________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( २४० ) कण् i (म्वा० पर० ---कणति, कणित) 1. शब्द करना, 7. कष्ट पहुंचाने वाला भाषण,---क: 1. बाँस 2. कार
चिल्लाना, ( दुःख में ) कराहना 2. छोटा होना खाना, निर्माणी । सम० अशनः,-भक्षकः --भुज 3. जाना।
(पु.) ऊँट,- उद्धरम् 1. (शा०) काँटा निकालना, ii (चुरा० पर० या प्रेर०) आँख झपकना, पलक बन्द नलाई करना 2. (आलं) जनसाधारण को सताने वाले करना।
तथा चोर आदि उत्पातकारियों को दूर करना, कण्टकणः (कण |-अच्| 1. अनाज का दाना-तण्डुलकणान् कोद्धरणे नित्यमातिष्ठेद्यनमुत्तमम् - मनु० ९२२५२
--हि० १, मनु० ११९२ 2. अणु या (किसी-वस्तु .... तुमः 1. काँटा, झाड़ी -भवन्ति नितरां स्फीताः सुक्षेत्र का) लव 3. बहुत ही थोड़ा परिणाम द्रविण शा० कण्टकद्रुमाः --मच्छ० ९।७ . सेगल का वृक्ष,-फल: १११९, ३१५ 4. धूल का जर्रा-रधु० १४८५, पराग कटहल, गोखरू, रेंड या धतूरे का पेड़,—मर्दनम् उत्पात —विक्रम १७ 5. (पानी की) बंद या फुहार शान्त करना, विशोधनम् सब प्रकार क्लेशों के स्रोतों – कणवाही मालिनीतरडगाणाम्-श० ३५, अंबु', का उन्मूलन करना,--राज्यकण्टकविशोधनोद्यत:--- अश्रु', मेघ० २६, ४५, ६९, अमरु ५४ 6. अनाज की विक्रमांक ० ५।१। । बाल 7. (आग की) चिंगारी । सम०---अदः,-भक्षः, कण्टकित (वि.) कण्टक+इतच 1. काँटेदार 2. खड़े --भज (पं) वैशेषिक दर्शन के निर्माता का नाम (जिसे हुए रोगटों वाला, पुलकित, रोमांचित--प्रीतिकण्टकिअणुवाद का सिद्धांत कह सकते हैं)---जीरकम् सफेद तत्वचः-कु० ६.१५, रघु०७।२२।। जोरा,-भक्षकः एक प्रकार का पक्षी,-लाभः भंवर,
कण्टकिन् (वि.) (स्त्री०-नी) कण्टक- इनि 1. कांटेजलावर्त ।
दार, कंटीला,—कण्टकिनो बनान्ताः ----विक्रमांक० कणपः [कण+पा+क] लोहे का भाला या छड़,-लोहस्त- ११११६ 2. सताने वाला, कष्टदायक । सम० -फल:
म्भस्तु कणपः --वैज० चापश्चक्रकणपकर्षणम् --आदि० कटहल। दश० ।
कष्टकिल: [ कण्टक+इलच् ] कांटेदार बाँस । कणशः (अध्य०) कण+शस् छोटे २ अंशों में, दाना- कण्ठ (भ्वा०, चुरा० उभ०--कण्ठति-ते, कंटयति-ते, कण्ठित)
दाना, थोड़ा-थोड़ा, बूंद-बूंद - तदिदं कणशो विकीर्यते 1. विलाप करना, शोक करना 2. चकना, आतुर होना, (भस्म) कु०-४।२७। ।
लालायित होना, खेद के साथ स्मरण करना (इस अर्थ कणिकः [कण+कन, इत्वम्] 1. अनाज का दाना 2. एक को प्रकट करने के लिए धातु के पूर्व 'उद्' उपसर्ग लगा
छोटा कण 3. अनाज की बाल 4. भुने हुए गेहूँ का कर संब०, अधि० या सम्प्र०की सज्ञा के साथ इस क्रिया भोजन ।
का प्रयोग करते है)-- परिष्वङ्गस्य वात्सल्यादयमत्कण्ठते कणिका कण--ठन्--टाप् 1. अणु, एक छोटा अथवा | जनः - उत्तर०६।२१, यथा स्वर्गाय नोत्कण्ठते-विक्रम सूक्ष्म जर्रा 2. (पानी की) बूंद-मेघ० ९८ 3. एक
३, सुरतव्यापारलीलाविधौ चेतः समुत्कण्ठते-काव्य०११ प्रकार का अन्न या चावल।
कण्ठः, -ठम् कण्ठ-|-अच। 1. गला,--कण्ठे निपीडयन् मारकणिशः -शम् कणिन् +शी+ड अनाज की बाल ।
यति-मृच्छ०८, कण्ठः स्तम्भितबाप्पत्तिकलष:- श० कणीक (वि.) कण् + ईकन्j छोटा, नन्हा ।
४५ कण्ठेय स्खलितं गतेपि शिशिरे पस्कोकिलानां रुतम् कणे (अव्य०) [कण्+ए) इच्छा-संतृप्ति का अभिधायक। ६३ 2. गर्दन ..कण्ठाश्लेष परिग्रहे शिथिलता--पंच.
अव्यय (श्रद्धाप्रतीघात).-कणेहत्य पय: पिबति-सिद्धा० ४।६; कण्ठाश्लेषप्रणयिनि जने किं पुनरसंस्थे मेघ० 'वह मन भर कर दूध पीता है।'
३।९७ ११२, अमरु १९४५७, कु० ५।५७ 3. स्वर कणेरा-हः (स्त्री०) कणेर+टाप, कम्+एरु 1. हथिनी आवाज - सा मुक्तकण्ठं चक्रन्द-रघु०१४।६५, किन्नर2. वेश्या, रंडी।
कण्ठि ८१६३, आर्यपुत्रोपि प्रमक्तकण्ठ रोदिति--उत्तर. कण्टकः, ----कम् कण्ट +ण्वुल 1. काँटा,-पादलग्नं करस्थेन | ३ 4 बर्तन की गर्दन या किनारा 5. पड़ोस, अवि
कण्टकेनैव कण्टकम् (उद्धरेत्)-चाण० २२ 2. फांस, च्छिन्न सामीप्य (जैसा कि 'उपकण्ठ' में)। सम० डंक—याज्ञ० ३१५३ 3. (आलं.) ऐसा दुःखदायी .. आभरणम् गले का आभूषण---परीक्षितं काव्यसुवर्णव्यक्ति जो राज्य के लिए काँटा तथा अच्छे प्रशासन मेतल्लोकस्य काठाभरणत्वमेतू-विक्रमांक० ११२४ तु० एवं शान्ति का शत्र हो- उत्खातलीकत्रयकण्टकेऽपि सरस्वती कण्ठाभरण जैसे नाम,-कणिका भारतीय वीणा, --- रघु० १४१७३, त्रिदिवमुद्धतदानवकण्टकम्-श० ७। --गत (वि.) गले में रहने वाला, गले में आने वाला ३, मन० ९।२६० 4. (अतः) सताने या क्लेश पहुँ- अर्थात वियक्त होने वाला, ... न वदेद्यावनों भाषां प्राणः चाने का मूल कारण, उत्पात-मनु० ९।२५३ | कण्ठगतैरपि-सुभा०, - तटः,-.-टम्,--टी गले का 5. रोमांच होना, रोंगटे खड़े होना 6. अंगुली का नाखून ! पार्श्व या भाग,-वघ्न (वि०) गर्दन तक पहुँचने वाला,
For Private and Personal Use Only