Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
क्षत्रवृद्ध वंश
प्राचीन चरित्रकाश
द्विमीढ़ वंश
है। किन्तु इस वंश में उत्पन्न हुए दिवोदास एवं प्रतर्दन | दो पुत्र थे, जिनमें से तितिक्षु ने पूर्व भारत में स्वतंत्र राजा पौरववंशीय सुहोत्र राजा से काफी पूर्वकालीन थे. राजवंश की स्थापना की। यह बात ध्यान में रखते हुए यह जानकारी अनैतिहासिक तुर्वसु वंश--ययाति राजा के तुर्वसु नामक पुत्र के प्रतीत होती है।
द्वारा इस वंश की स्थापना हुई, जिसमें निम्नलिखित राजा इस वंश के राजपुरोहित भरद्वाज थे । हैहय राजाओं प्रमुख थे:-- तुर्वसु-वह्नि-गर्भ-गोभानु-त्रिसानु-करंधम से इस वंश के लोगों का अनेकानेक पीढ़ियों तक युद्ध चलता मरुत्त । मरुत्त राजा को कोई पुत्र न होने के कारण, रहा।
उसने पूरुवंशीय राजा दुष्यन्त को गोद में लिया, एवं इस काशीदेश के राजाओं के निम्नलिखित राजाओं का | प्रकार तुर्वसु वश पूरुवंश में सम्मिलित हुआ। निर्देश पौराणिक साहित्य में पाया जाता है | किन्तु क्षत्र- किंतु कई पुराणों में इनकी एक दाक्षिणात्य शाखा का वृद्धवंश की नामावलि में उनका नाम अप्राप्य है :--१. निर्देश प्राप्त है, जिसे पांडव चोल, केरल, आदि राजवंशों की अजातरिपु; २. धृतराष्ट्र वैचित्र्यवीय; ३. सुबाहु; ४. स्थापना का श्रेय दिया गया है (पन, उ. २९०.१-२)। सुवर्णवर्मन् ;५.होमवाहन; ६. ययाति; ७. अंबा का पिता। पार्गिटर के अनुसार, किसी तुर्वसु राजकन्या के द्वारा
क्षत्रवृद्ध के अन्य एक पुत्र का नाम प्रतिक्षत्र था, जिसने इन दाक्षिणात्य वंशों की स्थापना की गई होगी। - भी अपने स्वतंत्रवंश की स्थापना की । प्रतिक्षत्र के इस वंश
| इस वंश की जानकारी विभिन्न पुराणों में प्राप्त है में उत्पन्न हुए १०-१३ राजाओं का निर्देश पौराणिक
(ब्रह्मांड, ३.७४.१-४; वायु. ९९.१-३, भा. ९.२३. साहित्य में प्राप्त है। किंतु उनका काल एवं राज्य आदि
१६-१८; मत्स्य. ४८.१-५)। अग्नि में गांधार लोगों को के संबंध में निश्चित जानकारी अप्राप्य है।
इसी वंश में शामिल किया गया है, किंतु गांधार लोग चेदि अथवा चैद्य वंश-(सो. कुरु.) इस वंश की | तुर्वसवंशीय न होकर द्वावंशीय थे। स्थापना कुरुवंशीय चैद्योपरिचर वसु राजा. के प्रत्यग्रह
वैदिक साहित्य में कुरुंग को तुर्वसुवंशीय कहा गया नामक पुत्र के द्वारा की गयी थी। कई अभ्यासकों के
है। इसी साहित्य में इसे म्लेंच्छों का राजा कहा गया है। अनुसार, इस वंश का संस्थापक विदर्भपुत्र चिदि था । किंतु
हरिवर्मन् नामक एक तुर्वसुवंशीय राजा का निर्देश कई इन दोनों राजाओं के जीवनचरित्र में 'चैद्य' वंश की
ग्रंथों में प्राप्त है, किन्तु इसके वंश के वंशावलि में जानकारी अप्राप्य है।
उसका नाम अप्राप्य है। इस बंश का सब से सुविख्यात राजा शिशुपाल था, जो
ह्य वंश (सो. द्रुह्यु.) ययाति राजा के द्रुह्य नामक कृष्ण एवं पाण्डवों का समकालीन था, निम्नलिखित
पुत्र के द्वारा स्थापना किये गये इस वंश का विस्तार प्रायः राजाओं का निर्देश पौराणिक साहित्य में 'चैद्य' नाम से किया
पश्चिमोत्तर भारत में था (ब्रह्म. १३.१४८; ह. वं.१.३२; गयां है; किन्तु चैद्य वंश की वंशावलि में उनका निर्देश
मत्स्य. ४८.६-१०, विष्णु. ४.१६; भा. ९.२३.१४-१५ अप्राप्य है:--१. दमघोष, जिसके पुत्र का नाम धृष्टकेतु,
'ब्रह्मांड. ३.७४.७; वायु. ९९.७-१२)। एवं पौत्र का नाम शिशुपाल सूनीथ था; २. कशु चैद्य |
द्रुह्यु राजा के बभ्रु एवं सेतु नामक दो पुत्र थे, जिनके ३.कौशिक ४. चित्र; ५. चिदि कौशिकपुत्र; ६. दण्डधार;
अंगारसेतु, गांधार, धृत, प्रचेतस् आदि वंशजों के द्वारा इस ७. देवापि ८. शलभ; ९. सिंहकेतु; १०.हरिः ११. जह्न।
| वंश का विस्तार हुआ। पौराणिक साहित्य के अनुसार, - जह्न वंश-सुविख्यात कुरु वंश का नामान्तर ।
प्रचेतस् के वंशजों ने भारतवर्ष के उत्तर में स्थित म्लेच्छ ज्यामघ वंश--यादववंश की एक उपशाखा, जो | देशों में नये राज्यों का निर्माण किया। परावृत राजा के पुत्र ज्यामघ के द्वारा स्थापित की गयी। इसी वंश का जो वर्णन ब्रह्म एवं हरिवंश में प्राप्त है, थी (भा. ९.२४; वायु. ९५; ब्रह्म. १५.१२-२९; विष्णु. वहाँ गांधार के बाद उत्पन्न हुए राजा गलती से अनु४.१६; भा. ९.२४)।
वंशीय राजा बतलाये गये है। इन लोगों का निर्देश वैदिक तितिक्ष वंश-(सो. अनु.) पूर्व हिंदुस्थान का एक | साहित्य में भी प्राप्त हैं। राजवंश, जिसका विस्तार आगे चल कर पूर्व हिंदुस्थान | द्विमीढ़ वंश-(सो. द्विमीढ़.) पूरुवंशीय हस्तिन् राजा में स्थापित हुए अंग, वंग आदि आनव वंशों में हुआ। के अजमीढ एवं द्विमीढ़ नामक दो पुत्र थे, जिनमें से अनुवंशीय सम्राट महामनस् को उशीनर एवं तितिक्षु नामक | अजमीढ हस्तिनापुर का राजा हो गया, एवं द्विमीढ ने स्वतंत्र
११४७