फुल् + क्त ] 1. खुला को जाना या सरकना 2. फूलना, हांफना ।।
हुआ, (फूल की भांति ) खिला हुआ 2. खूब खुला | उत्सपिन (वि.) [उद्+सप-+-णिनि] 1. ऊपर को जाने या हुआ, प्रसारित, विस्फारित ( आंखें) 3. सूजा हुआ, सरकने वाला, उठने वाला -- रघु० १६१६२, 2. उड़ने शरीर में फूला हुआ 4. पीठ के बल
वाला, प्रोन्नत--उत्सर्पिणी खल महतां प्रार्थना-श०७। उत्तान,-लम् योनि, भग। .
उत्सवः [ उद्+सू+अप् ] 1. पर्व, हर्ष या आनन्द का उत्सः [उनत्ति जलेन, उन्+स किच्च नलोपः ] अवसर, जयन्ती,रत श० ६.१९, तांडव आनन्द 1. झरना, फौवारा 2. जल का स्थान ।
या हर्षनृत्य, उत्तर० ३।१८ मनु० ३१५९ 2. हर्ष, उत्सङ्गः [उद्+सङ्ग्+घञ्] 1. गोद,-पुत्रपूर्णोत्सङ्गा प्रमोद, आमोद-स कृत्वा विरतोत्सवान्-रघु०
---उत्तर० १, विक्रम० ५।१० न केवलमुत्सङ्गश्चिरा- ४।१७, १६।१०, पराभवोऽयुत्सव एव मानिनाम् न्मनोरथोऽपि मे पूर्ण:- उत्तर० ४, मेघ० ८७ ---कि० ११४१, 3. ऊँचाई, उन्नति 4. रोष 5. कामना, 2.आलिंगन, संपर्क, संयोग-मा०८।६, 3. भीतर, पड़ोस इच्छा । सम०- संकेताः (पु० ब० व०) एक जाति, -दरीगृहोत्सङ्गनिषक्तभासः --कु०१।१०, शय्योत्सङ्गे हिमालय स्थित एक जंगली जाति-शरैरुत्सवसंकेतान -मेघ० ९३ 4. सतह, पाव, ढाल-दषदो वासितोत्सङ्गाः स कृत्वा विरतोत्सवान-रघु० ४१७८।। -रघु० ४।७४, १४१७६ 5. नितंब के ऊपर का भाग या । उत्सादः [ उद्+सद्+णिच्+घञ्] नाश, अपकल्हा 6. ऊपरी भाग, शिखर 7. पहाड़ की चढ़ाई--- क्षय, बर्बादी, हानि--गीतमुत्सादकारि मृगाणाम्
तुङ्ग नगोत्सङ्गमिवारुरोह-रघु० ६।३ 8. घर की छत ।। -का० ३२। उत्सङ्गित (वि.) [ उत्सङ्ग+इतच ] 1. संयुक्त सम्मि- उत्सादनम् [ उद्+सद्+णि+ ल्युट् ] 1. नाश करना,
लित, संपर्क में लाया हुआ--शि० ३७९, 2. गोद उथल देना-उत्सादनार्थ लोकानां-महा०, भग० में लिया हुआ।
१७।१९ 2. स्थगित करना, बाधा डालना 3. शरीर उत्सजनम् [उद्+सञ्ज+ल्युट्] ऊपर को फेंकना, ऊपर | पर सुगंधित पदार्थ मलना-मनु० २०२०९, २११, 4. उठाना।
घाव भरना 5. ऊपर जाना, चढ़ना, उठना 6. उन्नत उत्सन्न (भू० क. कृ.) [उद्+सद्+क्त ] 1. सड़ा होना, उठाना 7. खेत को भली-भाँति जोतना ।
हुआ 2. नष्ट, बर्बाद, उखाड़ा हुआ, उजाड़ा हुआ | उत्सारकः [उद्+म+णि+पवुल ] 1. आरक्षी 2. पहरे-उत्सन्नोऽस्मि-का० १६४, बदि...- मकरध्वज इबो- दार 3. कुली, डचोढ़ीवान। त्सन्नविग्रहः---का० ५४, भग० १४४ निद्रा-का० उत्सारणम् [उद्+स-+-णिच् + ल्युट् ] 1. हटाना, दूर १७१, 3. अभिशप्त, आफत का मारा 4. व्यवहार में रखना, मार्ग में से हटा देना 2. अतिथि का स्वागत न आने वाला, विलप्त ( पुस्तकादिक)।
करना।
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