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अमेवं गुणोपेत
११२.
सेनाप्तम
( १५१ ) आन्ध्र (वि०) [आ+अध् + रन् ] आंध्र देश की (जैसे | (प्रेरणार्थक रूप भी) करना-यावतैषां समाप्येरन्
कि भाषा)-ध्रः (ब० व०) तेलुगू देश, वर्तमान यज्ञाः पर्याप्तदक्षिणा:-रघु० १७:१७, २४, समाप्य तेलंगाना; दे० अंध्र।
सान्ध्यं च विधि–२।२३ । आन्वयिक (वि.) (स्त्री०-की) [ अन्वय+ठक् ] | आपकर (वि.) (स्त्री-री) [अपकर+अण, अन
1. अच्छे कुल में उत्पन्न, सुजात, अभिजात 2. वा, स्त्रियां डीप् ] अनिष्टकर, अमैत्रीपूर्ण, दुराई क्रमबद्ध ।
करने वाला। आन्याहिक (वि०) (स्त्री०—की) [अन्वह+ठा] प्रति- आपक्व (वि.)[आ+पच्+क्त] अनपका, अधपका-पचम् दिन होने वाला, प्रतिदिन किया जाने वाला-पक्ति
चपाती, रोटी। चान्वाहिकीम् ----मनु० ३।६७।।
आपगा [अपां समूहः आपम्, तेन गच्छति-गम्+] परिया, आन्वीक्षिकी [अन्वीक्षा+ठन +डीप् ] 1. तर्क, तर्कशास्त्र नदी ---फेनायमानं पतिमापगानाम्-शि० ३७२।
2. आत्मविद्या-आन्वीक्षिक्यात्मविद्या स्यादीक्षणात्सुख-आपगेयः [आपगा-ढक दरिया का पुत्र, भीष्म या कृष्ण दुखयोः, ईक्षमाणस्तया तत्त्वं हर्षशोको व्युदस्यति; की उपाधि।
—काम० २१११, आन्वीक्षिकी श्रवणाय—मा० १, आपणः [आपण+घञ मंडी, दुकान । मनु०७४३ ।
आपणिक (वि०) (स्त्री० की) [आपण+ठक] 1. आप (स्वा० पर०) [आप्नोति, आप्त ] 1. प्राप्त करना,
व्यापार या मंडी से सम्बन्ध रखने वाला, व्यापारिक 2. उपलब्ध करना, हासिल करना-पुत्रमेवं गुणोपेतं
मंडी से प्राप्त किया हुआ,-कः दुकानदार, सौदागर, चक्रवर्तिनमाप्नुहि-श० १११२, अनुद्योगेन तैलानि
वितरक या विक्रेता। तिलेभ्यो नाप्तुमर्हति-हि० प्र० ३०, शतं ऋतनामप- | आपतनम् |आ+पत्+ल्युट्] 1. निकट आना, टूट पड़ना विघ्नमाप सः--रघु० ३।३८, इसी प्रकार फलं, कीर्ति,
2. घटित होना, घटना 3. प्राप्त करना, 4. शान सुखं आदि के साथ 2. पहुँचना, जाना, पकड़ लेना,
--क्वचित्प्राकरणिकादादप्राकरणिकस्यार्थस्यापतनम् मिलना-भटि०६।५९ 3. व्याप्त होना, जगह घेरना।
-सा० द. १०, 5. नैसर्गिक क्रम, स्वाभाविक 4. भुगतना, कष्ट भोगना, कठिनाइयों का सामना
परिणाम । करना-दिष्टान्तमाप्स्यति भवान्-रघु० ९।६९ ।
आपतिक (वि०) (स्त्री०-की) [आपत्+इकन्] आकअनुप्र--, 1. हासिल करना, प्राप्त करना, 2. पहुँचना,
स्मिक, अदृष्ट, देवी-कः बाज, श्येन । जाना, पकड़ लेना-गंगानदीमनप्राप्ता:- महा०, | आपत्तिः (स्त्री०) [आ+पद्+क्तिन्] 1. बदलना, परि3. आ पहुँचना, आना; अब--, 1. हासिल करना, वर्तित होना 2. प्राप्त करना, उपलब्ध करना, हासिल प्राप्त करना, उपलब्ध करना-पुत्रं त्वमपि सम्राज करता 3. मुसीबत, संकट 4. (दर्शन में) अवांछित सेव पूरुमवाप्नुहि-श० ४।६, रघु० ३।३३, अवाप्तो- उपसंहार या अनिष्ट प्रसंग। रकण्ठानाम्-मा० ११२ 2. पहुँचना, पकड़ लेना, । आपद् (स्त्री०) [आ+पद्+क्विप्] 1. संकट, मुसीबत, परि---, (प्रायः 'क्तान्त' रूप प्रयोग में आता है) खतरा-देवीनां मानुषीणां च प्रतिहर्ता स्वमापदाम् 1. समर्थ होना--पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीष्माभि- ---रघु० १।६०, अविवेकः परमापदां पदम्-कि. रक्षितम्-भग० १११०, मनु० १११७, 2. योग्य होना २॥३०, १४-प्रायो गच्छति यत्र भाग्यरहितस्तत्रय 3. पूरा होना जैसा कि 'पर्याप्तकल:' और 'पर्याप्त- यान्त्यापदः -भर्तृ० २।९०। सम-काल: विपत्ति दक्षिणः' में है 4. बचाना, रक्षा करना, परिरक्षण के दिन, कष्ट का समय,गत,-ग्रस्त, प्राप्त (वि०) करना-इमा परीप्सुर्दुतिः -~-मालवि० ५।११, 5. 1 मुसीबत में पड़ा हुआ 2. दुर्भाग्य-प्रस्त, पीड़ित, काम तमाम करना, समाप्त करना, प्र--, 1. हासिल -धर्मः अत्यन्त कष्ट या संकट के समय अनुमति करना, प्राप्त करना, 2. जाना, पहुँचना—यथा महा- दिय जाने योग्य आचरण या वृत्ति, या कोई कार्य ह्रदं प्राप्य क्षिप्तं लोष्टं विनश्यति---मन० १२२६४, विधि जो प्रायः किसी वर्ण या जाति के लिए उपयुक्त रघु० १४८, भट्टि० १५१०६ इसी प्रकार आश्रम, न हो। नदी, बनम् आदि के साथ 3. मिल जाना, पकड़ लेना | आपदा [आपद् +टाप् मुसीबत, संकट ।। भटि० ५।९६, दे० प्राप्त, वि-, 1. पूरी तरह से भर आपनिकः (आ+पन्--इकन्] 1. पन्ना, नीलम 2. किरात देना, व्याप्त हो जाना-श्रुतिविषयगुणा या स्थिता व्याप्य या असभ्य व्यक्ति ।। विश्वम् ---श० १११, इसी प्रकार विक्रम० १५१, भग० | आपन्न (भू० क० कृ०)[आ+-पद्+क्त] 1. लब्ध, प्राप्त १०।१६, रघु० १८१४०, भटि० ७५६, सम-, 1 -जीविकापन्नः 2. गया हुआ, कम हुआ, प्रस्त-कष्टी हासिल करना, प्राप्त करना, 2. समाप्त करना, पूरा | दशामापन्नोऽपि --भर्तृ० २।२९ इसी प्रकार दुःख
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