Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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प्राचीन चरित्रकोश
संपाति
लगा । अपने भाई को नीचे गिरते हुए देख कर, इसने उसकी रक्षा के लिए अपने पंख फैलाउस पर छाया की
इस कार्य में सूर्यताप के कारण इसके पंख दग्ध हो गये, एवं यह एवं जटायु घायल हो कर पृथ्वी पर गिर पड़े। इन में से कटायु बनस्थान में, एवं यह विध्य पर्वत के दक्षिण में निशाकर ऋषि के आश्रम के समीप गिर पड़े। अपने पंख दग्ध होने के कारण, यह अत्यंत निराश हुआ, एवं आत्मत्राव के विचार सोचने लगा। किंतु निशाकर मुनि ने इसे इन विचारों से परावृत किया एवं भविष्य काल में रामसेवा का पुण्य संपादन कर, जीवन्मुक्ति प्राप्त कराने की यह इसे दी।
सीताहरण - यह एवं इसका पुत्र सुपार्श्व कितने विशालकाय एवं बलशाली थे, इसका दिग्दर्शन करनेवाली एक कथा 'बादमीकी रामायण' में प्राप्त है। सीता का हरण कर रायण जाट रहा था, उस समय उसे पकड़ पर उसका भक्ष्य बनाने का प्रस्ताव इसके पुत्र सुपार्श्व ने इसके सामने रखा। इसके द्वारा संमति दिये जाने पर, मुवाच ने सुपार्श्व रावण पर हमला कर उसे पकड़ लिया । किन्तु रावण के द्वारा अत्यधिक अनुनय-विनय किये जाने पर उसे छोड़ दिया।
जटायुवध – एक बार यह अपनी गुफा में बैठा था, उस समय सीता की खोज के लिए दक्षिण दिशा की ओर जाने वाले अंगदादि बानर इसकी गुफा में आये उन्हीं के द्वारा रायण के द्वारा किये गये अपने भाई जटावु 常 बथ की वार्ता इसे रात हुई। इस पर इसने सीता का हरण रावण के द्वारा ही किये जाने की वार्ता उन्हें कह सुनायी, एवं पश्चात् अंगद के कंधे पर बैठ कर यह दक्षिण समुद्र के किनारे गया। वहाँ इसने अपने भाई जटायु को दर्पण प्रदान किया। पश्चात् निशाकर ऋषि के घर के कारण इसे अपने पंख पुनः प्राप्त हुए (वा. रा. कि. ५६-६३; म. व. २६६.४८-५६; अ. रा. कि. ८ ) ।
परिवार - इसके सुपार्श्व, बभ्रु, एवं शीघ्रग नामक तीन पुत्र थे (पद्म. सृ. ६; मत्स्य. ६.३५) । इसके एक पुत्र एवं एक कन्या होने का निर्देश वायु में प्राप्त है, किन्तु वहाँ उनके नाम अप्राप्य हैं (वायु. ६९.३२७, ७०.८ - ३६ ) । इसके अनेक पुत्र होने का निर्देश ब्रह्मांड में प्राप्त है ( ब्रह्मांड. ३.७.४४६ ) ।
सम्राज्
४. रावणपक्ष का एक असुर काहन के समय हनुमत् ने इसका घर जलाया था ( वा. रा. मुं. ६) ।
५. एक कौरवपक्षीय योद्धा, जो द्रोण के द्वारा निर्मित गरुडव्यूह के हरयस्थान मे खड़ा था ( म. हो १९.१९६ द्रो पाठ' संपाति ) ।
संपार - ( सो. कुरु) एक राजा, जो विशु एवं मत्स्य के अनुसार समर राजा का पुत्र था (ना ४९.५४ ) ।
संप्रिया - विदूरथ राजा की पत्नी, जो मगधराज की कन्या थी (म. आ. १९०.४२ ) ।
संबंधि-- अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ।
संभव -- (सो. ऋक्ष ) एक राजा, जो मत्स्य के अनुसार सर्व राजा का पुत्र था (मत्स्य ५०.३१.) । बायु में इसे नमस् कहा गया है।
संभूत -- दक्षसावर्णि मन्वंतर का एक देवगण ।. अनुसार त्रसदस्यु राम का पुत्र एवं अनख्य राजवा २. (सु. इ. ) एक राजा, जो विष्णु एवं वायु के पिता था ( वायु ८८. ७४-७५ ) । मत्स्य में इसे संभुति कहा गया है।
संभूति-चाशुष मन्दंतर के अजित नामक अंचार की माता, जिसके पति का नाम वैराज था ।
२. दक्ष की कन्या, जो मरीचि ऋषि की पत्नी थी। इसके पुत्र का नाम पूर्णमास था (पायु, १०.२७) ।
३. जयद्रथ राजा की पत्नी, जिसके पुत्र का नाम विजय था ( भा. ९.२३.१२) |
४. रैवत मन्वंतर के मानस नामक अवतार की माता ( विष्णु ३.१.४० ) ।
५ (सु.) एक राजा, ओ मुझ के पुत्रों में से जो वसुदा एक था ( [मत्स्य. १२.२६ ) । पद्म में इसे दुः । एवं नर्मदा का पुत्र कहा गया है। इसके पुत्र का नाम त्रिधन्वन् था (पद्म. सृ. ८ ) ।
संमर्दन -- वसुदेव एवं देवकी के पुत्रों में से एक ( भा. ९.२४.५४ ) ।
रण में
संमित एक मरुतु, जो मस्ती के समाविष्ट था ( ब्रह्मांड. ३.५.९७ )।
समिति-- उत्तम मन्वंतर के सप्तर्षियों में से एक । संमोद -- एक असुर, जो हिरण्याक्ष के युद्ध में वायु
२. किंवा नगरी का एक वानर ( वा. रा. कि. के द्वारा मारा गया ( पद्म. सृ. ७५ ) । ३३.१० ) । सम्राज् - - ( स्वा. प्रिय. ) एक राजा, जो चित्ररथ २. विभीषण का एक अमात्य ( वा. रा. सु. ३७ ) | एवं ऊर्जा का पुत्र था। इसकी पत्नी का नाम उत्क
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