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( २०२ ) (ज) चोटा, प्रयत्न-उपत्वा नेष्य (झ) उपक्रम, | उपकारः [ उप--कृ+घञ्] 1. सेवा, सहायता, मदद, आरम्भ-उपक्रमते, उपक्रमः (ज) अध्ययन-उपा- अनुग्रह, आभार (विप० 'अपकार')--- उपकारापकारी ध्यायः, (ट) आदर, पूजा-उपस्थानम्, उपचरति हि लक्ष्यं लक्षणमेतयो:-शि० २।३७, शाम्येत्प्रत्यपकापितरं पुत्र: 2. जिस समय यह उपसर्ग क्रियाओं से रेण नोपकारेण दुर्जन:---कु० २।४० ३७३, याश० संबद्ध न होकर संज्ञा शब्दों से पूर्व लगता है तो उस ३२८४ 2. तैयारी 3. आभूषण, सजावट,-री समय-सामीप्य, समता, स्थान, संख्या, काल और ___ 1. राजकीय तंबू 2. महल 3. सराय, धर्मशाला।। अवस्था आदि की संसक्ति, तथा अधीनता की भावना उपकार्य (वि.) [ उप---कृ पयत सहायता करने के आदि अर्थों को प्रकट करता है। उपकनिष्ठिका उपयुक्त-र्या राजभवन, महल-रम्यां रघुप्रतिनिधिः --कनिष्ठिका के पास वाली अंगुली, उपपुराणम् स नवोपकार्यां बाल्यात्परामिव दशां मदनोध्यवास -अनुषंगी पुराण, उपगुरु:-सहायक अध्यापक, उपा- -रघु० ५।६३, शाही खेमा–५।४१, १११९३, ध्यक्षः-उपप्रधान, अव्ययीभाव समासों में भी इन्हीं १३३७९, १६।५५, ७३ । अर्थों में इसका उपयोग होता है :--उपगङ्गम्-गंगायाः | उपकञ्चिः ,-चिका उप-- कुञ्च+कि, कन् टाप् च छोटी समीपे, उपकूलम्, °वनम् आदि 3. संख्यावाचक शब्दों
इलायची। के साथ लग कर संख्याबहुव्रीहि बन जाता है और
उपकुम्भ (वि.) [अत्या० स०] 1. निकटस्थ, संसक्त 'लगभग' 'प्रायः' 'तकरीबन' अर्थ को प्रकट करता 2. अकेला, निवृत्त, एकान्त । है,—उपत्रिंशाः-लगभग तीस 4. पृथक् रहता हुआ भी
उपकुर्वाणः [ उप++शानच् । ब्राह्मण ब्रह्मचारी जो यह (क) कर्म के साथ हीनता' को प्रकट करता है |
गृहस्थ बनना चाहता है। --उपहरि सुरा:-सिद्धा. देवता हरि के निकट है
उपकुल्या [ उप-कुल-+-यत्-+-टाप् ] नहर, खाई। (ख) अधि० के साथ यह 1. 'अधिकता' और 'उत्कृ- |
उपकपम्-पे (अव्य०) [ अत्या० स०] कुएँ के निकट, ष्टता' को---उपनिष्के कार्षापणम्, उपपरार्धे हरेर्गणाः
जलाशयः कुएँ के पास बना चबच्चा जिसमें गाय भैंस 2. तथा योग या जोड़ को प्रकट करता है। उपकण्ठः---कण्ठम् [ उपगतः कण्ठम्-अत्या० स०] उपकृतिः (स्त्री०)-उपक्रिया [ उप++क्तिन्, श
1. सामीप्य, सान्निध्य, पड़ोस-प्राप तालीवनश्याममुप- वा ] अनुग्रह, आभार । कण्ठं महोदधेः-रघु० ४१३४, १३१४८ कु०७१५१. उपक्रमः [उप+क्रम्+घञ्] 1. आरंभ, शुरू---रामोपकमा० ९।२ 2. ग्राम या उसकी सीमा के पास ममाचख्यौ रक्षःपरिभवं नवम्-रघु० १२१४२ राम के का स्थान - (अव्य०) 1. गर्दन के ऊपर, गले के निकट द्वारा आरम्भ किया गया 2. उपागमन, साहस बल 2. के निकट, नजदीक ।
पूर्वक आगे बढ़ना--मा० ७, इसी प्रकार-योषितः उपकथा [ प्रा० स०] छोटी कहानी, किस्सा।
सुकुमारोपक्रमाः-त० 3. उत्तरदायित्वपूर्ण व्यवसाय, उपकनिष्ठिका कन्नो अंगुली के पास वाली अंगुली ।
कार्य, जोखिम का काम 4. योजना, उपाय, तरकीब, उपकरणम् [ उप+ + ल्युट् ] 1. सेवा करना, अनुग्रह युक्ति, उपचार--सामादिभिरुपक्रमः-मनु० ७.१०७,
करना, सहायता करना 2. सामग्री, साधन औजार, १५९, रघु०१८।१५, याज्ञ० ११३४५, शि० २०७६, उपाय-उपकरणीभावमायाति-उत्तर० ३।३, परोप- 5. परिचर्या, चिकित्सा 6. ईमानदारी की जांच दे० कारोपकरणं शरीरम-का० २०७, याज्ञ० २।२७६, । 'उपधा'। मनु० ९।२७० 3. जीविका का साधन, जावन का | उपक्रमणम् [ उप+क्रम-+-ल्युट ] 1. उपागमन 2. उत्तरसहारा देने वाली कोई बात 4. राजचिह्न।
दायित्वपूर्ण व्यवसाय 3. आरम्भ 4. चिकित्सा, उपकर्णनम् [ उप+कर्ण+ल्युट् ] सुनना ।
उपचार। उपणिका [ उपकर्ण (अव्य०)+कन्+टाप् इत्वम ] उपक्रमणिका [उपक्रमण+ङीप्, कन्, टाप् ह्रस्व] भूमिका, अफ़वाह, जनश्रुति ।
प्रस्तावना। उपकर्तृ (वि.) [ उप++तृच ] उपकार करने वाला, उपकीड़ा [ अत्या० स० ] खेल का मैदान, खलने का
अनुग्रहकर्ता, उपयोगी, मित्रवत् - हीनान्यनुपकर्तृणि स्थान । प्रवृद्धानि विकुर्वते-रघु० १७.५८--उपकी रसा- उपकोशः-शनम् [ उप-क्रुश्+घञ, ल्युट् ] निन्दा, दीनाम्-साद. ६२४, शि० २।३७ ।
झिड़की, अपकर्ष--प्राणरुपक्रोशमलीमसैर्वा-रघु० उपकल्पनम्ना [ उप-कृप- णिच् + ल्युट, युच् वा ]| |५३। ।
1. तैयारी 2. कपोलकल्पित (तथ्यों का) सृजन करना, | उपक्रोष्ट्र (पुं०) [ उप + क्रुश् +तृच् ] (जोर से रेंगता गढ़ना।
हुआ) गधा।
पानी पीते हैं। के
प्राप तालीवा० स०]
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