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प्रत्याशा करना, प्रतीक्षा करना, पर्युप--1. उपासना ) -स वासवेनासनसंनिकृष्टन्–कु० ३।२, आसनं भुच करना, पूजा करना, अर्चना करना-पर्युपास्यन्त लक्ष्म्या | —अपना आसन छोड़ना, उठना-रघु० ३।११, 3. ---रघु० १०१६२, कु० २।३८, मनु०७४३७, 2. (रक्षा एक विशेष अंगविन्यास या बैठने का ढंग-तु. पप के लिए) पहुँचना, शरण लेना, या संरक्षण में आना वीर 4. बैठ जाना या ठहरना 5. रतिक्रिया की -- अशक्ता एव सर्वत्र नरेन्द्रं पर्युपासते-पंच० ११२४१, विशेष विधि 6. शत्र के विरुद्ध किसी स्थान पर डटे 3. घेरना, घेरा डालना 4. भाग लेना, हिस्सा लेना रहना (विप० यानम), विदेशनीति के ६ प्रकारों में से 5. आश्रय लेना, सम्-1. बैठ जाना--प्रत्युवाच एक-संधि विग्रहो यानमासनं द्वधमाश्रय:--अमर० समासीनं वसिष्ठम्-रामा० 2. मिल कर बैठना, मनु० ७।१६०, याज्ञ० ११३४६ 7. हाथी के शरीर का समुप-1. सेवा के लिए प्रस्तुत रहना, पूजा करना, अगला भाग, घोड़े का कन्धा, ना 1. आसन, तिपाई सेवा करना-समुपास्यत पुत्रभोग्यया स्नुषयेवाविकृते- जिस पर बैठा जाय, टेक 2. बैठने का एक छोटा स्थान न्द्रियः श्रिय:--रघु० ८।१४, 2. अनुष्ठान करना-ते स्टूल 3. दुकान, आपणिका। सम० - बंषधीर (वि.) त्रयः संध्यां समुपासत—रामा०।।
बैठने के लिए दृढ़ संकल्पवाला, अपने आसन पर दृढ़, आसः [आस्+घ ] 1. आसन 2. धनुष (-सम्, भी) स
-निषेदुषीमासनबन्धधीरः-रघु० २१६ । सासिः सा सुसूः सास:-कि० १५।५।
आसन्दी [आसद्यतेऽस्याम्-आ+ सद्+ट, नुम् नि० की] आसक्त (भू० क० कृ०)[आ+सञ्+क्त] 1. अत्यनुरक्त, तकियेदार आराम कुर्सी।
कृतसंकल्प, जुटा हुआ, लगा हुआ---(प्रायः अधि० के आसन्न (भू० क० कृ०) [आ--सद्+क्त ] 1. उपागत साथ या समास में) 2. स्थिर, टिका हुआ-शिखरा- (काल, स्थान और संख्या की दृष्टि से) निकट, सक्तमेघा:-कु० ६१४०, 3. निरन्तर, अनवरत, -आसन्नविशा:--बीस के लगभग या निकट 2. निकटशाश्वत । सम-चित्त,-चेतस्,---मानस् एकनिष्ठ, वर्ती, सन्निहित-आसन्नपतने कुले-शारी०, । सम. एकाग्र।
--कालः 1. मृत्यु का समय 2. जिसकी मृत्यु निकट, आसक्तिः (स्त्री०) [आ। सञ्+क्तिन्] 1. अनुराग, हो,--परिचारक:-चारिका व्यक्तिगत सेवक, शरीर
भक्ति, लगाव-बालिशचरितेष्वासक्ति:-का० १२०, रक्षक। 2. उत्सुकता, लगाव ।
आसम्बाध (वि.) [आसमन्तात् सम्बाधा यत्र ब. स.] 1. आसङ्गः [आ+संज्+घञ] 1. अनुराग, भक्ति-सुखा
समवरुद्ध, रोका हुआ, (चारों ओर से) घेरा हा सङ्गलब्ध:-का०१७३, 2. सम्पर्क, अनुरक्ति, चिपकाव
-आसम्बाधा भविष्यन्ति पन्थानः शरवृष्टिभिः–(पङ्कज) स शवलासङ्गमपि प्रकाशते-कु० ५।९,
रामा०। ३१४६ 3. साहचर्य, संयोग, सम्मिलन,-- त्यक्त्व कर्म- आसवः आ-स-अण 11. अर्क. 2. काढा 3. मद्यनिष्कर्ष फलासङ्ख-भग० ४।२०, इसी प्रकार कान्तासङ्गम्'
---अनासवाख्यं करणं मदस्य-कु० १२३१, द्राक्षा -आदि 4. स्थिरीकरण, बन्धन ।
आदि । भासङ्गिनी [आसङ्ग+इनिन-डीप्] चक्रवात, बगूला, हूला । | आसावनम् [ आ+सद्+णिच्--ल्युट् ] 1. प्राप्त करना, मासजनम् [आ-+-स +ल्युट्] 1. बाँधना, जमाना, उपलब्ध करना 2. आक्रमण करना।
(शरीर पर) धारण करना 2. फंस जाना, चिपकना | आसारः [आ+स+घञ] 1. (किसी वस्तु की) मूसलाधार -व्रततिवलयासञ्जनात्-श० १।३३, ५।१। 3. अनु बौछार--आसारसिक्तक्षितिबाष्पयोगात्-रघु० १३॥ राग, भक्ति 4. सम्पर्क, सामीप्य।।
२९, मेघ०१७. पुष्पासारैः---४३, इसी प्रकार तुहिन , मासत्तिः [आ+सद्+क्तिन्] 1. मिलन, संयोग 2. अंतरंग रुधिर' आदि-धारासारर्वष्टिर्बभूव-हि०३, मूसला
मेल, घनिष्ठ सम्पर्क,-किमपि किमपि मन्दं मन्दमा- धार बारिश हुई 2. शत्रु का घेरा डालना 3. सत्तियोगात-उत्तर० श२७, 3. उपलब्धि, लाभ, आक्रमण, अचानक हमला 4. अपने किसी मित्र राजा उपार्जन, 4. (तर्क० में) सामीप्य दो या दो से अधिक को सेना 5. रसद, आहार:-पंच० ३।४१ । निकटस्थ राशियों का सम्बन्ध और उनके द्वारा अभि- आसिकः [ असि+ठक् ] खङ्गधारी, तलवार लिए हुए। व्यक्त भाव-कारणं सन्निधानं तु पदस्यासत्तिरुच्यते | आसिधारम [असिधारा इन अस्त्यत्र अण् ] एक प्रकार -भाषा० ८३।
का ब्रतविशेष-अभ्यस्तीव व्रतमासिधारम्-रघु० आसन् (नपुं०) मुख (कर्म० द्वि० व० के पश्चात् सभी १३।६७, व्याख्या के लिए दे० असि के नीचे 'असिविभक्तियों में 'आस्थ' के स्थान में विकल्प से आदेश धारा' शब्द । होने वाला शब्द)।
आसुतिः (स्त्री०) [आ-सु । क्तिन [ 1. अर्क, 2. काढ़ा। मासनम् [आस् + ल्युट्] 1. बैठना, 2. आसन, स्थान, स्टूल ] आसुर (वि.) (स्त्री०–ी) [ असुर+अण् ] (विप०
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