Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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सौमायन
प्राचीन चरित्रकोश
सौमायन--बुध नामक आचार्य का पैतृक नाम, जो सौश्रति--दुर्योधनपक्षीय एक राजा, जो त्रिगर्तराज उसे सोम का वंशज होने के कारण प्राप्त हुआ था (पं. सुशर्मन् का भाई था। भारतीय युद्ध में अर्जुन ने इसका ब्रा. २४.१८.६)।
वध किया (म. क. १९.१०)। सौमक-विश्वामित्र कुलोत्पन्न एक गोत्र कार । - सौश्रोमतेय-आषाढि नामक आचार्य का मातृक नाम, सौम्य--एक पितरविशेष (भा. ४.१.६३)। जो उसे 'सुश्रीमता' का वंशज होने के कारण प्राप्त हुआ
२. ( सो. क्रोष्टु.) एक यादवराजा, जो मत्स्य के होगा (श. ब्रा. ६.२.२.१.३७) । अनुसार रुपद् राजा का पुत्र था।
सौषद्मन--विश्वन्तर नामक आचार्य का पैतृक नाम, ३. बुध ग्रह का पैतृक नाम ।
जो उसे सुपद्मन् का वंशज होने के कारण प्राप्त हुआ था सौयवसि-अजीगत ऋषि का पैतृक नाम (ऐ. बा. (ऐ. ब्रा. ७.२७.१; ३४.७)। ७. १५.६; सां. श्री. १५.१९.२९)।
सौसुक--विश्वामित्रकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । सौर--भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार।
सोह--भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। सौरभेय- एक ऋषि, जो दीर्घतमस् ऋषि का गुरु था
सौह सोक्ति--भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । (म. आ. ९८.१०३८* ; पंक्ति १-२)।
सौहोत्र--एक पैतृक नाम, जो अजमिहळ एवं पुरुसौरमेयी-एक अप्सरा, जो वर्गा नामक अप्सरा।
मिहळ नामक आचार्य बंधुओं के लिए प्रयुक्त किया गया । की सखी थी, एवं एक ब्राह्मण के शाप के कारण ग्राह
है (ऋ. ४.४३-४४)। बनी थी । आगे चल कर अर्जुन ने इसका ग्राहयोनि से
स्कंद--देवों का सेनापति, जो तारकासुर का वध करने उद्धार किया (म. आ. २०८.१९; स. १०.११)।
के लिए इस पृथ्वी पर अवतीर्ण हुआ था। सात दिनों सौरि-भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार।
की आयु में ही इसने तारकासुर का वध किया। पुराणों - सौर्य--एक पैतृक नाम, जो निम्नलिखित वैदिक सूक्त- में सर्वत्र इसे शिव एवं पार्वती का, अथवा अग्नि का पुत्र द्रष्टाओं के लिए प्रयुक्त किया गया है:-१. अभितपस्। माना गया है, एवं इसे 'छः मुखोंवाला' (षण्मुख) कहा (ऋ. १०.३७); २.धर्म. (ऋ. १०.१८१.३);३. चक्षुस्। गया है।
.१०.१५८); ४. विभ्राज् (ऋ. १०.१७०)। जन्मकथा--इसके जन्म के संबंध में विभिन्न कथाएँ
सौर्यायणिन् गार्ग्य-एक आचार्य, जो पिप्पलाद के महाभारत एवं पुराणों में प्राप्त हैं । ब्रह्मांड के अनुसार, पास 'स्वप्नविद्या' के संबंध में प्रश्न पूछने गया था | एकबार शिव एवं पार्वती जब एकान्त में बैठे थे, उस (प्र. उ. १.१.४.१)।
समय इंद्र ने अष्टवसुओं में से अनल नामक अग्नि के द्वारा सौवर्चनस्--संश्रवस् नामक आचार्य का पैतृक नाम | उन के एकान्त का भंग किया । इस कारण शिव के वीय का (तै. सं. १.७.२.१)।
आधा भाग भूमि पर गिर पड़ा। अग्नि के इस औद्धत्य सौवीर--सुवीर शैव्य नामक राजा का नामान्तर। | के कारण पार्वती अत्यंत क्रुद्ध हुई, एवं उसने अग्नि को शाप
२. एक लोकसमूह, जिसका निर्देश सिंधु लोगों के दे कर शिव का वीर्य धारण करने पर उसे विवश किया। साथ प्राप्त है । इन लोगों का विपुल नामक राजा अर्जुन शिव के वीर्य को अग्नि ज्यादा समय तक धारण न के द्वारा मारा गया था (म. आ. परि. १.८०.४५)। कर सका, इसलिए उसने उसे गंगा को दे दिया। गंगा
सौवीरी--सुवीर राजा की कन्या, जो मरुत्त आविक्षित ने भी उसे कुछ काल तक धारण कर भूमि पर छोड़ दिया। राजा की पत्नी थी (मार्क. १२८)।
आगे चल कर उसी वीर्य से स्कंद का जन्म हुआ (ब्रह्मांड. २. पूरुवंशीय मनस्यु राजा की पत्नी (म. आ. ८९. | ३.१०.२२-६०; वायु. ११.२०-४९)। ७)। पाठभेद-'शूरसेनी'।
महाभारत में इस ग्रंथ में इसकी जन्मकथा कुछ भिन्न सौवेष्ट--अंगिरस् कुलोत्पन्न एक गोत्रकार । प्रकार से दी गई है। एक बार सप्तर्षियों के यज्ञ में, अग्नि
सौश्रवस-उपगु नामक आचार्य का पैतृक नाम सप्तर्षियों के पत्नियों पर कामासक्त हुआ, एवं अपनी (पं. वा. १४.६.८)। इसी के वंशज आगे चल कर अप्रिय पत्नी स्वाहा को छोड़ कर उनसे रमण करने के 'सोश्रवस' नाम से सुविख्यात हुए (का. सं. १३.१२)। लिए प्रवृत्त हुआ । अग्निपत्नी स्वाहा को यह ज्ञात होते ही . सौश्रवस काण्व-एक आचार्य (का.सं.१३.१२)। वह अरुंधती के अतिरिक्त अन्य छः सप्तर्षि पत्नियों में
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