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T० ए०व० उHD] (कर्तृ०, १०
शुक्र ग्रह का
( २१९ ) स्वास्थ्योन्मुख 2. दक्ष, चतुर, कुशल 3. पवित्र । अति चंचल, अत्यन्त कंपनशील-मा० ५।३,-ल: 4. आनन्दित, प्रसन्न ।
एक बड़ी लहर या तरंग। उल्लाप: [ उद्+लप्+घञ ] 1. भाषण, शब्द, श्रुता | उल्व, उल्वण--दे० उल्ब, उल्बण ।
मयार्यपुत्रस्योल्लापा:-उत्तर० ३ 2. अपमानजनक- | उशनस् (पुं०) [वश्+कनसि--संप्र० ] (कर्तृ०, ए. शब्द, सोपालंभ भाषण, उपालभ-खलोल्लापाः सोढाः व०-उशना, संबो० ए०व० उशनन्, उशन, उशनः) ----भर्त० ३१६ 3. ऊँची आवाज से पुकारना 4. संवेग शुक्र-ग्रह का अधिष्ठात् देवता, भृगु का पुत्र, राक्षसों या रोग आदि के कारण आवाज में परिवर्तन | का गुरु, वेद में इनका नाम 'काव्य' संभवतः इनकी 6. संकेत, सुझाव।
बुद्धिमत्ता की ख्याति के कारण मिलता है-तु० कबीउल्लाप्यम् [ उद्+लप्+णि+यत् ] एक प्रकार का नामशना कविः भग० १०१३७, ये गृह्य व धर्मशास्त्र नाटक-दे० सा० द० ५४५ ।
के प्रणेता माने जाते हैं-याज्ञ. ११४, नागरिक राज्य उल्लासः [ उद+लस्+घा ] 1. हर्ष, खुशी-सोल्ला
व्यवस्था पर भी वह प्रमाणस्वरूप समझे जाते हैंसम् उत्तर० ६, सकौतुकोल्लासम्–उत्तर० २,
शास्त्रमुशनसा प्रणीतम्-पंच० ५, अध्यापितस्योशनउल्लास: फुल्लपढेरुहपटलपतन्मत्तपुष्पन्धयानाम्--सा०
शनसापि नीतिम्--कु० ३६।। द. 2. प्रकाश, आभा 3. (अलं० शा० में) एक अलं- उशी | वश्+ई, संप्र० ] कामना, इच्छा। कार--परिभाषा-अन्यदीयगुणदोषप्रयुक्तमन्यस्य गुण उशी (षो) रः,-रम्, उशी (षी) रकम् [वश्+ईरन्, दोषयोराधानमुल्लास:-रस०, उदाहरणों के लिए दे०, कित्, सम्प्र०, उष-न-कीरच वा, स्वार्थ कन् च] वीरणरस०, या चन्द्रा० ४।१३१, १३३ 4. पुस्तक के प्रभाग- मूल, खस-स्तनन्यस्तोशीरम्-श० ३९ । अध्याय, अनुभाग, पर्व, कांड आदि, जैसे कि काव्य के | उष् (भ्वा० पर०) (ओषति, ओषित-उषित-उष्ट) 1. जलाना, दस उल्लास।
उपभोग करना, खपाना,- ओषांचकार कामाग्निर्दशउल्लासनम् [ उद्+लस् णिच+ल्युट् ] आभा ।
वक्त्रमहनिशम्-भट्टि०६।१, १४१६२, मनु० ४।१८९ उल्लिङ्गित (वि.) [ उद्+लिंग+क्त ] प्रसिद्ध, 2. दण्ड देना, पीटना-दण्डेनैव तमप्योषेत-मन विख्यात ।
९।३७३ 3. मार डालना, चोट पहुँचाना। उल्लीढ (वि.) [ उद्+लिह+क्त ] रगड़ा हुआ, जिला | उषः [उष्-+क 1. प्रभात काल, पौ फटना 2. लम्पट
किया गया--मणिः शाणोल्लीढः-~-भर्तृ० २।४४ । 3. रिहाली धरती। उल्लुचनम् [ उद्लु ञ्च् + ल्युट्] 1. तोड़ना, काटना उषणम् (उष्+ल्युट्] 1. काली मिर्च 2. अदरक । --पादकेशांशककरोल्लुञ्चनेषु पणान् दश (दम:) | उषपः [उष्+कपन् 1. अग्नि 2. सूर्य ।
—याज्ञ० २।२१७ 2. बालों को नोचना, उखाड़ना। उषस् (स्त्री०) [उष्+असि 1. पौ फटना, प्रभात-प्रदीउल्लुण्ठनम- उल्लुण्ठा [ उद्+लुण्ठ + ल्युट्, अ वा] पाचिरिवोषसि-रघु० १२११, उपसि उत्थाय-प्रभात
व्यंग्योक्ति--धीरा-धीरा तु सोल्लुण्ठभाषणः खेदयेद- काल में उठकर 2. प्रातः कालीन प्रकाश 3. सांध्यकामम--सा० द. १०५-सोल्लण्ठनम- व्यङग्यपूर्वक; लीन (प्रात: और सायं) अधिष्ठातृदेवी (द्वि० व० में नाटकों में प्राय: मञ्चनिर्देश के रूप में प्रयुक्त।
प्रयोग)।-सी दिन का अवसान, सायंकालीन संध्या। उल्लेखः [ उद्+लिख+घञ ] 1. संकेत, जिक्र 2. वर्णन सम०- बुधः अग्नि-उत्तर०६।
उक्ति 3. सूराख करना, खुदाई 4. (अलं० शा० में) | उषा [ओषत्यन्धकारम्-उष्+क] 1. प्रभात काल, पो एक अलंकार-बहुभिर्बहुधोल्लेखादेकस्योल्लेख इष्यते, फटना 2. प्रातः कालीन प्रकाश 3. संध्या 4. रिहाली स्त्रीभिः कामोऽथिभिः स्वः काल: शत्रुभिरैक्षि सः घरती 5. डेगची, बटलोही 6. बाण राक्षस की पुत्री -चन्द्रा० ५:१९, तु०, सा० द० ६८२ 5. रगड़ना, तथा अनिरुद्ध की पत्नी [उषा ने अनिरुद्ध को स्वप्न में खुरचना, फाड़ना, खुरमुखोल्लेख-का० १९१, कुट्टिम | देखा, और उस पर मोहित हो गई। उसने अपनी २३२ ।
सखी चित्रलेखा की सहायता मांगी-चित्रलेखा ने उल्लेखनम् [ उद्+लिख्+ ल्युट्] 1. रगड़ना, खुरचना, उसे परामर्श दिया कि वह आस पास रहने वाले सभी
छीलना आदि 2. खोदना-याज्ञ० १६१८८, मनु० राजकुमारों के चित्र अपने साथ ले ले। जब ऐसा ५।१२४ 3. वमन करना 4. जिक्र, संकेत 5. लेख, किया गया, तो उसने अनिरुद्ध को पहचान लिया और चित्रण।
उसे अपने नगर में लिवा ले गई, जहाँ कि उसका उल्लोचः [ उद्+लोच्+घञ्] वितान या शामियाना | अनिरुद्ध से विवाह हो गया-दे० 'अनिरुद्ध' भी)। चंदोआ,तिरपाल।
सम०---ईशः उषा का स्वामी अनिरुद्ध,-कालः मुर्गा, उल्लोल (वि०) [उद्+लोड्+घञ, डस्य लत्वम् ] | -पतिः,-रमणः अनिरुद्ध, उषा का पति।
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