Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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ऐश्वर
प्राचीन चरित्रकोश
औदन्य
ऐश्वर-अग्नि धिष्डण्य देखिये ।
२.७.३२) । सायण के मतानुसार एषवीर के वंशज अर्थ ऐषकृत--शितिबाहु देखिये ।
का कोई विशेषनाम भी प्रचलित है तथा इन्हें ब्राह्मणों ऐषरथ--कुशिक देखिये ।
की एक निंद्य जाति मानी जाती है (श. बा.९.५.१.१६; ऐषावीर--यद्यपि एक यज्ञ में ये याज्ञिक का कार्य सां. बा. १.१)।
इति से करते थे (श. ब्रा. ११.। ऐषुमत-त्रात का पैतृक नाम ।
ओघरथ-(सू. नृगं.)। ओघ राजा का पुत्र। ओंकार--शंकर का एक अवतार था। विंध्य के लिये इसका पुत्र नृग (म. अनु. २)।
यह पृथ्वी पर आया । ओंकार मांधाता में यह लिंग रूप ओघवत्-(स. नृग.)प्रतीक का पुत्र (भा. ९.२)। में तथा पृथ्वी पर प्रणव रूप में है (शिव. शत. ४२)। इसका पुत्र ओघरथ तथा कन्या ओघवती (म. अनु. २)। इसका उपलिंग कर्दमेश है (शिव. कोटि. १)।
ओज--श्रीकृष्ण तथा लक्ष्मणा का पुत्र (भा. १०. २. ओघवत् का पुत्र (भा. ९.२)।
। ६१)। यह महारथी था। ओघवती-प्रतीक की कन्या तथा सुदर्शन की पत्नी ओजस-वैशाख माह में अर्यमा नामक सूर्य के (भा. ९. २)। . .
साथ साथ घूमनेवाला यक्ष (भा. १२. ११.३४)। - . २ (सू. नृग.) ओघवत् राजा की कन्या। ओघरथ ओजस्विन--भौत्य मन्वंतर में मनु पुत्र । की भगिनी (म. अनु. २)।
ओजिष्ट-पृथुक नामक देवगण में से एक ।
औक-(सू, इ.) वायुमतानुसार बल का पुत्र । औत्तम वा औतमी मनु-उत्तानपाद के पुत्र उत्तम
औगज-अंगिरस गोत्र का एक मंत्रकार । ऋषिज तथा बभ्रुकन्या ब्राभ्रव्या का पुत्र । उत्तम का पुत्र होने के तथा असिज इसके नाम हैं।
कारण इसे औत्तम या औत्तमी मनु कहते हैं (मार्क. __ औग्रसेन्य-युधांश्रीष्टि का पैतृक नाम (ऐ. बा. ८. ६९)। यह प्रयव्रत का वशज था (विष्णु.३.१.२४.)। २१.७)।
भागवत में इसे प्रियव्रत की दूसरी स्त्री का पुत्र कहा गया ___औघरथ -सूर्यवंशी दूसरा नृगराजा। ओघरथ का | है तथा नाम उत्तम ही दिया है । ( भा. ८.१.२३; मनु पुत्र। .
देखिये)। इसने वाग्भव मंत्र से तीन वर्ष उपवास करके औचथ्य-दीर्घतमस् देखिये।
देवी की उपासना की (दे. भा १०.८)। यह तृतीय औचेयु-ऋतेयु देखिये।
मन्वन्तराधिप मनु है। औडलोमि--एक तत्त्वज्ञानी । ब्रह्मसूत्र में इसके मत का अनेक बार मतभेदप्रदर्शनार्थ निर्देश मिलता है (ब.! __ औदन्य--मुंडभ का पैतृक नाम। भ्रूणहत्या का स,१.४.२१,३.४.४५,४.४.६ )।
| प्रायश्चित्त बताने के लिये इसका उल्लेख किया गया है १०३