Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna

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Page 1187
________________ आंगिरस वंश पौराणिक ऋषिवंश भार्गव वंश ९७-१०८; मत्स्य. १९६)। इनमे से पहले दो ग्रंथों में | पूर्वातिथि । पार्गिटर के अनुसार, श्यावाश्व एवं बलगूतक इस वंशों की जानकारी दी गयी है, एवं अंतिम ग्रंथ में | ये दोनों एक ही व्यक्ति के नाम थे। इस वंश के ऋषियों की एवं गोत्रकारों की नामावलि दी | अत्रिऋषि के गोत्रकार--निम्नलिखित ऋषियों का गयी है। इस जानकारी के अनुसार, इस वंश की निर्देश आत्रेय वंश के गोत्रकार के नाते प्राप्त है:- १. स्थापना अथर्वन अंगिरस् के द्वारा की गयी थी। इस श्यावाश्व; २. मुद्गल (प्रत्वस् ); ३. बलारक (वाग्भूतक वंश के निम्नलिखित ऋषियों का निर्देश प्राप्त हैं:-१. ववल्गु); ४. गविष्ठिर (मत्स्य. १४५.१०७-१०८)। अयास्य आंगिरस, जो हरिश्चंद्र के द्वारा किये गये शुनः- काश्यप वंश--कश्यपऋषि के द्वारा प्रस्थापित किये शेप के बलिदान के यज्ञ में उपस्थित था; २. उशिज | गये इस वंश की जानकारी चार पुराणों में प्राप्त है ( वायु. आंगिरस एवं उसक तीन पुत्र उचथ्य, बृहस्पति एवं | ७०.२४-२९; ब्रह्मांड. ३.८.२८-३३; लिंग. १.६३.४९संवर्त, जो वैशाली के करंधम, अविक्षित् एवं मरुत्त ५५ कूर्म. १.१९.१-७)। इस वंश के ऋषियों एवं गोत्रआविक्षित राजाओं के पुरोहित थे; ३. दीर्घतमस् एवं | कारों की नामावलि मत्स्य में दी गयी है (मत्स्य.१९७)। भारद्वाज, जो क्रमशः उचथ्य एवं बृहस्पति के पुत्र थे। पौराणिक साहित्य में काश्यपवंश की वंशावलि निम्न इनमें से भरद्वाज ऋषि का शि के दिवोदास (द्वितीय) | प्रकार दी गयी है:-- कश्यप-वत्सार एवं असित-निध्रुव - राजा का राजपुरोहित था। दीर्घतमस् ऋषि ने अंग देश रैभ्य, एवं देवल। ये ही छः ऋषि आगे चल कर 'काश्यप में गौतम शाखा की स्थापना की थी; ४. वामदेव गौतमः | ब्रह्मवादिन्' नाम से सुविख्यात हुए। ५. शरद्वत् गौतम, जो उत्तरपंचाल के दिवोदास राजा के इस वंश के निम्नलिखित ऋषि विशेष सुविख्यात माने अहल्या नामक बहन का पति था; ६. कक्षीवत् दैर्घतमस जाते हैं:-- १. कण्व काश्यप, जो दुष्यंत एवं शकुंतला औशिज; ७. भरद्वाज, जो उत्तरपंचाल के पृषत् राजा का का समकालीन था; २. विभांडक काश्यप, जो ऋश्यशृंग ऋषि समकालीन था। | का पिता था; ३. असित काश्यप, जो देवल ऋषि का आत्रेय वंश--अत्रिऋषि के द्वारा स्थापित किये गये | पिता था; ४. धौम्य; ५. याज, जो द्रुपद राजा का इस वंश की जानकारी पौराणिक साहित्य में प्राप्त है | पुरोहित था। ( ब्रह्मांड. ३.८.७३-८६; वायु. ७०.६७-७८, लिंग. भार्गव वंश-भृगुषि के द्वारा प्रस्थापित किये गये १.६३.६८-७८)। पौरव राजवंश से संबंधित इस वंश | इस वंश की सविस्तृत जानकारी पौराणिक साहित्य में प्राप्त की जानकारी ब्रह्म एवं हरिवंश में प्राप्त है (ब्रह्म. १३.५- | है (वायु. ६५.७२-९६; ब्रह्मांड. ३.१.७३-१००; मत्स्य १४; है. वं. ३१.१६५८; १६६१-१६६८)। इस वंश १९५.११-४६)। इनमें से पहले दो ग्रंथों में भार्गववंश के ऋषि एवं गोत्रकारों की नामावलि मत्स्य में दी गयी है की सविस्तृत वंशावलि दी गयी है, एवं अंतिम ग्रंथ में (मत्स्य. १९७)। पौराणिक साहित्य में आत्रेय वंश के इस वंश के ऋषि एवं गोत्रकारों की नामावलि दी गयी है। आद्य संस्थापक अत्रि ऋषि एवं प्रभाकर को एक माना गया ____ महाभारत के अनुसार भृगु ऋषि के उशनस् शुक्र एवं है, एवं उसे सोम का पिता कहा गया है। च्यवन नामक दो पुत्र थे। उनमें से शुक्र एवं उसका परिवार दैत्यों के पक्ष में शामिल होने के कारण नष्ट ___ इस वंश के निम्नलिखित ऋषि विशेष सुविख्यात हुआ। इस प्रकारं च्यवन ऋषि ने भार्गव वंश की अभिमाने जाते हैं:- १. प्रभाकर आत्रेय (अत्रि ऋषि,) वृद्धि की। महाभारत में दिया गया च्यवन ऋषि का वंश जिसका विवाह पौरव राजा भद्राश्व (रौद्राश्व ) एवं धृताची | क्रम निग्नप्रकार है:-च्यवन (पत्नी-मनुकन्या आरुषी)के दस कन्याओं के साथ हुआ था; २. स्वस्त्यात्रेय, जो | और्व-ऋचीक-जमदग्नि--परशुराम । प्रभाकर के दस पुत्रों का सामूहिक नाम था, एवं उनसे भृगुऋषि के पुत्रों में से च्यवन एवं उसका परिवार ही आगे चलकर, आत्रेयवंश के ऋषियों का जन्म हुआ । पश्चिम हिंदुस्तान में आनर्त देश से संबंधित था। उशनस् था; ३. दत्त आत्रेय; ४. दुवासस् । शुक्र उत्तर भारत के मध्यविमाग से संबंधित था। निम्नलिखित आत्रेय ऋषियों का निर्देश सूक्तद्रष्टा के इस वंश के निम्नलिखित व्यक्ति प्रमुख माने जाते हैं: नाते प्राप्त है:-१. अत्रि; २. अर्चनानस् ३, श्यावाश्व; - १. ऋचीक और्व; २. जमदग्नि; ३. परशुराम; ४. इंद्रोत . ४. गविष्ठिर; ५. बल्गूतक (अविहोत्र, कर्णक); ६. शौनकः ५. प्राचेतस वाल्मीकि ।। ११६६

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