Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna

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Page 1223
________________ सप्तद्वीपा पृथ्वी विषयसूचि हीनकुली । पुष्करद्वीप (स्वायंभुव) १०९६; इन द्वीपों का संभाव्य । सुराज्य--अश्वपति केकय ४७; कार्तवीर्य १३७. आधुनिक स्थान (स्वायंभुव) १०९६ । जनमेजय १. २२१; जालंदर २३४ । समुद्र--लौहित्य (सलिलार्णव) ७०७ । __ सूत--पुराणकथन एवं निवेदन का कार्य करनेवाल समुद्रमंथन से निकले हुए रत्न-४९८ । | एक लोकसमूह ७७४; रोमहर्षण सूत ७७२; सौति रोमहर्षण सर्पसत्र-जनमेजय सर्पसत्र (प्रथम) २२१; जनमेजय सुत १०८७; सर्पसत्र (द्वितीय)२२१; मरुत्त सर्पसत्र (मरुत्त) ६२६; सेनागणनापद्धति--भारतीय युद्धकालीन (अक्षौहिणी भामिनी ५५६ । सात्वत धर्म–१०३४; सात्वत धर्म का उपदेश १०१७; गण, गुल्म, पत्ती, सेनामुख, वाहिनी, पृतना, चनु आनीकिनी) ७०३। साम--वत्सप्रि भालंदन ७९४; । --सामगायन से ईप्सित वस्तुओं का लाभ-गाय (मेधातिथि | सौर देवता--आदित्य ५८; पूषन् ४४६; भग ५३२ काण्व; स्वर्ग (शंमद) ९४७; वैभव की प्राप्ति (गोतम) १९३; | विवस्वत् ८६२, विष्णु ८७९; सवितृ १०२६; सूर्य १०८१ स्वरूपवर्णन--दुर्वासस् २२६; धन्वंतरि ३१५ दिवोदास अतिथिग्व २०३; सिंधुक्षित् १०४२ स्वयंवर-कमा (विमद) ८५६; कुन्ती १४६; | नारद ३६१; भूत ५२०; यक्ष ६६९; युधिष्ठिर ६९६ केशिनी १६६; दमयन्ती २१५; द्रौपदी ३१०; मान्यवती रक्षस् ७१२; राम दाशरथि ७२६; रावण दशग्रीव ७४६ ६४५; वैशालिनी ९१५; शशिकला (सुदर्शन १०.) रुद्र-शिव ७५५, लक्ष्मी ७८१; वरुण ७९९; वायु ८२६ १०५५, सीता १०४४। वालखिल्य ८२९; विश्वकर्मन ८६६, विश्वरूप त्रिशिर सायणकृत वैदिक अर्थ-नगरिन् जानश्रुतेय ३४०; त्वाष्ट्र ८६९; विष्णु ८७९; वृत्र ८९६; सवितृ १०२६ नमजित् गांधार ३४०; नमी साप्य ३४५, पणि ३८१ । सात्यकि (युयुधान) १०३२, सीता वैदेही १०४६ सावित्राग्नि--देवभाष्य श्रौतर्ष २९३, प्लक्ष दय्यांपति हयग्रीव ११०३। सृष्टि का निर्माण--मैथुनज सृष्टि का प्रारंभ (दा ४८५। सिकंदरकालीन भारतवर्ष के नगर- अग्रोदक प्राचेतस प्रजापति )२५९; प्रजापति ४६२-४६३; ब्रह्मन् ११३२; मस्सग ११३३, सांगल (सांकल) ११३३: ५२८-५२९ । सृष्टिप्रलय-मनु वैवस्वतकालीन सृष्टिप्रलय ६१ सिकंदरिया ११३५, पुष्करावती ११३४; पातानप्रस्थ (११३४); रोरुक (१९३५)। विभिन्न साहित्यों में जलप्लावनकथा ६११; प्रलयोर __ --नदियाँ-वितस्ता (जेहलम) ११३३; व्यास (बिआस) मानव समाज का आदि पुरुष ६११, कालनिर्णय ६१: ११३३; गौरी ११३४; असिनी १९३४; इरावती ११३४; हिंदी साहित्य में जलप्लावनकथा ६१२ । सेतुमंत (आधु. सेलमंद) ११३५ । । हीनकुलीनत्व-कर्ण ११८; विदुर ८४४ । १२०२

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