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( १५७ ) आयुषिक (वि.) [आयुध+ठन] शस्त्रास्त्रों से सम्बन्ध | आरः-रम् [ आ+ऋ+घञ ] 1. पीतल 2. अशोधित रखने वाला-कः सिपाही, सैनिक।
लोहा 3. कोण, किनारा,-र: 1. मंगल ग्रह 2. शनिआयुपिन्, आयुधीय (वि.) [आयुध+ इनि. छ वा] हथि- ग्रह,-रा 1. मोची की रांपी, 2. चाकू, क्षत-शलाका । यारों को धारण करने वाला, (पुं०-धी)-घीयः, सम०-कूटः,-टम् पीतल, उत्तर० ५।१४। योद्धा।
आरक्ष (वि०) [आ+र+अच् ] परिरक्षित,--क्षः, आयुष्मत् (वि०) [आयुस्+मतुप्] 1. जीवित, जीता -क्षा 1. -प्ररक्षण, परिरक्षण, रक्षक (पहरेदार, हुआ 2. दीर्घायु (नाटकों में प्रायः वृद्ध पुरुष सत्कुलो
सन्तरी)-आरक्षे मध्यमे स्थितान्-रामा०, शा० द्भव व्यक्तियों को इसी नाम से सम्बोधित करते हैं; ३१५, मनु० ३।२०४ 2. हाथी को कुंभसंधि, 3. उदा० एक सारथि राजा को 'आयुष्मन्' कह कर
सेना। सम्बोधित करता है। ब्राह्मण को भी अभिवादन करने
आरक्ष (क्षि) क (वि.) [आ-+रक्ष + वुल, आरक्ष+ के लिए इसी प्रकार सम्बोधित किया जाता है -तु०
ठा वा ] 1. पहरेदार, सन्तरी 2. देहाती या पुलिस मनु० ४।१२५, आयुष्मन्, भव सौम्येति वाच्यो विप्रो
. का दण्डाधिकारी (मैजिस्ट्रेट)। भिवादने)।
आरटः [आ+रट-+अच ] नट, नाटक का पात्र । आयुष्य (वि.) [आयुस्+यत्] लम्बा जीवन करने वाला,
आरणिः [आ+ऋ+अनि ] भंवर, जलावर्त । जीवनप्रद, जीवनसंघारक-इदं यशस्यमायुष्यमिदं नि: आरण्य (वि.) (स्त्री०---ण्या,–ण्यी) [अरण्य- अण्, श्रेयसं परम्-मनु० १११०६, ३।१०६,-व्यम् जीवन स्त्रियां टाप, डीप वा] जंगली, जंगल में उत्पन्न । प्रद शक्ति ।
आरण्यक (वि.) [ अरण्य+वुन ] वन संबंधी, वन में नपुं०) [आ++उस] 1. जीवन, जीवनावधि उत्पन्न, जंगली, जंगल में उत्पन्न,-कः जंगल में रहने -दीर्घायुः-रघु० ९।६२, तक्षकेणापि दष्टस्य
वाला, जंगली, वनवासी,-तप: षड्भागमक्षय्यं ददत्याआयमर्माणि रक्षति-हि. २।१६, शतायुर्वं पुरुषः
रण्यका हि नः-श० २।१३,--कम् आरण्यक ग्रंथ, -ऐत. 2. जीवन दायक शक्ति 3. आहार (वाक्य
(यह ब्राह्मणग्रंथों से संबद्ध धार्मिक तथा दार्शनिक रचना में 'आयुस' का अन्तिम 'स' बदलकर अघोष
रचनाओं का एक समुदाय है जो या तो जंगल में रचे व्यंजनों से पूर्व '' तथा घोष व्यंजनों से पूर्व 'र' बन
गये हैं या वहाँ उनका अध्ययन किया गया है) जाता है)। सम-कर (वि०) (स्त्री०-री) दीर्घ
-अरण्येऽनूच्यमानत्वात् आरण्यकम्-बृहदा०, अरण्येजीवन करने वाला,-काम (वि०) दीर्घायु या स्वा- ऽध्ययनादेव आरण्यकमुदाहृतम् । स्थ्य की कामना करने वाला,-द्रव्यम् 1. औषधि
आरतिः (स्त्री०) [आ+रम् +क्तिन् ] 1. विराम, रोक 2. धी, वृद्धिः (स्त्री०) लम्बा जीवन, दीर्घायु, वेदः
2. प्रतिमा के सामने दीप-दान, या कपूर-दीपक घुमाना, स्वास्थ्य या औषधि-विज्ञान-वेदश,-वेदिक,
आरती उतारना। ----वेदिन (वि.) औषध से सम्बन्ध रखने वाला, | आरनालम् [आ+ऋ+अच, नल+घा आरो नालो (-पुं०) वैद्य, डाक्टर,-शेषः जीवन का शेष भाग, गंधो यस्य - ब० स०] माँड, चावल का पसाव। °शेषतया-पंच० ११२, जीवन का ह्रास या अवसान, आरब्धिः (स्त्री०) [ आ+रभक्तिन् ] आरम्भ, शुरु ।
-स्तोमः (आयुष्टोमः) दीर्घायु पाने के लिए किया आरभटः [ आरभ् + अट ] उपक्रमशील या साहसी पुरुष, जाने वाला यज्ञ।
----ट:-टी दिलेरी, विश्वास,--टी 1. नाट्यकला की आये (अव्य०) [प्रा० स०] स्नेहबोधक सम्बोधनात्मक शाखा, दे० सा० द० ४२० तथा आगे 2. साहित्य की अव्यय ।
एक शैली 3. विशेष नृत्यशैली। आयोगः [आ+युज+घञ्] 1. नियुक्ति 2. क्रिया, कार्य- | आरम्भः [आ+र+घन मुम् च] 1. आरम्भ, शुरू;
सम्पादन 3. पुष्पोपहार 4. समुद्रतट या नदी किनारा। "उपायः प्रारंभिक योजना-नृत्यारम्भे हर पशुपतेराभायोगवः [अयोगव+अण् ] शूद्र द्वारा वैश्य स्त्री से नागाजिनेच्छाम् मेघ० ९९, 2. प्रस्तावना 3. कार्य,
उत्पन्न पुत्र (इसका व्यवसाय बढ़ईगिरी है-नु० मनु० व्यवसाय, कृत्य, काम--आगमैः सदृशारंभ:-रघु० १०१४८),-वी इस जाति की स्त्री।
२१५, ७८१, भग० १२।१६, 4. त्वरा, वेग 5.प्रयास, आयोजनम् [आ+युज् + ल्युट] 1. सम्मिलित होना 2. प्रयत्न-भग०१४।१२, 6. दश्य, कर्म-चित्रापितारम्भ पकड़ना, ग्रहण करना 3. प्रयास, प्रयत्न ।
इवावतस्थे-रघु० २।३१, 7. मार डालना, हत्या आयोधनम् [ आ+यु+ल्युट] 1. युद्ध, लड़ाई, संग्राम करना ।
-आयोधने कृष्णगतिं सहायं--रघु० ६।४२, आयोध- आरम्भणम् [आ+रभ् + ल्युट् मुम् च] 1. काबू में करना, नाग्रसरतां त्वयि वीर याते ५।७१, 2. युद्धभूमि । पकड़ना 2. पकड़ने का स्थान, दस्ता, बौंडा ।
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