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( १९१ )
उत्साहः [उद-1-सह+घञ्] 1. प्रयत्न, प्रयास-धृत्युत्साह- । उत्सेकिन (वि.) [ उत्सेक, इनि ] 1. उमड़ने वाला,
समन्वितः -भग० १८२६ 2. शक्ति, उमंग, इच्छा । अत्यधिक 2. घमंडी अहंकारी, उद्धत--भाग्येष्वनु---- मन्दोत्साहकृतोऽस्मि मगधापवादिना माढव्येन सेकिनी--श० ४।१७ । - . ० २, ममोत्साहभङ्ग मा कृथाः-हि० ३, मेरे | उत्सेचनम् [ उद्+सिच-+ ल्युट् ] फुहार छोड़ना या उत्माह कीमत तोड़ो 3. धैर्य, ऊर्जा या तेज, राजा । बौछार करना। की हीन शक्तियों में से एक ( प्रभाव और मंत्र दो उत्सेधः [ उद्---सिध+घा] 1. ऊँचाई, उन्नतता शक्तियाँ और है) कु०११२२. 4. दढ़ संकल्प, दृढ़ निश्जय (आलं. भी)—पयोघरोत्सेधविशीर्णसंहति (वल्कलम् ) -हसितेन भाविमरणोत्साहस्तया सूनित:-...अमरु १०, कु० ५।८, २४, ऊँची या उभरी हई छाती 2. मोटाई, 5. सामर्थ्य, योग्यता--मनु० ५।८६ 6. दृढ़ता, सहन- मोटापा 3. शरीर,—धम मारना, वध करना । शक्ति, बल 7 (अलं० शा० में ) दढ़ता और सहन- उत्स्मयः [ उद्+स्मि-|-अच् ] मुस्कराहट । शक्ति वह भावना मानी जाती है जिससे वीर रस का । उत्स्वन ( वि०) [ब० स० ] ऊँची आवाज करने वाला, उदय होता है-कार्यारम्भेषु संरम्भ: स्वानुत्माह उच्यते —न: [ प्रा० स०] ऊँची आवाज । -~-सा० द. ३, परपराक्रमदानादिम्मतिजन्मा औन्न- | उत्स्वप्नायते (ना० घा० आ०) [उद+स्वप्न+क्यङ ] त्याख्य उत्साहः रस० 8. प्रसन्नता । सभ० - वर्धन: सुप्तावस्था में बोलना, बड़बड़ाना, उद्विग्नता के कारण वीररस (--- नम) ऊर्जा या तेज की वृद्धि, शौर्य, स्वप्न आना। --शक्तिः ( स्त्री०) दृढ़ता, ज, दे० (३) ऊपर,
(उप०) उ+विवप, तुक] नाम और धातुओं से - हेतुकः (वि.) कार्य करने की दिशा में प्रोत्साहन
पूर्व लगने वाला उपसर्ग, गण में निम्नांकित अर्थ देने वाला या उत्तेजित करने वाला।
उदाहरणसहित बतलाये गये हैं:--1. स्थान, पद, या उत्साहनम् [उद्+मह +-णिच ल्युट ] 1. प्रयत्न, शक्ति की दृष्टि से श्रेष्ठता, उच्च, उद्गत, ऊपर, पर, अध्यवसाय 2. उत्साह बहाना, उत्तेजना देना।
अतिशय, ऊँचाई पर ( उद्वल) 2. पार्थक्य, वियोजन, उत्सित ( भू० क० कृ०) [ उद्+सिच्+क्त ] 1. बाहर, से बाहर, से, अलग अलग आदि (उद्गच्छति)
छिड़का हुआ 2. घमण्डी, अहंकारी, उद्धत 3. बाढ़ग्रस्त, 3. ऊपर उठना ( उत्तिष्ठति) 4. अभिग्रहण, उपउमड़ता हुआ, अत्यधिक · दे० सिन् ( उद्-पूर्वक ) लब्धि-( उपार्जति ) 5. प्रकाशन (उच्चरति) 6. 4. चंचल, अशान्त–जानीयादस्थिरां बाचमुसिक्त- आश्चर्य, चिन्ता (उत्सुक) 7. मुक्ति--(उद्गत ) 8. मनसां तथा--मनु०८७१। ।
अनुपस्थिति (उत्पथ) 9. फंक मारना, फुलाना, उत्सुक ( वि०) [ उद्-+-+-क्विप+कन् ह्रस्व: ] 1. खोलना--(उत्फुल्ल ) 10. प्रमुखता--(उद्दिष्ट) 11.
