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उपनक्षत्रम् [प्रा० स० ] गौण नक्षत्र पुंज, अप्रधान तारा [ उपनिधिः [ उप-|-नि+धा+कि ] 1. धरोहर, अमानत
(ऐसे तारे गिनती में ७२९ बतलाये जाते हैं)। ___ 2. (विधि में) मुहरबंद अमानत - याज्ञ० २।२५, उपनगरम् [ प्रा० स० ] नगरांचल।
___ मनु० ८।१४५, १४९, तु० मेधातिथि–यत्प्रदर्शितरूपं उपनत (भू० क० कृ०) [ उप+नम्+क्त ] आया हुआ, | सचिह्नवस्त्रादिना पिहितं निक्षिप्यते-तु० याज्ञ० २।६५, पहुँचा हुआ, प्राप्त, आ टपका हुआ आदि ।
और मिता० में उत्कथित नारद। उपनतिः (स्त्री०) [ उप+नम --क्तिन् ] 1. पास जाना | उपनिपातः [ उप+नि-पत्+घञ्] 1. निकट पहुँचना, 2. झुकना, नति, नमस्कार ।
निकट आना 2. आकस्मिक तथा अप्रत्याशित आक्रमण उपनयः [ उप+नी+अच् ] 1. निकट लाना, ले जाना या घटना।
2. उपलब्धि, अवाप्ति, खोज लेना 3. काम पर लगाना | उपनिपातिन (वि.) [ उप+नि+पत+णिनि ] अचा4. उपनयन संस्कार---जनेऊ पहनाना, वेदाध्ययन की नक आ टपकने वाला,... रन्ध्रोपनिपातिनोऽनर्थाः दीक्षा देना-गृह्योक्तकर्मणा येन समीपं नीयते गुरोः, __-...श०६। बालो वेदाय तद्योगात् बालस्योपनयं विदुः। 5. तर्क-उपनिबन्धनम् [ उप-+-नि--बन्ध+ल्युट ] 1. किसी कार्य शास्त्र में भारतीय अनुमान प्रक्रिया के पाँच अंगों में से को सम्पादित करने का उपाय 2. बंधन, जिल्द । चौथा-प्रस्तुत विशिष्ट तर्क का प्रयोग-व्याप्तिविशिष्टस्य | उपनिमन्त्रणम् [ उप+नि+-मन्त्र ---णिच् + ल्युट ] आम
हेतोः पक्षधर्मता प्रतिपादकं वचनमुपनय:-तक। न्त्रण, बुलाना, प्रतिष्ठापन, उद्घाटन । उपनयनम [ उप-नील्युट] 1. निकट ले जाना | उपनिवेशित (वि.) [उप--नि+विश-णिच्+क्त ]
2. उपहार, भेंट 3. जनेऊ-संस्कार - आसमावर्तनात्कुर्या- रक्खा गया, स्थापित किया गया, बसाया गया...-कु० स्कृतोपनयनो द्विजः-मनु० २।१०८, १७३ ।।
६।३७. रघु० १५।२९। उपनागरिका [प्रा. स. वृत्त्यनुप्रास का एक भेद, उपनिषद् (स्त्री०)[ उप+नि+सद+क्विप ] 1. ब्राह्मण
यह माधर्य-व्यंजक वर्गों के योग से बनता है, उदा० ग्रन्थों के साथ संलग्न कुछ रहस्यवादी रचना जिसका तु० काव्य० ९ में दिये गये उदाहरण की-अपसारय मुख्य उद्देश्य वेद के गढ अर्थ का निश्चय करना है घनसारं कुरु हारं दूर एव कि कमलं:, अलमलमालि -भामि० २।४०, मा० ११७ (निम्नांकित व्युत्पत्तियाँ मणालैरिति वदति दिवानिशं बाला।
उसके नाम की व्याख्या करने के लिए दी गई है उपनायः,-नायनम् =दे० उपनय ।
--(क) उपनीय तमात्मानं ब्रह्मापास्तद्वयं यतः, उपनायकः [ उप+नी--प्रवल ] 1. नाट्य-साहित्य या निहन्त्यविद्या तज्जं च तस्मादुपनिषद्भवेत् । या (ख)
किसी अन्य रचना में वह पात्र जो नायक का प्रधान निहत्यानर्थमूलं स्वाविद्या प्रत्यक्तया परम्, नयत्यपास्तसहायक हो, उदा० रामायण में लक्ष्मण, मालतीमाधव संभेदमतो वोपनिषद्भवेत् । या (ग) प्रवृत्तिहेतून्नि:में मकरन्द आदि 2. उपपति, प्रेमी।
शेषांस्तन्मूलोच्छेदकत्वतः, यतोवसादयेद्विद्यां तस्मादुउपनायिका [प्रा० स० ] नाट्य-साहित्य या किसी अन्य पनिषद्भवेत् । मुक्तकोपनिषद् में १०८ उपनिषदों
रचना में बह पात्र जो नायिका की प्रधान सखी या का उल्लेख है, परन्तु इस संख्या में कुछ और वृद्धि सहेली हो जैसे मालतीमाधव में मदयन्तिका।
हुई है 2. (क) एक गूढ या रहस्यमय सिद्धान्त (ख) उपनाहः [ उप+नह+घा 11. गठरी 2. किसी घाव रहस्यवादी ज्ञान या शिक्षा--महावी० २।२ 3. पर
पर लगाई जाने वाली मल्हम 3. वीणा की खूटी मात्मा के संबंध में सत्य ज्ञान 4. पवित्र एवं धार्मिक जिसको मरोड़ने से सितार के तार कसे जाते हैं।
ज्ञान 5. गोपनीयता, एकान्तता 6. समीपस्थ भवन । उपनाहनम् [ उप-+नह.+णिच् + ल्युट् ] 1. उबटन आदि उपनिष्करः [ उप+निस्++घ] गली, मुख्यमार्ग, का लेप 2. मालिश करना, लेप करना ।
राजमार्ग। उपनिक्षेपः [ उप-नि+क्षिप्+घञ्] 1. धरोहर या उपनिष्क्रमणम् [ उप+निस्+क्रम् + ल्युट] 1. बाहर
न्यास के रूप में रखना 2. खुलो धरोहर, कोई वस्तु जाना, निकलना 2. एक धार्मिक अनुष्ठान या संस्कार जिसका रूप, परिमाण आदि बता कर उसे दूसरे को जिसमें बच्चे को सर्वप्रथम बाहर खुली हवा में निकाला संभाल दिया जाता है-याज्ञ० २।२५, (इस पर मिता० जाता है (यह संस्कार प्रायः चार मास की आयु होने कहती है---उपनिक्षेपो नाम रूपसंख्याप्रदर्शनेन रक्षणार्थ
पर मनाया जाता है) तु०----मनु० २१३४ 3. मुख्य परस्य हस्ते निहितं द्रव्यम्) ।
या राजमार्ग। उपनिधानम् [ उप+नि+धा+ल्युट् ] 1. निकट रखना । उपनत्यम् [ब० स०] नाचने का स्थान, नृत्यशाला ।
2. जमा करना, किसी की देख-रेख में रखना उपनेत (वि.) [ उप+नीतिच् ] जो नेतृत्व करता है, 3. धरोहर ।
या निकट लाता है, ले आने वाला-कु० १६६०,
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