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उद्देश्य-सा स्नेहस्य एकायनीभूता-मालवि० २११५, --अर्थः 1. वही वस्तु, वही पदार्थ या वही आशय 2. वही भाव,-अहन् (हः) 1. एक दिन का समय 2. एक दिन तक चलने वाला यज्ञ,-आतपत्र (वि.) एकच्छत्र से विशिष्टीकृत (विश्वभर को प्रभुता को दर्शाने वाला)-एकातपत्रं जगतः प्रभुत्वम् -रघु० २। ४७, शि० १२।३३ विक्रम० ३।१९,-आदेशः दो या दो से अधिक अक्षरों का एक स्थानापन्न (या तो एक स्वर का लोप करके या दोनों को मिला कर प्राप्त किया गया) जैसे कि 'एकायन' में आ,-आवलिः,
-ली (स्त्री०) मोतियों की या अन्य मनकों की एक लड़, -एकावली कण्ठविभूषणं वः---विक्रमांक० ११३०, लताविटपे एकावली लग्ना-विक्रम० ११२, (अलं० शा० में) ऐसी उक्तियों की पंक्ति जिसमें कर्ता का विधेय और विधेय का कता के रूप में नियमित संक्रमण पाया जाय-स्थाप्यतेपोह्यते वापि यथापूर्व परस्परम्, विशेषणतया यत्र वस्तु सैकावली द्विधा
-काव्य० १०,-उदकः (संबंधी) जो एक ही मत पूर्वज से जल के तर्पण द्वारा संबद्ध हो। -उबरः,-रा सगा (भाई या बहन),---उहिष्टम श्राद्धकृत्य जो केवल एक ही मत व्यक्ति को (दूसरे पूर्वजों को सम्मिलित न करके) उद्देश्य करके किया गया हो,-ऊन (वि०) एक कम, एक घटाकर, -- एक (वि.) एक एक करके, व्यष्टिरूप से, एक अकेला-रघु० १७:४३, (-कम्)=एकैकशः (अव्य०) एकर करके, व्यक्तिशः, पृथक्-पृथक, -ओघः एक सतत धारा,-कर (वि०) (स्त्री० -री) 1. एक ही कार्य करने वाला 2. (-रा) एक ही हाथ वाली 3. एक किरण वाली,--कार्य (वि०) मिलकर काम करने वाला, सहयोगी, सहकारी (यम्) एक मात्र कार्य, वही कार्य,-कालः 1. एक समय 2. उसी समय,-कालिक,—कालीन (वि०) 1. केवल एक बार होने वाला 2. समवयस्क, समसामयिक,-कुंडल: कुबेर, बलभद्र, शेषनाग,- गुरु, -गुरुक (वि०) एक ही गुरु वाला (-ह:-रुकः) गुरुभाई,-चक्रः (वि.) 1. एक ही पहिये वाला 2. एक ही राजा द्वारा शासित, (-क्रः) सूर्य का रथ, -चत्वारिंशत् (स्त्री०) इकतालीस,-घर (वि०) 1. अकेला घूमने या रहने वाला-कि १३।३, 2. एक ही अनुचर रखने वाला 3. असहाय रहने वाला -चारिन् (वि.) अकेला, (–णी) पतिव्रता स्त्री, -चित्त (वि.) केवल एक ही बात को सोचने वाला (-सम्) 1. एक ही वस्तु पर चित्त की स्थिरता 2. ऐकमत्य-एकचित्तीभूय - हि० १--एक मत से, -चेतस्,-मनस् (वि.) एक मत, दे० °चित्त, I
-जन्मन् (पुं०) 1. राजा 2. शूद्र, दे० नी०, जाति ---जात एक ही माता-पिता से उत्पन्न,—जातिः शूद्र (विप० द्विजन्मन्) ब्राह्मणः क्षत्रियो वैश्यस्त्रयो वर्णा द्विजातयः, चतुर्थ एकजातिस्तु शूद्रो नास्ति तु पंचमः
—मनु० १०१४, ८।२७०,--जातीय (वि.) एक ही प्रकार का या एक ही परिवार का,-ज्योतिस् (पुं०) शिव,-तान (वि.) केवल एक पदार्थ पर स्थिर या केन्द्रित, नितान्त ध्यानमग्न-ब्रीकतानमनसो हि वशिष्ठमिश्रा:-महावी०३।११,-तालः संगति, गीतों का यथार्थ समंजन, नत्य, वाद्य यंत्र (तु० तौर्यत्रिकम्) -तीथिन् (वि.) 1. उसी पावन जल में स्नान करने वाला 2. एक ही धर्मसंघ से संबंध रखने वालायाज्ञ० २११३७,- (पुं०) सहपाठी, गुरुभाई,--त्रिंशत् (स्त्री०) इकतीस,-दंष्ट्रः,-दन्तः 'एक दांत वाला', गणेश का विशेषण,-दंडिन् (पुं०) सन्यासियों या भिक्षुकों का एक समुदाय, (जो 'हंस' कहलाते है) इनके चार संघ हैं:-कुटीचको बहुदको हंसश्चैव तृतीयकः, चतुर्थः परहंसश्च यो यः पश्चात्स उत्तमः । हारीत",-दुश,-दृष्टि (वि०) एक आँख वाला, -(पु.) 1. कौवा 2. शिव 3. दार्शनिक,-देवः परब्रह्म, .--देशः 1. एक स्थान या स्थल 2. (समग्र का) एक भाग या अंश,--- एक पाश्वं-तस्यैकदेशः- उत्तर ०४, विभावितैकदेशेन देयं यदभियज्यते--विक्रम० ४।१७, जिस अंश का दावा किया जाता है, वह उसी व्यक्ति के द्वारा दिया जाना चाहिए जो उसके एक अंश का प्राप्तकर्ता प्रमाणित हो जाय (इसी बात को कभी-कभी 'एकदेशविभावितन्याय' कहते है)-धर्मन्,--धर्मिन् 1. एक ही प्रकार के गुणों को रखने वाला, या एक ही प्रकार की संपत्ति को रखने वाला 2. एक ही धर्म को मानने वाला,--धुर,–धुरावह,-धुरीण (वि०) 1. जो एक ही प्रकार कर सके 2. जो एक ही प्रकार से जुत सके (जैसे कि विशेष बोझ के लिए कोई पश) -पा० ४।४।७९,- नटः नाटक में प्रधान पात्र, सूत्रधार जो नान्दीपाठ करता है,-नवतिः (स्त्री०) इक्यानवे,--पक्षः एक पक्ष या दल--°आश्रय विक्लवत्वात्-रघु० १४।३४,-पत्नी 1. पतिव्रता स्त्री ( पूर्णतः सती साध्वी ) 2. सपत्नी, सोत -सर्वासामेकपत्नीनामेका चेत्पुत्रिणी भवेत्-मनु० ९।१८३,-पदी पगडंडी,—पये (अव्य.) अकस्मात्, एकदम, अचानक–निहन्त्यरीनेकपदे य उदात्तः स्वरानिव-शि० २।९५, रघु०८।४८,-पादः 1. एक या अकेला पैर 2. एक या वही चरण 3. विष्णु, शिव, ---पिंगः, पिंगल: कुबेर,-पिट (वि०) अन्येष्टि पिंडदान के द्वारा संयुक्त,- भार्या एक पतिव्रता और सती स्त्री, (- ) केवल एक पत्नी रखने वाला,
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