Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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भुमन्यु
प्राचीन चरित्रकोश
भूत
इसके पिता भरत ने इसे यौवराज्याभिषेक किया। सती के उदर से अपने ही समान पिंगल, सनिषंग, किन्तु आरम्भ से ही विरक्त प्रकृति का होने के कारण, | कपर्दी तथा नीललोहित वर्णवाले लाखों भूत उत्पन्न इसने राज्यपद का स्वीकार न किया, एवं भरत के पश्चात् किये, जो पिशित खानेवाले तथा आज्य तथा सोम इसका पुत्र सुहोत्र राजगद्दी पर बिठाया गया। प्राशन करनेवाले थे (ब्रह्माण्ड. २.९.६८-७८)।
इसे ऋचीककन्या पुष्करिणी एवं दशाहकन्या विजया | स्वरूपवर्णन-ये छोटे अवयववाले (कृशाक्ष), लम्बे नामक दो पलिया थी। पुष्करिणी से इसे निम्नलिखित | कानवाले ( लंबकर्ण), बड़े तथा लटकते हुए ओठवाले छः पुत्र उत्पन्न हुए:-वितथ, सुहोतृ, सुहोत्र, सुहवि, सुयजु (लम्भस्फिक, प्रलंबोष्ठ ), लम्वे दाँतवाले (दंष्टिन ), लम्बे एवं ऋचीक (म. आ. ८९.१८-२१.)।
नखवाले (नखिन् ), स्थूल शरीरवाले (स्थूलपिंडक.), लम्बी ३. एक देवगंधर्व, जो अर्जुन के जन्मोत्सव में उपस्थित भौंहोंवाले (बभ्रुव), धुंघराले खुरदरे केशवाले (हरिकेश, था (म. आ. १२२.५८)।
मुञ्जकेश), नीललोहित एवं पिंगल वर्णवाले, एवं टिगने भुव-(स्वा. नाभि.) एक राजा, जो विष्णु के शरीरवाले होते थे। ये सबल, संगीतविरोधी, सर्प का अनुसार, प्रतिहवं राजा का पुत्र था।
यज्ञोपवीत धारण करनेवाले, तथा विभिन्न रंगबिरंगे लेपों भुवत-मगध देश के सुव्रत राजा के नाम के लिए से अपने शरीर को रंगानेवाले होते थे। ये शिव की सभा उपलब्ध पाठभेद (सुव्रत ४. देखिये)।
| में उपस्थित रहनेवाले, हाथों में खोपड़ी धारण करनेवाले भवन-एक देव, जो कश्यप एवं सुरभि का पुत्र था। लोग थे, जो केशों को मुकुट की भाँति बना कर बाँधते थे..
२. एक महर्षि, जो शरशय्यापर सोये हुए भीष्म से | ये नग्नावस्था में रहते थे, तथा कभी कभी विचित्र प्रकार मिलने आया था (म. अनु. २६.८)।
के वस्त्रों के साथ हाथी के चर्म को भी धारण करते थे। , ३. एक सनातन विश्वेदेव (म. अनु. ९१.३५)। इनके हथियार शल, धनु, निषंग, वरुथ तथा असि थे। ४. एक देव, जो भृगु एवं पौलोमि का पुत्र था। ये 'उर्ध्वरेतस्' अर्थात ब्रह्मचर्यपालन करनेवाले थे। .
भुवन आप्त्य--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०. | इनमें विवाह पद्धति न होने के कारण, इनकी पत्नियों न १५०)।
होती थी। इनके सर्वसाधारण गुणों से ही इनके कुछ गण भुवना--बृहस्पति की भगिनी, जो अष्टवसुओं में हुए थे, जिनके नाम इस प्रकार थे-शूलधर, कृत्तिवास, . से प्रभास नामक वसु की पत्नी थी। इसके पुत्र का नाम | कपिर्दिन्., कपर्दिन् , कालिन् , मुंजकेश, नीललोहित विश्वकर्मन् था (ब्रह्मांड. ३.३.२१-२९)।
आदि। भुवन्मन्यु (भुवमन्यु )--( सो. पूरु.) पूरुवंशीय ये पूर्वकाल में अत्यंत जंगली थे. किन्तु असुर एवं देवों . भवन्मन्यु राजा के लिए उपलब्ध पाठभेद ।। के साथ सम्बन्ध आने पर, ये पूर्व से काफ़ी सुधर गये।
भूत--एक प्राचीन भारतीय मानवजाति का सामूहिक | असुरों के सम्पर्क में आ कर, इन्होंने युद्धकला एवं राजनाम । पुराणों में मानवजाति समूह के चार प्रकार कहे नीति सीखी, तथा अपने प्रकार की एक समाजव्यवस्था गये हैं, जो निम्न हैं-(१) धर्मप्रजा, जो धर्मऋषि स्थापित की। . से उत्पन्न हुयी थी। (२) ईश्वरप्रजा, जो ईश्वर से पुराण के निर्देशों से प्रतीत होता है कि, स्वायंभुव उत्पन्न हुयी थी। (३) काश्यपीयप्रजा, जो कश्यप ऋषि मन्वन्तर के पूर्वकालीन युग में ये भारतवर्ष में निवास से हुयी थी । (४) पुलहप्रजा, जो पुलह ऋषि से उत्पन्न | करते थे। उस समय इनका निवासस्थान हिमालय पर्वत हुयी थी। उनमें से भूतयोनि के लोग पुलह प्रजा में से के उत्तर भाग में तथा उसके निकटवर्ती प्रदेशों में था। माने जाते हैं (ब्रह्माण्ड. १.३२.८८-९८२.३.२-३४; ये भारत के सर्व प्राचीन आदिवासी माने जाते हैं।
| असुरों एवं भूत गणों के बीच काफी लड़ाई चलती रही। जन्म-ब्रह्माण्ड के अनुसार, इन लोगों की उत्पत्ति भूत- अन्त में ये उनके हमलों से अपने को बचाने के लिए, तत्त्व से हुयी थी, एवं ये कपिशवीय थे। इनका खाद्यपदार्थ विन्ध्यपर्वत की ढालों तथा घाटियों में रहने आये। 'पिशित' था (ब्रह्माण्ड २.८.३९-४०)। इनके जन्म की भूतनायक-पुराणों में रुद्र को भूतों का राजा माना कथा ब्रह्माण्ड में निम्न प्रकार दी गयी है । ब्रह्मा ने नील है। उस रूप में रुद्र को 'भूतनायक' एवं ' गणनायक,' लोहित रुद्र को प्रजा उत्पन्न करने के लिए कहा, तब उसने तथा भूतों को 'रुदानुचर' एवं : भवपरिषद्' कहा गया
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