Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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चंद्रदेव
चंद्रदेव - पांचाल देश का नृप । यह युधिष्ठिर का चक्ररक्षक था। भारतीययुद्ध में कर्ण ने इसका वध किया (म.क. ४४. १५ ) ।
२. दुर्योधन के पक्ष का नृप। भारतीययुद्ध में अर्जुन ने इसका वध किया (म. प्रो. ४४.२९ ) । चंद्रप्रदर्शन- कश्यप तथा सिंहिका के कनिष्ठ | चंद्रप्रमर्दन इसका नामान्तर है ।
प्राचीन चरित्रकोश
चन्द्रह
अतः उसके प्रत्येक अक्षर से एकेक विष्णुदूत उत्पन्न हो कर उन्होनें इस चांड़ालयुग्म को भगा दिया। वह चंडायुग्म मनुष्यवेषधारी पाप एवं निंदा थे (पद्म. 3. १८२ ) ।
३. मागध देश का ब्राह्मण । इसने गुरुहत्या की थी । पुत्रों में बिदुर के साथ कलिंजर पर्वत जाने पर उसे एक सिद्ध मिला। उसके उपदेश से इसने सोमवती अमावास्या के चंद्रप्रभ - एक राजा । यह मणिभद्र तथा पुण्यवनी दिन, पुष्करतीर्थ में स्नान किया तथा यह गुद हुआ का पुत्र था ।
(पद्म. भू. ९१-९२ ) ।
चंद्रभानु-- (सो. यदु. वृष्णि. ) कृष्ण तथा सत्यभामा का पुत्र (मा. १०.६१.१० ) ।
चंद्रमस् -- अत्रि तथा अनुसूया का पुत्र । २. कश्यप एवं दनु का पुत्र ।
३. समुद्र के दक्षिण तट पर निवास करनेवाला ऋषि । इसने जटायु के भाई संपाति को अध्यात्मज्ञान दिया । सीता की खोज के लिये आये वानरों को मार्ग दिखाने का आदेश इसने जटायु को दिया। पश्चात् यह स्वर्ग सिधारा ।
चंद्ररूपा - राथंतरकल्प के प्रजापति की पत्नी । इसने त्रिरात्र तुलसीव्रत किया था ( पद्म. उ. २६ ) ।
चंद्रवती -- प्रचेतस् एवं मारिषा की कन्या । यह प्राचेतस् दक्ष की बहन थी ।
चंद्रचर्मन् कांग्रेज देश का नृप (म. आ. ६१. ५५६* )।
चंद्रवाह - काकुत्स्थ शशाद राजा का नामांतर | चंद्रविज्ञ--(आंध्र. भविष्य.) भागवत मत में विजय का पुत्र (चंडश्री देखिये) ।
चंद्रशर्मन - - मायापुरी का अग्निगोत्रज ब्राह्मण । यह देवशर्मन् का शिष्य था । देवशर्मन् की कन्या गुणवती इसकी पत्नी थी। एक बार देवशर्मन् तथा यह अरण्य में धर्म समिधा लाने के लिये गये। एक राक्षस ने इन दोनों के प्राण लिये | अत्यंत धार्मिक होने के कारण यह वैकुंठ गया। यह कृष्ण के समय अक्रूर नाम से प्रसिद्ध हुआ (पद्म. कु. ८८-८९ ) ।
२. सूर्यवंश का एक राजा । यह कुरुक्षेत्र में रहता था । एक बार सूर्यग्रहण के समय, तुलापुरुषदान देने की इच्छा से, इसने एक ब्राह्मण को बुलाया । परंतु वह निंद्य दान होने के कारण, तुलापुरुषदान करते ही उस में से एक चंदलयुग्म उत्पन्न हुआ। इसमें ब्राह्मण ने गीता के नवम अध्याय का पाठ प्रारंभ किया था।
चन्द्रशेखर -- एक राजा । यह पुषन् का नाती तथा पौष्य का पुत्र था । इसका राज्य दृपद्वती नदी के किनारे करवीर में था।
इसके पिता पौष्य ने पुत्र के लिये, शंकर की आराधना की। शंकर ने उसे प्रसादरूप में एक फल दिया। उस फल के तीन भाग कर के पौष्य ने अपनी तीनं स्त्रियों को दिये। बाद में पौप्यस्त्रियों को तीन भमपुत्र ऐसे हुए की, उन तीनों को जोड़ कर एक पुत्र न सके तीन भागों में बनने के कारण, इसे व्यवक नाम मिला।
सूर्यवंशीय राजा ककुत्स्थ एवं भोगवती की कन्या तारावती से इसका विवाह हुआ तारावती को कपोत मुनि के शाप से, भृंगी तथा महाकाल ये भैरव एवं वेतालयोनि के पुत्र हुए (कालि. ५०-५२ ) । इसे दमन, उपरिचर तथा अर्क नामक तीन औरस पुत्र थे।
चन्द्रश्री - (आंध्र भविष्य . ) विष्णु के मत में विजय का पुत्र (चंड़श्री देखिये) ।
चन्द्र सावर्णि-चौदहवाँ मनु ( मनु देखिये ) | चन्द्रसेन सिंहलद्वीप का राजा तथा मंदोदरी का पिता ।.
। २. दुर्योधनपक्षीय एक राजा भारतीययुद्ध में यह शल्य का चक्ररक्षक था । यह युधिष्ठिर के द्वारा मारा गया (म. श. ११.५२ ) ।
२. पांडवपक्षीय क्षत्रिय राजा ( म. स. २७.२२ ) । यह समुद्रसेन राजा का पुत्र था ( म. आ. १७७.११ ) । भारतीययुद्ध में अश्वत्थामा ने इसका वध किया ( म. द्रो. १३१.१२९ ) । यह एक उत्तम रथी था ( म.उ. १६८.१८ ) । इसके रथ को सामुद्र अश्व जोडे गये थे । पाठभेद - चन्द्रदेव ।
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४. सम्म राजा का बंधु ।
चन्द्रहर्तृ -- कश्यप तथा सिंहिका का पुत्र ।