________________ (27) समस्त संसार से ज्यादा है; ऐसे श्री प्रमु पृथ्वी के तिलक . समान हैं। प्रमु जब यौवनावस्था में आते हैं, तब माता पिता उनका विवाह करने के लिए आग्रह करते हैं। उस समय अवधिज्ञान द्वारा प्रमु इस बात का विचार करते हैं कि उन के भोग्यकर्म बाकी है या नहीं। यदि उन को ज्ञात होता है कि भोग्यकर्म बाकी है, तो वे यह सोच कर ब्याह कर लेते हैं कि अपने सिर पर जो कर्ज देना रहा है, वह अवश्यमेव चुकना ही पड़ेगा। और यदि उन्हें मालुम होता है कि भोग्यकर्म बाकी नहीं है तो वे ब्याह नहीं करते हैं; जैसे कि नेमिनाथ, मल्लिनाथ आदिने ब्याह नहीं किया था। विवाहित तीर्थंकरों के सन्तति भी होती है। . भोग्य-कर्म का जब अन्त होता है तब लोकान्तिक देव श्री प्रमु के पास आ कर प्रार्थना करते हैं कि-" हे भगवन् ! कर्म रूपी कीचड़ में डूबे हुए इस संसार का उद्धार करो और तीर्थ की प्ररूपणा करो"। यद्यपि प्रमु स्वयमेव अवधिज्ञान द्वारा दीक्षा के समय को जानते हैं; तथापि लोकान्तिक देवों का अनादि काल से ऐसा ही आचार चला आ रहा है इसलिए वे प्रमु से उक्त प्रार्थना करते हैं / उसी समय से प्रत्येक तीर्थकर अपने मातापिता से