Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna

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Page 1216
________________ निर्वाण प्राचीन चरित्रकोश ब्राह्मण जातिसमूह निर्वाण--अश्वत्थ वृक्ष के नीचे निर्वाण (कृष्ण पौराणिक साहित्य-परिचय ७२५-९२७; पुराणों का १६२, कुशीनगर के शालवन में महापरिनिर्वाण (गौतम आद्यप्रवर्तक (व्यास) ९२५, आद्यनिवेदक-रोमहर्षण बुद्ध) ११२८; पृथ्वी के विवर में प्रवेश (सीता) १०४५, सूत ७७२; विभिन्न प्रकार ९२५, चर्चित विषय ९२५, महाप्रस्थान के समय देहपतन (अर्जन, द्रौपदी, भीमसेन, | श्लोक-संख्या ९२५, वक्ता ९२५, महापुराणों की नकुल एवं सहदेव) ७०७; युधिष्ठिर के दृष्टि में दृष्टि | तालिका ९२६; उपपुराणों की नामावलि ९२६; देवतामिला कर निर्वाण (विदुर) ८४६; युद्धभूमि पर मृत्यु (कर्ण, | नुसार पृथक्करण ९२७; व्यास की पुराणशिष्यपरंपरा दुर्योधन, रावण) १२१, २८४; ७४७-७४८; योगिक | ९२७; निर्दिष्ट राजवंश ११३९-११५६; निर्दिष्ट राजा मार्ग से देहत्याग (बलराम) ४९५; वायुलोक से सूर्यलोक | ११६६; निर्दिष्ट ऋषिवंश ११६७।। में प्रवेश (शुक) ९७६; शरशय्या पर देहत्याग (भीष्म) पौराणिक नामों की व्युत्पत्ति-अगस्त्य४; अपोद (धौम्य) ५७७; सदेह स्वर्गारोहण (सत्यव्रत त्रिशंकु, युधिष्ठिर ) ३३३; आस्तीक ६५, गालव; (विश्वामित्र) ८७०; २५४-२५५, ७०७। । ८७१; वेंकटेश (वेंकटेश) ९७४। निवासस्थान--यम वैवस्वत ६७४; रावण दशग्रीव पूषन् ४४८; प्रातिसुत्वन् ४७०; बृहस्पति (लंका) ७३५, रुद्र-शिव.७५५; लक्ष्मी ७८२, लगध | ५१८; भृगु ५८५ मरुत् माण्ड ६४९; मिथि जनक ७८४; वरुण ८००, विवस्वत् ८६२, विष्णु ८७९; वृत्र; | ६५३; मुध्रवाच् ६६०; मेदिनी ६५२, यायावर ६९४, ९६; श्वेतकेतु औद्दालकि ९९५; मुंजय १०८३ । रावण ७४३; वरुण ८०१; विवस्वत् ८६३; विष्णु ८८१; . पक्षी---अरुण ३३; गरुड १८२-१८५; जटायु २१८ वृत्र ८९७; हनुमत् १०९९ ।। ता: २४४; भारुंड (पक्षीसमूह) ५५७; संपाति १०२१ । पौराणिक कथाओं का अन्वायार्थ-अहिल्या ५३; परशुपतंजलि का व्याकरणशास्त्र--३८३-३८५; शुद्ध राम जामदग्न्य ३९२; परिक्षित् ४०१; पितृकन्या ४२२; 'उच्चारण का महत्त्व ३८४, पूर्वाचार्य ३८४; टीकाकार पृथु वैन्य ४४९; बलि वैरोचन ४९७; बाण ५०५भगीरथ ३८४; महाभाष्य का पुनरुद्धार ३८५; अन्य ग्रन्थ ३८५। । ५३५; मत्स्य ६००; वराह ७९९; वरुण ८००, वामन .१२६; विवस्वत् ८६३; सत्यव्रत १०१२; सीता (भूमिजा) पाणिनि का व्याकरणशास्त्र--४०६-४०९; पूर्वाचार्य १०४३। ४०६; पाणिनि का समन्वयवाद; ४०८; लोकजीवन 'प्रतिग्रह ' का दोषारोप-(बुडिल आश्वतराश्वि) ४०८; पाणिनिकालीन · भूगोल ४०८; सिक्के ४०९ | परिमाणदर्शक शब्द ४०९; प्रमुख यज्ञ--द्वादशवर्षीय सत्र (नैमिषारण्य) ७३३; -पाणिनि की अष्टाध्यायी ४०७; अष्टाध्यायी के वार्तिक ब्रान् का यज्ञ (प्रभास क्षेत्र) ५२९; बलि वैरोचन का कार ४०९; अष्टाध्यायी के वृत्तिकार ४०९; पाणिनि के यज्ञ (भृगुकच्छ) ४९९ जनमेजय का सर्पसत्र ( हस्तिनाअन्य व्याकरणग्रन्थ ४०९। पुर) २१९-२२२ । पूर्वाचार्य--चाणक्य ( कौटिलीय अर्थशास्त्र) ८८८; ____प्राणिसृष्टि--कश्यप की संतान १२९; पक्षी-स्तंबमित्र पतंजलि (व्याकरण महाभाष्य) ३८३; पाणिनि ( अष्टा शाङर्ग १०९२; हाथी-ऐरावत १०२९सुप्रतीक १०६४; ध्यायी ) ४०६; ४०९; यास्क ( निरुक्त ) ६९४; -गाय-कामधेनु: (सुरमि) १०७२, नाग-धृतराष्ट्र ३२८; लाट्यायन (श्रौतसूत्र ) ७८६; वात्स्यायन ( कामसूत्र ) | वामकि ३८ ८२१ । प्राचीन कालगणनापद्धति-११६९-११७२, युगपृथ्वी का पहला राजा-पृथु वैन्य ४४९-४५१; | गणना पद्धति ११६९; ब्रह्मा का एक दिन ११६९; पृथ्वीदोहन ४४९; पृथु की राजप्रतिज्ञा ४५१ । आधुनिक उपपत्ति ११६९; मन्वन्तर कालगणनापद्धति -२. यम वैवस्वत ६७४ । । ११७०; कल्पों की नामावलि ११७१, सप्तर्षियुग की पृथ्वीदोहन--पृथु वैन्यकृत ४४९; पृथ्वीदोहन की | कल्पना ११७१ । अन्य कथाएँ ४५० । . ब्राह्मण जातिसमूह--जातूकर्ण्य ८०५, भृगु (भार्गवपौराणिक काल-व्याख्या ४०१, कलियुग का प्रारंभ | गण) ५८८; रथीतर ७१८; रहूगण ७२०; विभिंदुकीय ११५२। | ८५४; व्यश्व ९१४: हिरण्यकेशिन् १११२। ११९५

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