अत्यन्त इच्छुक, उत्कण्ठित, प्रयत्नशील ( करण या शक्ति- ( उत्साह )-संज्ञाओं के साथ लगकर इससे अधिकरण के साथ अथवा समाम में) --निद्रया निद्रायां विशेषण और अव्ययीभाव समास बनाये जाते हैं वोत्सुकः सिद्धा०, मनोनियोगक्रिययोत्सूक मे-- रघ .......उचिस्, उच्छिख, उद्वाह, उन्निद्रम्, उत्पथम् और २१४५, मेघ० ९९, मंगम --श० ३.१४ 2. बेचन, उद्दामम् आदि। उद्विग्न, आतुर रघ० १२।२४, 3. बहुत चाहने । उवक ( अव्य)[उद् +अञ्च- क्विन् । उत्तर की ओर, वाला, आसवत .. वत्सोत्सुकापि-रघु० २।२२, 4. के उत्तर में, ऊपर ( अपा० के साथ )। खिद्यमान, कुडबुड़ाने वाला, शोकान्वित ।
उदकम् [ उन्+ण्वुल नि० नलोप: ] पानी,--- अनीत्वा उत्सूत्र (वि०) [उत्क्रान्तः सूत्रम्--अत्या० स०] 1. डोरी
पद्धतां धुलिमुदकं नावतिष्ठते-शि० २।३४, । सम० से न बंधा हुआ, ढीला, (रस्सी के ) बंधन से मुक्त
.-- अन्तः पानी का किनारा, तट, तीर-ओदकान्ता-----शि०८६३, 2. अनियमित 3. (पाणिनि के नियम
स्निग्धो जनोऽनगन्तव्य इति श्रयते--श०४, अथिन् के) विपरीत-शि० २१११२ ।।
(वि.)प्यासा,-आधारः जलाशय, हौज, कुआँ,उन्वउत्सूरः [ उत्क्रान्तः सूरं-सूर्यम्-अत्या० स०] सायंकाल, जनः पानी का बर्तन, सुराही, उदरम् जलोदर संध्या।
( एक रोग जिसमें--पेट में पानी भर जाता है), उत्सेकः [ उद+ सि+घञ] 1. छिड़काव, उड़ेलना ---कर्मन,-कार्यम,-क्रिया,-- दानम् मत पूर्वी या
2. फुहार छोड़ना, बौछार करना 3. उमड़ना, वृद्धि पितरों का जल से तर्पण करना-वृकोदरस्योदकआधिक्य --रुधिरोत्सेका:-महानी० ५।३३ दपं, बल' क्रियां कुरु-वेणी० ६, याज्ञ० ३।४,-कुंभः पानी आदि 4. घमंड, अहंकार, धृष्टता---उपदा विविशुः का घड़ा,- गाहः पानी में घुसना, स्नान करना, शश्वन्नोत्सेकाः कोसलेश्वरम्-- रघु० ४१७०, अनुत्सेको --ग्रहणम पानी पीना, ----वात,---दायिन, वानिक लक्ष्म्याम्-म० २१६४ ।
जल देने बाला (-1) 1. पितरों को जल-दान करने
, कुआँ,उन्न.
तन, सुराही
( एक रोग
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