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का मणि 2. प्रिय वस्तु,
में होने वाला |
यित
सज्जनम् गर्दन कण्ड्यनम् निवारणश्च ।
( २४१ ) -नीडकः चील,-नीलकः बड़ा लैंप या मशाल,-पा- यक्+क्विप्, अलोपः यलोपः] 1. खुरचना 2. खुजाना शक: 1. हाथी की ग्रीवा के चारों ओर बंधी हुई रस्सी | -कपोलकण्डू: करिभिविनेतुम् कु. ११९, शा० ४।१७ । 2. रोकने वाला,-भूषा छोटा हार-विदुषां कण्ठ भूषा- | कण्डूतिः (स्त्री०) कण्डू+यक्+क्तिन् 1. खुरचना 2. स्वमेतु-विक्रमांक०१८।१०२, ---मणिः 1. गले में पहनने खुजली, खुजाना। का मणि 2. प्रिय वस्तु,--लता 1. पट्टा 2. घोड़े को | कण्डयति-ते (ना० घा०, उभ०) (भू० क० कृ०-कण्डरोकने वाला,--वतिन (वि.) गले में होने वाला यित) 1. खुरचना, शनैः २ मसलना-कण्डूयमानेन अर्थात् बिदा होने वाला-प्राण:-रघु० १२१५४, कटं कदाचित्-रघु० २१३७, मृगीमकण्डूयत् कृष्णसारः
-शोषः (शा०) 1. गले का सूख जाना, खुश्क हो –कु० ३।३६, शृंगे कृष्णमृगस्य वामनयनं कण्डूयजाना 2. (आलं.) निष्फल प्रतिवाद,--सज्जनम् गर्दन मानां मृगीम-श०६।१६, मनु० ४।४२ । के सहारे लटकना,---सूत्रम् एक प्रकार का आलिंगन | कण्डूयनम् कण्डू-+-यक्+ल्युट्] खुरचना, मसलना-कण्डू-यत्कुर्वते वक्षसि वल्लभस्य स्तनाभिघातं निबिडोपगहात, यनैर्दशनिवारणश्च-रघ० २१५,--नी मसलने के लिए परिश्रमार्थं शनविदग्धास्तत्कण्ठसूत्र प्रवदंति संतः,कण्ठ- ब्रुश। सूत्रमपदिश्य योषितः-रघु० १९।२२ ('स्तनालिंगन' कण्डूयनकः [कण्डूयन-+कन्] खुजली पैदा करने वाला, भी कहलाता है),-स्थ (वि०) 1. गले में होने वाला | गुदगुदी करने वाला--पंच० ११७१।। 2. कंठस्थानीय ।
कण्डूया कण्डू+यक्+अ+-टाप] 1. खुरचना 2. खुजलाना। कण्ठतः (अव्य.) कण्ठ+तसिल] 1. गले से 2. स्पष्ट रूप | कण्डूल (वि०) [कण्डू+लच् ] जिसे खुजली का विकार हो, से, स्फुटरूप से।
"जो खुजली अनुभव करता हो, या खुजलाहट पैदा करने कण्ठाल: [ कण्ठ+आलच् ] 1. किश्ती 2. फावड़ा, कुदाली
वाला---कण्डूलद्विपगण्डपिण्डकणोत्कपेन संपातिभिः ____3. युद्ध 4. ऊँट,-ला बर्तन जिसमें दूध बिलोया जाय ।
- उत्तर० २।९। कण्ठिका [ कण्ठ-+ठन्टाप, इत्वम् ] एक लड़का हार या | कण्डोल: [ कण्ड+ओलच् ] 1. (वेत या बाँस की बनी) माला।
टोकरी जिसमें अनाज रखा जाय 2. डोली, भण्डार-गृह कण्ठी (स्त्री०) ] कण्ठ+डीए ] 1. गर्दन, गला 2. हार, | ___3. ऊँट,-ली चांडाल की वीणा।
