Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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सहदेव
प्राचीन चरित्रकोश
सहदेव
राजा ने इस
कससे संधि की।
पौरवश्वका
की स्तुति की, एवं उसे संतुष्ट किया । पश्चात् अग्नि की ही ११-१२, भी. २३.१६)। रथयुद्ध में यह अत्यंत सूचना से नील राजा ने इससे संधि की।
निष्णात था (म. उ. १६६,१८)। द्रोण के सेनापत्य - आगे चल कर सहदेव ने त्रैपुर एवं पौरवेश्वर राजाओं | काल में इसने उस पर आक्रमण करना चाहा; किन्तु उस को परास्त किया। पश्चात् सुराष्ट्र देश के राजा कौशिका- | समय कर्ण ने इसे परास्त किया (म. द्रो. १४२.१३)। चार्य आकृति राजा को इसने परास्त किया, एवं यह कुछ अत में अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार इसने शकुनि का व काल तक उस देश में ही रहा।
| किया (म. श. २७.५८)। पश्चात् इसने पश्चिम समुद्र के तटवर्ति निम्नलिखित भारतीय युद्ध के पश्चात्-युधिष्ठिर के हस्तिनापुर का देशों पर आक्रमण कियाः- शूपारक, तालाकट, दण्डक, राज्याभिषेक किये जाने पर, उसने इस पर धृतराष्ट्र की समुद्रद्वीपवासी, म्लेच्छ, निषाद, पुरुषाद, कर्णप्रावरण, देख काल का कार्य सौंप दिया (म. शां. ४१.१४)। नरराक्षसयोनि, कालमुख, कोलगिरि, सुरभिपट्टण, ताम्रद्वीप, | पाण्डवों के महाप्रस्थान के समय, द्रौपदी के पश्चात् रामकपर्वत, तिमिंगल।
| सर्वप्रथम इसका ही पतन हुआ। इसे अपनी बुद्धि का सहदेव के द्वारा किये गये पराक्रम के कारण, निम्न- | अत्यधिक गर्व था, जिस कारण इसका शीघ्र ही पतन हुआ लिखित दक्षिण भारतीय देशों ने बिना युद्ध किये ही, (म. महा. २.८; भा. १.१५.४५)। मृत्यु के समय केवल दूतप्रेषण से ही पाण्डवों का सार्वभौमत्व मान्य इसकी आयु १०५ वर्षों की थी (युधिष्ठिर देखिये)। किया:- एकपाद, पुरुष, वनवासी, केरल, संजयंती, परिवार--स की चार कुल पत्नियाँ थी:-१.द्रौपदी पाषंड, करहाटक, पाण्ड्य, द्रविड, उड़, अंध्र, तालवन, (म. आ. ९०.८१); २. विजया, जो इसके मामा कलिंग, उष्ट्रकणिक, आटवी पुरी, यवनपुर।
मत्स्यनरेश शल्य की कन्या थी (म. आ. ९०.८७); इस प्रकार दक्षिण भारत के बहुत सारे देशों पर ३. भानुमती. जो भानु राजा की कन्या थी (ह. बं. २.९०. अपना आधिपत्य प्रस्थापित करने के बाद इसने लंकाधिपति | ७६); ४. मगधराज जरासंध की कन्या (म. आश्र.३२. विभीषण की ओर अपना घटोत्कच नामक दूत भेजा, एवं
१२)। उससे भी करभार प्राप्त किया। पश्चात् दक्षिण दिग्विजय
___ इसके कुल दो पुत्र थे :-१. श्रुतकर्मन् , जो द्रौपदी में प्राप्त किया गया सारा करभार ले कर, यह इंद्रप्रस्थ
से उत्पन्न हुआ था (म. आ. ९०.८२); २. सुहोत्र, जो नगरी में लौट आया, एवं सारी संपत्ति इसने युधिष्ठिर को
इसे विजया से उत्पन्न हुआ था (म. आ. ९०.८७)। अर्पित का (म. स. २८)। राजसूय यज्ञ समाप्त होने पर,
ग्रन्थ--इसके नाम पर निम्नलिखित ग्रंथ प्राप्त है।अन्य पाण्डवों के समान इसने भी कृष्ण की अग्रपूजा भी
१. व्याधिसंधविमर्दन; २. अग्निस्तोत्र; ३. शकुनपरीक्षा। की (म. स. ३३.३०; भा. १०.७५.४)। .यूतक्रीडा एवं वनवास-युधिष्ठिर के द्वारा पाण्डवों
__ सहदेव वार्षागिर-एक राजा, जिसे ऋग्वेद के एक का सारा राज्य यूतक्रीड़ा में हार दिये जाने पर, इस सूक्त के प्रणयन का श्रेय दिया गया है (ऋ. १.१००)। आप्रत्प्रसंगके जिम्मेदार शकुनि को मान कर इसने उसके
इसने रुज्राश्व, भयमान, सुराधस् एवं अंबरीष नामक अपने वध करने की प्रतिज्ञा की (म. स. ६८.४१)।
भाइयों के साथ इंद्र की स्तुति की थी, जिस कारण यह पाण्डयों के अज्ञातवास में, तंति पाल नाम धारण कर
शिम्यु एवं दस्यु नामक अपने शत्रु पर विजय प्राप्त कर यह विराट नगरी में रहता था। यह उत्कृष्ट अश्वचिकि- |
सका (ऋ. १.१००.१७-१८)। त्सक था (म. वि. ३.७)। इस कारण विराट की अश्व- सहदेव साञ्जय--एक राजा, जो सोम की एक विशिष्ट शाला में अश्वसेवा का काम इसने स्वीकार किया। परंपरा में से सोमक साहदेव्य नामक आचार्य का शिष्य था अज्ञातवास में इसका सांकेतिक नाम ' जयद्बल' था (म. (ऐ. ब्रा. ७.३-४)। एक धर्मप्रवण राजा के नाते वामदेव वि. ५.३०)।
के द्वारा इसकी स्तुति की गयी थी। इसका सही नाम भारतीय युद्ध में-इस युद्ध में इसके रथ के अश्व 'सुप्लन् सार्जय' था, किन्तु 'दाक्षायण' नामक यज्ञ करने पर तित्तिर पक्षी के रंग के थे, एवं इसके ध्वज पर हंस का | इसने ' सहदेव सार्जय' नाम धारण किया (श. बा.२. चिह्न रहता था। इसके धनुष्य का नाम 'अश्विन,' एवं | ४.४.४)। ऋग्वेद एवं ऐतरेय ब्राह्मण में सोमक साहदेव्य शंख का नाम 'मणिपुष्पक' था (म. द्रो. परि. १.५. | नामक आचार्य के साथ इसका निर्देश प्राप्त है (ऋ. ४.
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