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( २४२ ) सूर्यासः--ऋक० १०१८८०१८ 2. कुछ (जब 'कति' के । कथम् (अव्य.) [ किम-प्रकाराथें थम कादेशश्च ] 1. कैसे साथ चिद्, चन या अपि जोड़ दिया जाता है, तो शब्द किस प्रकार, किस रीति से, कहाँ से-कथं मारात्मके की प्रश्नवाचकता नष्ट हो जाती है, और वह अनिश्च- त्वयि विश्वासः हि. १, सान बन्धाः कथं न स्युः यार्थक बन जाता है-अर्थ होता है-- कुछ, कई, थोड़े संपदो मे निरापद:--रघु० २६४, ३१४४, कथमात्मानं से--तन्वी स्थिता कतिचिदेव पदानि गत्वा-श० २।१२, निवेदयाभि कथं वात्मापहारं करोमि-श० १ (यहाँ कत्यपि वासराणि-अमरु २५, तस्मिन्नद्रौ कतिचिदबला- बोलने वाले को अपने कथन के औचित्य में सन्देह है)
विप्रयुक्तः स कामी नीत्वा मासान्—मेघ०२)। 2. यह बहुधा आश्चर्य प्रकट करता है-(अहो,) कथं कतिकृत्वः (अव्य०) [ कति+कृत्वसुच् ] कितनी बार । मामेवोद्दिशति- श० ६ 3. यह प्रायः 'इब, नाम, नु, कतिषा (अव्य.) [ कति+धा ] 1. कई बार 2. कितने
वा, स्विद' के साथ जोड़ दिया जाता है जब कि इसका स्थानों पर, या कितने भागों में।
अर्थ होता है:- 'क्या, सचमच,' 'क्या सम्भावना है' कतिपय (वि.) [कति+अयच्, पुक च ] कुछ, कई, कई
'मुझे बतलाइए तो' (यहाँ प्रश्न का सामान्यीकरण कर एक---कतिपयकुसुमोद्गमः कदम्बः-उत्तर० ३।२०,
दिया जाता है)- - कथं वा गम्यते -- उत्तर० ३, कथं मेघ० २३,—कतिपयदिवसापगमे - कुछ दिनों के बीत
नामैतत्-उत्तर०६ 4. जब यह 'चिद, चन या जाने पर वर्ण: कतिपयरेव ग्रथितस्य स्वररिव—शि०
अपि' के साथ जोड़ दिया जाता है तो इसका अर्थ हो २०७२।
जाता है हर प्रकार से किसी तरह से हो' 'किसी न कतिविष (वि.) [ब० स०] कितने प्रकार का ।
किसी प्रकार' 'बड़ी कठिनाई से' या 'बड़े प्रयत्नों से' कतिशः (अव्य०) [कति+शस् ] एक बार में कितना ।
-तस्य स्थित्वा कथमपि पूर:-मेघ० ३, कथमप्युन्नमितं कत्य् (म्वा० आ०-कत्थते, कत्थित) 1. शेखी बघारना, न चुम्बितं तु-श० ३।२५, न लोकवत्तं वर्तेत वृत्तिइतरा कर चलना-कृत्वा कत्थिष्यते न क:--भट्टि०
हेतोः कथंचन-मनु० ४।११, ५।१४३, कथंचिदीशां १६।४, कृत्वैतत्कर्मणा सर्व कत्थेथा:-महा० 2. प्रशंसा मनसां बभवु:.....३।३४, कथं कथमपि उत्थित:--पंच० करना, प्रसिद्ध करना 3. गाली देना, दुर्वचन कहना।
१, विसज्य कथमप्युमाम् कु० ६।३, मेघ० २२, वि--, 1. शेखी मारना, -का खल्वनेन प्रार्थ्यमाना
अमरु १२, ३९, ५०, ७३ । सम० ---कथिकः जिज्ञासु, विकत्थते-विक्रम०२ 2. दाम घटाना, तुच्छ करना,
पूछ-ताछ करने वाला,-कारम (अव्य०) किस रीति उपेक्षित करना--सदा भवान् फाल्गुनस्य गुणरस्मान्
से, कैमे ...कथंकारमनालम्बा कीतिमधिरोहति-. विकत्थते-महा।
शि० २।५२, कथंकारं भुक्ते--सिद्धा०, नै० १७।१२६,
--प्रमाण (वि.) किस माप तोल का,- भूत (वि.) कत्थनम्,--ना [कत्य् + ल्युट. युच् वा ] डींग मारना,
किस स्वभाव का, किस प्रकार का (प्राय: टीकाकारों शेखी बघारना। करसवरम् [कत्स+वृ+अप्] कंधा ।
द्वारा प्रयुक्त), रूप (वि.) किस शक्ल सूरत का। कम् (चुरा० उभ०-कथयति, कथित) 1. कहना, समाचार कथन्ता / कथम् +-तल ] क्या प्रकार, क्या रीति ।
देना, (प्रायः सम्प्र० के साथ)-राममिष्वसनदर्शनोत्सूक कथा | कथ ---अडान-टाप् ] 1. कथा, कहानी 2. कल्पित मैथिलाय कथयांबभूव सः --रघु० ११।३७ 2. घोषणा या मनगढ़ंत कहानी कथाच्छलेन बालानां नीतिस्तकरना, उल्लेख करना--भग० २।३४, रघु० ११११५ दिह कथ्यते-हि० ११ 3. वृत्तान्त, संदर्भ, उल्लेख 3. वार्तालाप करना, बातें करना, वातचीत करना -कथापि खलु पापानामलमश्रेयसे यतः ... शि० २१४० 4. .-कथयित्वा सुमन्त्रेण सह-- रामा० 4. संकेत करना, बातचीत, वार्तालाप, वक्तता 5. गद्यमयी रचना का निवेश करना, दिखलाना-विक्रम० ११७, आकारसदशं एक भेद जो आख्यायिका से भिन्न है-(प्रबन्धकल्पनां चेष्टितमेवास्य कथयति----श०७ 5. वर्णन करना, स्तोकसत्यां प्राज्ञाः कथां विदुः, परंपराश्रया या स्यात् बयान करना,-कि कथ्यते श्रीरुभयस्य तस्य- कु. ७। सा मताख्यायिका बुधैः) 'आख्यायिका' के नीचे भी ७८ कथाच्छलेन बालानां नीतिस्तदिह कथ्यते-हि० देखें। का कथा, या प्रति पूर्वक कथा (क्या कहना) १११, 6. सूचना देना, सूचित करना, शिकायत करना 'क्या कहने की आवश्यकता है' 'कहना नहीं' 'कुछ नहीं -मच्छ०३।
कहना' 'और कितना अधिक' 'और कितना कम' कयक (वि०) [ कथ् +ण्वुल ] कहानी कहने वाला, वर्णन आदि अर्थो को प्रकट करते हैं का कथा ताणसन्धाने
करने वाला,—क: 1. मुख्य अभिनेता 2. झगड़ालू 3. ज्याशब्देनैव दूरतः, हुंकारेणेव धनुषः स हि विघ्नानकहानी सुनाने वाला।
पोहति ----श० ३११, अभितप्तमयोपि मार्दवं भजते कैव कथनम् [कय् + ल्युट ] कहानी कहना, वर्णन करना, बयान कथा शरीरिष ---रघु० ८१४३, आप्तवागनुमानाभ्यां करना।
साध्यं त्वां प्रति का कथा--१०।२८, वेणी० २।२५, ।
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