Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna

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Page 1172
________________ रम्भ वंश प्राचीन चरित्रकोश प्रियव्रत वंश रम्भ वंश-आयुपुत्र रम्भ के द्वारा स्थापन किया गया हैहय वंश (सो. सह.)--यदुराजा के सहस्रजित् वंश 'रम्भवंश' नाम से सुविख्यात है (भा. १०.१७.१०)। नामक पुत्र के द्वारा स्थापित किये गये इस राजवंश की इस वंश के संबंध में अन्य कोई भी जानकारी उपलब्ध जानकारी पौराणिक साहित्य में सर्वत्र प्राप्त है (ब्रह्मांड. नहीं है। ३.६९.३; वायु. ९४.१-१०; विष्णु. ४.११.३; भा. ९. वसुदेव वंश (सो. वसु.)-यादववंशांतर्गत देवमीढुष २३.२०-२८; ब्रह्म. १३.१५४; ह. वं. १.३३)। इस शाखा में से सूरपुत्र वसुदेव राजा का वंश 'वसुदेव वंश' | वंश का मुख्य राज्य मालवा में नर्मदा नदी के किनारे नाम से सुविख्यात है (ब्रह्म. १५.३०)। माहिष्मती नगरी में था, एवं उनकी वीतिहोत्र, शयाति, वासव वंश-कुरुवंशीय सुधन्वन् राजा के वसु नामक भोज, आनर्त (अवंती) एवं तुण्डिकेर (कुण्डिकेर ) ये पुत्र ने पूर्व हिंदुस्थान में स्थित यादवों का चेदि साम्राज्य पाँच शाखाएँ प्रमुख थी। हरिवंश एवं ब्रह्म के अनुसार, जीत लियो, एवं उसे अपने पाँच पुत्रों में बाँट दिया। वे भरत लोगों का अंतर्भाव भी हैहय समूह' में किया पाँच वंश वासव वंश नाम से सुविख्यात थे। जाता था। विदूरथ वंश (सो. विदू.)-सात्वतवंशांतर्गत भजमान ___ इनमें से प्रमुख राजा का नाम तालजंघ था। किन्तु .. शाखा में से विदूरथपुत्र राजाधिदेव से ले कर तमोजस् तक आगे चल कर वह सारे हैहय वंश की उपाधि बन गयी । के राजा विदरथवंशीय (सो. विद.) कहलाते हैं (यद भार्गव ऋषि इन लोगों के पुरोहित थे, एवं इनका उपास्य . देखिये)। . दैवत दत्त आत्रेय था। इसके अतिरिक्त वसिष्ठ, पुलस्त्य विष्णु वंश-यादववंशीय कृष्णवंश को वायु में विष्णु आदि ऋषियों से भी इनका घनिष्ठ संबंध था। वंश कहा गया है (वायु. ९६-९८)। परशुराम जामदग्न्य से इसका प्राणांतिक शत्रुत्व हुआ • वृष्णि वंश-यादववंशांतर्गत सात्वते राजा के वृष्णि | था, जिसने इन्हें जड़मूल से उखाड़ देने की कोशिश की नामक पुत्र का वंश वृष्णि नाम से सुविख्यात है (ब्रह्म. | थी। किन्तु अन्त में अपने इन प्रयत्नों में परशुराम १४.२-१५:३१, ह. वं. १.३४, भा. ९.२४.१२-१८; | असफल हुआ, एवं इनका अस्तित्व अबाधित रहा। यदुं देखिये)। इस वंश के निम्नलिखित राजा विशेष प्रख्यात . . सहस्रजित वंश (सो. सह.)--यदु राजा के पुत्र | थे:-कार्तवीर्य अर्जुन, एकवीर, कुमार, शशिबिंदु, भूत, सहस्र जित् के द्वारा प्रस्थापित किये गये 'हैहय वंश' शंख । इसी वंश में उत्पन्न हुआ वीतहत्य राजा राज्यभ्रष्ट का नामान्तर (हैहय वंश देखिये)। हो कर भृगुवंश का एक श्रेष्ठ ऋषि बन गया । इसी कारणं .. सात्वत वंश--यदुवंशांतर्गत इस वंश शाखा का | पौराणिक साहित्य में उसे राजा न समझ कर उसके वंशसंस्थापक सात्वत माना जाता है। इस वंश की भजमान, | शाखा की कोई भी जानकारी वहाँ नहीं दी गयी है। देववृध, अंधक एवं वृष्णि नामक चार शाखाएँ मानी | महाभारत में वीतहव्य से ले कर शौनक तक के वंश की जाती हैं (म. शां. ३३६.३१-४९)। सात्वत धर्म की जानकारी प्राप्त है । कई अभ्यासकों के अनुसार, वीतहव्य जानकारी भी महाभारत में प्राप्त है। ही हैहयवंश का अंतिम राजा माना गया है। . (३) स्वायंभुव मनु वंश (स्वा.) प्राचीन भारतखण्ड के ब्रह्मावर्त नामक प्रदेश में स्थित प्राप्त है ( भा. ४.८ )। वहाँ हविर्धान राजा के पुत्रों बर्हिष्मती नगरी का सर्वाधिक प्राचीन राजा स्वायंभुव मनु | तक इस वंश की जानकारी दी गयी है । इस वंश में ध्रुव, था. जिसका वंश 'स्वायंभुव मनु बंश' नाम से सुविख्यात | पृथु वैन्य आदि सुविख्यात राजा उत्पन्न हुए थे। है। इस वंश की उत्तानपाद एवं प्रियव्रत नामक दो नाभि वंश--(नामि.) स्वायंभुव मनुपुत्र प्रियव्रत शाखाएँ प्रमुख मानी जाती हैं। राजा के कनिष्ठ पुत्र नाभि का स्वतंत्र वंश विष्णुपुराण में उत्तानपाद वंश-(स्वा. उत्तान.)--स्वायंभुव मन दिया गया है (विष्णु. २.१)। के उत्तानपाद नामक ज्येष्ठ पुत्र के द्वारा प्रस्थापित किये प्रियव्रत वंश-(स्वा. प्रिय.)-स्वायंभुव मनु के गये उत्तानपाद वंश की सविस्तृत जानकारी भागवत में कनिष्ठ पुत्र प्रियव्रत के द्वारा प्रस्थापित किये गये इस ११५१

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