पट्टी 3. घोड़े की गर्दन के चारों ओर बंधी रस्सी। | कण्डोषः [ कण्ड्+ओषन् ] झांझा, एक तरह का फुनगा। सम०---रवः 1. सिंह 2. मदमाता हाथी-कंठीरवो महा- कण्वः [ कण्+क्वन् ] एक ऋषि का नाम, शकुन्तला का ग्रहेण न्यपतत्-दश०७ 3. कबूतर 4. स्पष्ट घोषणा धर्मपिता, काण्व ब्राह्मणवंश का प्रवर्तक । सम० या उल्लेख (इति कण्ठीरवेणोक्तम्) ।
-दुहित,--सुता शकुन्तला, कण्व की पुत्री। कण्ठीलः कण्ठ+ईलच ] ऊँट ।।
कतः, कतकः [कं जलं शुद्धं तनोति-तन्+ड-तारा०] कण्ठेकालः [ कण्ठे कालो विषपानजो नीलिमा यस्य --- अल ० निर्मली का पौधा (इसका फल गदले पानी को स्वच्छ स०] शिव ।
कर देने वाला बतलाया जाता है) रीठा-फलं कतककण्ठप (वि.) [ कण्ठ+यत 11. गले से संबन्ध रखने वाला वृक्षस्य यद्यप्यंबुप्रसादनम्, न नामग्रहणादेव तस्य वारि
गले के उपयुक्त, या गले में होने वाला 2. कंठस्था- प्रसीदति । मनु० ६।६७,--तम्-तकम् इस वृक्ष का नीय। सम०-वर्णः कण्ठस्थानीय अक्षर-नामतः, फल, रीठा, दे० 'अंबुप्रसादन' भी। अ, आ, क, ख, ग, घ, ङ् और ह,-स्वरः कण्ठस्थानीय कतम (सर्व० वि०) (नपुं०--मत्) [किम् +डतमच् ] स्वर (अ और आ)।
कोन या कौन सा-अपि ज्ञायते कतमेन दिग्भागेन गतः कह (भ्वा० उभ०) 1. प्रसन्न होना, सन्तुष्ट होना 2. घमंडी स जाल्म इति--विक्रम० १, अथ कतमं पुनर्ऋतुमधि
होना 3. कूटकर भूसी अलग करना, (चुरा० उभ० कृत्य गास्यामि - श०१, कतमे ते गुणास्तत्र यानुदाहर-कण्डयति-ते, कण्डित) 1. (अनाज), गाहना दाने न्त्यार्थमिश्रा:-मा० १, (कभी कभी 'किम्' के स्थान अलग करना 2. रक्षा करना, बचाना।
में बलप्राप्त प्रत्यादेश के रूप में प्रयक्त होता है)। कण्डनम् [कण्ड-ल्युट ] 1. फटकना, दानों से भूसी अलग | कतर (सर्व०वि०) (नपुं०-रत्) [ किम् +डतरच ]
करना --अजानतायं तत्सर्वं (अध्ययनम्)तुषाणां कण्डनं कौन, दो में से कौन सा,-नैतद्विप्रः कतरन्नो गरीयो यथा 2. भूसी,—नी 1. ओखली 2. मूसल ।
यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु:- भग० २।६। कण्डरा कंड। अरन् नस।
कतमालः [ कस्य जलस्य तमाय शोषणाय अलति पर्याप्नोति कणिका कंड --वुल+टाप्] छोटा अनुभाग, छोटे से छोटा अल् +अच् ] अग्नि, तु० खतमाल । अनुच्छेद (जैसा कि शुक्ल यजुर्वेद में)।
कति (सर्व० वि०) [ किम् डति ] (सदैव ब० व० में कण्डः (पुं० स्त्री०), कण्डूः (स्त्री०) [कण्डू+कु, कण्डू+| प्रयुक्त–कति, कतिभिः) 1. कितने-कत्यग्नयः, कति
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