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नात् (विनश्यति) पंच० १२१६९, उपासनामेत्य पितुः दृष्टान्त 4. सूयोग, माध्यम, साधन–तत्प्रतिच्छन्दकस्म सज्यते-२०१२३४, मनु० ३३१०७, भग० १३१७, मुपोद्घातेन माधवान्तिकामुपेयात-मा० १ 5. विश्लेयाज्ञ० ३३१५६ 2. व्यस्त, तुला हुआ, जुटा हुआ षण, किसी वस्तु के तत्त्वों का निश्चय करना। --संगीत मृच्छ० ६, मनु० २०६९ 3. पूजा, आदर, उपोबलक (वि०) [ उप-उद्+बल् +ण्वुल ] पुष्ट
आराधना, शराभ्यास 5. धार्मिक मनन 6. यज्ञाग्नि। करने वाला। उपासा [उप+आस्+अ+टाप्] 1. सेवा, हाजरी उपोबलनम् [उप+उद्-+बल+ल्य प्ट करना, 2. पूजा, आराधना 3. धार्मिक मनन ।।
समर्थन करना। उपास्तमनम् [ प्रा० स० ] सूर्य छिपना।
उपोषणम्-उपोषितम् [ उप+वस् + ल्युट, क्त वा ] उपास्तिः (स्त्री०)| उप+आस-क्तिन् । 1. सेवा, सेवा
उपवास रखना, बत। में उपस्थित रहना (विशेषत: देवता की) 2. पूजा, !
जा, | उप्तिः (स्त्री०) [वप्न-क्तिन् ] बीज बोना। आराधना।
उब्ज (तुदा० पर०) (उब्जति, उब्जित) 1. भींचना, उपास्त्रम् [प्रा० स०] गौण या छोटा हथियार।
दबाना 2. सीधा करना। उपाहारः [प्रा० स०] हल्का जलपान (फल, मिष्टान्न | उभ्, उम्भ (तुदा० क्या
उभ्, उम्भ (तुदा० क्रया० पर०) (उभति या उम्भति, आदि)।
उभ्नाति, उम्भित) 1. संसीमित करना 2. संक्षिप्त करना उपाहित (भू० क. कृ०) [ उप+आ+धा+क्त ]
3. भरना-जलकुम्भमम्भितरसं सपदि सरस्याः समान1. रक्खा गया, जमा किया गया, पहना गया आदि
यन्त्यास्ते--भामि० २११४४ 4. आच्छादित करना, ऊपर 2. संबद्ध, सम्मिलित,—त: आग से भय, या आग से
बिछाना-सर्वमर्मसु काकुत्स्थमौम्भत्तीक्ष्णः शिलीमुखैः होने वाला विनाश।
- भट्टि०१७।८८॥ उपेक्षणम-उपेक्षा।
उभ (सर्व०वि०) (केवल द्विवचन में प्रयुक्त) उ+भक] उपेक्षा [ उप+ ईक्ष् +अ+टाप् ] 1. नजर-अंदाज करना,
दोनों,---उभौ तौ न विजानीत.....भग० २।१९, कु० लापरवाही बरतना, अवहेलना करना 2. उदासीनता, ४।४३ मनु० २।१४, शि० ३।८। घृणा, नफ़रत-कुर्यामपेक्षा हतजीवितेऽस्मिन्—रघ० । उभय (सर्व०, वि०) (स्त्री०-यो) [ १४।६५ 3. छोड़ना, छुटकारा देना 4. अवहेलना, (यद्यपि अर्थ की दृष्टि से यह शब्द द्विवचनांत है, दांव पेंच, मक्कारी (युद्ध में विहित ७ उपायों में परन्तु इसका प्रयोग एक वचन और बहबचन में ही से एक)।
होता है, कुछ वैयाकरणों के मतानुसार द्विवचन में भी) उपेत (भू० क० कृ०) [ उप-इ---क्त ] 1. समीप आया दोनों (पुरुष या वस्तुएँ)---उभयमप्यपरितोषं समर्थये
हुआ, पहुँचा हुआ 2. उपस्थित 3. युक्त, सहित --श०७, उभयमानशिरे बसुधाधिपाः-रध० ९१९, (करण के साथ या समास में) ...पुत्रमेवं गुणोपेतं
उभयीं सिद्धिमुभाववापतुः- -८।२३, १७।३८, अमरु चक्रवर्तिनमाप्नहि-श० १२१२।
६०, कु० ७७८, मनु० २०५५, ४१२२४, ९।३४ । उपेन्द्रः [उपगत इन्द्रम्-अनुजत्वात् ] विष्ण या कृष्ण, (इन्द्र सम०-चर (वि) जल, स्थल या आकाश में विचरण
के छोटे भाई के रूप में अपने पांचवें अवतार (वामन) करने वाला, जल स्थल चारी,- विद्या दो प्रकार की के अवसर पर) दे० इन्द्र, उपेन्द्र- वज्रादपि दारुणो- विद्याएँ, परा और अपरा, अर्थात् अध्यात्म विद्या और ऽसि-गीत० ५, यदुपन्द्रस्त्वमतीन्द्र एव सः-शि०
लौकिक ज्ञान, -विध (वि०) दोनों प्रकार का, १११७० ।
-- वेतन (वि०) दोनों स्थानों से वेतन ग्रहण करने उपेयः (सं० कृ०) [उप+इ+यत् ] 1. पहुँचने के योग्य वाला, दो स्वामियों का सेवक, विश्वासघाती,-व्यंजन
2. प्राप्त कर लेने के योग्य 3. किसी भी साधन से (वि.) (स्त्री और पुरुष) दोनों के चिह्न रखने वाला, प्रभावित होने के योग्य ।।
--संभवः उभयापत्ति, दुविधा। उपोढ (भ० क. कृ०) [ उन ! वह ---क्त] 1. संचित, | उभयतः (अव्य०) [उभय-तसिल] 1. दोनों ओर से,
एकत्र किया हुआ, जमा किया हुआ 2. निकट लाया दोनों ओर, (कर्म के साथ)-उभयत: कृष्ण गोपाः हुआ, निकटस्थ 3. युद्ध के लिए पंक्तिबद्ध 4. आरब्ध --सिद्धा० याज्ञ० ११५८, मन० ८।३१५ 2. दोनों 5. विवाहित ।
दशाओं में 3. दोनों रीतियों से--मनु० ११४७, । सम० उपोत्तम (वि.) [ अत्या० स०] अन्तिम से पूर्व का, -वत्,--दन्त (वि.) दोनों ओर (नीचे और ऊपर)
-मम् (अक्षरम् ) अन्तिम अक्षर से पूर्व का अक्षर । दाँतों की पंक्ति वाला, मनु० ११४३,--मुख (वि०) उपोद्घातः [उप+उद्+हन्+घश ] 1. आरम्भ ____ 1. दोनों ओर देखने वाला 2. दुमहा (मकान आदि)
2. प्रस्तावना, भूमिका, 3. उदाहरण, समुपयुक्त तर्क या | (---खी) ब्याती हई गाय-याज्ञ० श२०६-७ ।
रामपा ।
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