________________ (29) इधर प्रमु भी प्रतिदिन द्वितीया के चंद्रमा की भाँति बढ़ते जाते हैं। उनकी आकृति-उनका स्वरूप-बहुत ही सुंदर होता है। कहा है कि द्विजराजमुखो गजराजगति ररुणोष्टपुटः सितदन्तततिः / शितिकेशमरोऽम्बुजमञ्जुकरः; __ सुरभिश्वसितः प्रमयोल्लसितः // 1 // मतिमान् श्रुतिमान् प्रथितावधियुक्; पृथुपूर्वभवस्मरणो गतरुक् / मति-कान्ति-धृतिप्रभृतिस्वगुणै जगतोऽप्यधिको जगतीतिलकः // 2 // भावार्थ-जिन का मुख चंद्रमा के समान है; जिन की गति-चाल-गजराज के समान है। जिन के ओष्ठ संपुट लाल है। जिन की दंत-श्रेणी सफेद है; जिन का केशसमूह काला है। निन के हाथ कमल के समान कोमल है। जिन का श्वास सुगंधित है। कान्ति से जो देदीप्यमान हो रहे हैं; मतिज्ञान और श्रुतज्ञान के साथ जिन का अवधिज्ञान भी सुविस्तृत है। पूर्व भव की स्मृति भी निन्हें बहुत ज्यादा होती है। जिन का शरीर रोग रहित है और मति, कान्ति और धीरज आदि गुण जिन में